जय श्रीकृष्ण। मित्रगण। आप और हम पर कृष्ण कृपा बरसती रहे।दोस्तो पुनर्जन्म की धारणा पर विभिन्न लोग विभिन्न मत रखते आए है।हमारी सनातन परंपरा व धर्म के अनुसार पुनर्जन्म की आस्था हमारे विद्वान जन व वैज्ञानिक व वैदिक ग्रंथ के ज्ञाता बडे सशक्त रूप से रखते आए है व इसका अनुमोदन भी करते आए है।और मै भी इसे मानता हू कि पुनर्जन्म होता है।
जैसे गीता मे श्रीकृष्ण कहते है तेरे और मेरे कई जन्म हो चुके है तू उन्हे नही जानता पर मै जानता हू।और भी हम शास्त्र मे भी यह कहते सुनते आए है कि फलाने अवतार मे फलाना फला था व फलाने अवतार मे फलाना फला।तो दोस्तो यह तो निश्चित प्रमाण सा प्रस्तुत नही करते ,कुछ निश्चित आभास सा तो कराते है पर लोग कहते है क्या पता ?तो यह प्रश्न क्या पता ? असमंजस का कारण बनता है ।पर कुछ बाते है जिन्हे देख कर ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है।
जैसे देखे तो प्रकृति की समस्त चीजे या वस्तुए वस्तुतः चक्रीय है।यानि रूप भले ही बदल ले पर मूलतः वो वही है कही कही तो वो स्वभाव भी बदल लेती है।पर रहती वो वही है।जैसे खेत मे उगने वाली फसल,को ले जिसका बीज रोपने पर फसल वही पुनः पुनः पल्लवित होगी।है न ।
जल को ले या वायु को ले अथवा कोई अन्य प्राकृतिक उदाहरण ले।चलिए यहा हम वायु व जल को लेते हुए चक्रीय व्यवस्था को समझने का प्रयास करते है।जैसे जल अपने रूप परिवर्तित करता है,जल तरल रूप मे जलीय पिंड मे तरल अवस्था मे स्थापित है।फिर प्राकृतिक गुण जब ताप या उष्मा का वेग बढाते है तो यह वाष्प मे तब्दील हो जाता है,वाष्प से तब्दीली मात्र प्राकृतिक परिवर्तन से ही नही उसकी अवस्था के कारण भी आई।अब जब ये ताप व उष्मा से वाष्प मे परिवर्तित हुआ तो तय हो गया कि ये अवस्था इसे हर हाल मे बदल डालेगी।ये रूप परिवर्तन उसकी अवस्था परिवर्तन व गुण परिवर्तन मे भी हुए। मसलन जो जल तरल रूप मे रह कर प्यास बुझाता था अब उस गुण से वंचित हो गया।वाष्प से आप प्यास नही बुझा सकते प्यास बुझाने के लिए जरूरी है जल का तरल होना।अब देखे केवल रूप परिवर्तन से ही अवस्था बदल गई। व अवस्था बदलने से गुण भी बदल गए। अब उसकी तरल से गैसीय अवस्था आने पर नया रूप तो हुआ ही नए गुण भी पैदा हुए। अब अगली अवस्था को और आगे परिवर्तन करे तो ये तरल से जब गैसीय अवस्था मे तब्दील हुई तो जो ये मिलकर रहने का थोडा गुण था गैसीय अवस्था मे गैसीय गुण repel यानि एक कण का दुसरे कण से दूर धकेलने का गुण विकसित हुआ।और इससे वो हल्की हो गई। अब जब हल्की हुई तो वायु चक्रीय प्रभाव प्रभावी हुआ। जब ये प्रभावी हुआ तो यह हल्का होने के गुण के कारण वाष्प बन उपर उठी ऊपर उठी तो फिर उष्मा व ताप का प्रभाव समाप्त हुआ जब वो प्रभाव समाप्त हुआ तो नवीन प्रभाव आरंभ हुआ।तो जब नया प्रभाव लागू हुआ जोकि शीत या शीतलता का था तो पुनः एक सार हुए वो कण जो विलग हुए थे।और एक नई अवस्था व नए समीकरण से स्थापित कहे या निर्मित हुए।नए गुण के साथ।जोकि बर्फ की है जो ऊंचाई पर कोमलता से व निचाई पर कठोरता से औलो के रूप मे गिरती है व मैदानी भाग पर वर्षा के रूप मे गिरती है इन अवस्थाओ मे भी ओलो व बर्फ के फोहो व जल की बूंदो मे भी गुण का फर्क होता है एक मे कठोरता व एक मे कोमलता इत्यादि का फर्क यानि जस बुन तत् गुण। ।
अब इस दर्शन को देखे तो जब यह औले या बर्फ पिघलती है तो पुनः जल या तरल अवस्थाओ मे तब्दील होती है । यही जल चक्र जीवन चक्र से जुड़ा है।बस फर्क कहा पडता है।फर्क पडता है संयोजन मे जब आप बिखरते है व पुनः मिलते है तो आप प्रकृतिक रूप से चुनाव करते है कि संयोजन कैसा व किससे करना है।करते आप स्वयं ही है सब कुछ पर दोष या ब्लेम दुसरो को देते है।कि हवा मुझे वहा ले गई अन्यथा मैने तो ये करना था इससे जुडना था।आदि आदि।
आप को एक बात बता दू आप हर चीज की कामना व इच्छा के स्वयं ही स्वामी है व आपकी इच्छा की अधीनता ही आपका भावी विकास तय करती है।जो आपकी कामना इच्छा लालसा है न वही आपका भविष्य है चाहे वो इस जन्म का हो अन्यथा पिछ्ले जन्म का।
अब तय हो गया न जल चक्र से कि जल तत्व अपने गुण के आधार पर कितनी भी कोशिश कर ले समाप्त होने की समाप्त नही हो सकता रहेगा जल ही चाहे तरल,रूप मे हो या गैसीय अथवा ठोस रूप बर्फ मे।
तो मान्यवर गुण व प्रकृति का यह खेल निश्चित है व बडे चिरकाल तक चिरस्थाई है।बस संयोजन का गुण आपकी बदलती कामनाए आपका भविष्य तय कराती है जो आपके स्वभाव के आधार पर तय होता है।
अब वायु चक्र को जाने वायु का गुण भी उसके स्वभाव ही तय करता है जो मंद मंद बहे तो समीर,
और धीरे बहे की मात्र आभास ही हो ,कि बस है ,तो पवन,
पर रौद्र रूप धरे तो ऑधी, और उग्र हो उठे तो तूफान और उग्र हो तो बवंडर आदि आदि।हालांकि यह स्वभाव व गुण उनकी बदलती अवस्थाओ के कारण है।
ये भी ताप व उष्मा के प्रभाव के कारण होते हे आप यह तो जानते ही है कि पृथ्वी की सतह पर वायु भारी होती है पर जैसे जैसे उपर उठते जाते है तो ये हल्की होती जाती है व एक ओर बात कि वायु पहले गर्म भी वही होती है जो सतह के नजदीक है।वैसे ताप का प्रभाव इसे हल्का बनाता है जो इसे उपर उठते को प्रेरित करता है।जब कोई हवा गर्म से ठंडी जगह की और बढती है तो स्थान परिवर्तन की गति व अन्य कारक पवन,समीर ऑधी इत्यादि के गुण उत्पन्न करते है जैसे गुण होगे वैसे ही परिणाम ।तो देखे जल चक्र की भांति वायु चक्र भी अपनी अवस्थाओ मे तो परिवर्तन कर पा रहा है
पर अपने वायु के गुण दोष नही छोड पा रहे। जल के कण वायु मे व वायु के कण जल मे तब्दील न हुए हालांकि दोनो की अवस्थाओ के परिवर्तन के कारक ताप व उष्मा ही है।तो देखा मान्यवर कैसे रूप परिवर्तन के बावजूद मूलतः मूल रूप परिवर्तित तो हुए पर वास्तविक रूप व गुण परिवर्तित न हुए वह पुनः पुनः उन्ही की रचना व संरचना मे निर्मित होते जा रहे है।गुण के ताप व उष्म के प्रभाव आदि के घटको के कारण पर भी नष्ट न हुए ।सो यह बात प्रमाणित करती है कि मूलतः आप जो है वही रहोगे व रूप बार बार बदलोगे पर बार बार उत्पन्न होते ही रहोगे।यही पुनर्जन्म की आस्था व विश्वास को मजबूती प्रदान करते उदाहरण है।आगे और चर्चा करेगे।
सखी कभी सत्यनारायण की व्रत कथा पढो तो पांचवा अध्याय बताता है कौन कब क्या था।व पुनः वह क्या बना।ऐसे ही एक कथा रोचक है बताता हू।धृतराष्ट्र की
कहते है धृतराष्ट्र ने सो पुत्र खोए।इतना बडा पाप कैसे हुआ उससे कि उसके अपने सो पुत्र खोने पडे उसे।तो सुनो सखी।
कहते है कि धृतराष्ट्र किसी और प्राचीन काल मे भी कही भील वंश का कोई राजा था यही कुछ हजार एक साल पूर्व वह जब एक राजा था। तब एक बार वह शिकार को गया।जब वह शिकार कर रहा था तो उसने एक पक्षी को निशाना बनाया।किसी कारण वो निशाना चूक गया।तो खफा हो कर उसने अंधाधुंध सो पक्षियों के नवजात को मार गिराया। तो यह उसका प्रारब्ध था कि उसके सो पुत्र उसे खोने पडे।तो देखो वो स्वभाव कमोबेश हजारो वर्ष उपरांत भी वही रहा यानि अंधकार का क्रोध मे अंधा हुआ था तो अंधा ही पैदा हुआ।फिर सो जीवो की नृशंस हत्या की कई माओ की बद्दुआए ली जोकि भले ही हजारों-हजार वर्ष पूर्व हुई पर फलीभूत तो हुई।अब एक विद्वान ने यह भी प्रश्न उठाया कि हजारों-हजार वर्षो बाद फल या बदला तो अनुचित है तो ऐसा क्यू हुआ कि हजारों-हजार वर्ष के बाद फल दिया गया।
तो उसका जवाब धर्म राज यू देते है कि उसे उतने पुण्य भी तो कमाने थे कि उसके स्वयं के सो पुत्र हो सो इस लिए । हजारों-हजार वर्ष का समय लगा।ऐसे ही भीष्म जी के बाण शैय्या का किस्सा है कि पूर्व के एक सो एक जन्म पूर्व उन्होने एक सांप को गलती से उठा कर दूर फैक दिया था ताकि वो कुचला न जाए कही राह मे किसी के नीचे न आ जाए पर वो अनजाने मे कंटीली झाडियो मे जा फसा जिससे तड़प तड़प कर उसकी मृत्यु हो गई। तो ये बाण शैय्या का प्रारब्ध का उनका लेखा था। भले ही पाप अनजाने मे हो फल भुगतान करना ही पडता है गंदे का ही नही अच्छे का भी।तो यह कर्मफल की भवाटवी ही पुनर्जन्म का कारक है।जय विजय के श्राप का भी बालि,हिरण्याक्ष व हरिणयकशयपु आदि फिर रावण व मेघनाद आदि के तीन जन्म का प्रारब्ध ।सब पूर्व जन्म की पुष्टि करते दिखते है।
तो पाठक गण ये पूर्व जन्म पुनः आपका होगा ही मेरा भी बस हमारे समीकरण बदलेगे।और जो बदले हम आज ले रहे है व दे रहे है वो फिर हमसे लिए जाएगे व दिए भी जाएगे।
तो बेहतर हो
जो हो रहा है अच्छा या बुरा उसे सहर्ष स्वीकार करते हुए जीए जाए बिना शिकवे शिकायत के ताकि यह multiple न हो और हम भवाटवी से बाहर आए।अथवा मुक्त हो अन्यथा जैसे आप चाहे।
श्रीकृष्ण आपकी हर हाल मे मदद करे।
जय श्रीकृष्ण जय श्रीराम जय श्रीकृष्ण
आपको यह लेख कैसा लगा व कितना संतुष्ट कर पाया कृप्या अपना अमूल्य कमैंट व सुझाव दे कर अवश्य बताए।जय श्रीकृष्ण जय श्रीराम जय श्रीकृष्ण।
विवेचक।
Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com,
Jai shree Krishna g ..
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