कशमकश मे हू मै,,
दिल की सुनवाई से,,।
कहता है जो वो ,,वो कर नही पाता ,,
जो करता हू वो,, बेचारा सह नही पाता,,
होकर अनमना सा ,,
नाराज रहता है संग मेरे,,
जैसे लिए हो इक लड़की ने ,,
बिन मन मेरे संग फेरे,,
यह कहू तो सच है ,,
सिर्फ काव्य नही है,,
हकीकत भी बनती है ,,फिर,,
कविता क्यू ,, ये ,,स्वीकार्य नही है ?
मै तो लिखूगा,,यह सच ,,
मुझे जो लगता है सही है ,,
कविता का,,
फाइनल सा टच,,
इसमे कोई बनावट तो नही है,,।
जो सीधे जज्बात,,बोलती है ,,
कविता फिर जिंदा हो उठती है,,
तब रूह की ,,
आवाज बोलती है।
तो लोग नाहक ही डरते है ,,न,,
नादान है बहुत,,
उसकी ही है वो बात ,,
जो बदल कर नाम बोलती है।
पढने वाले,, पढते नही है कविता,,
वो दिल के हालात पढ लेते है,,
तभी तो ,,फिल्म मे चलने वाला संगीत,,
सिर्फ महबूब ही फिर क्यू समझते है।
यह कशमकश,,क्या आप ,कुछ समझे ?
कि बिन मन ,,संग कैसे ,, वो मेरे हॅस दे।
यही है ,,असल की ,,जिद्द उसकी,,
कि न बनूगी,,इसकी,,
जो मुझे बनाई न गई उसकी,,
पर इस सब का शिकार,, मै क्यू हुआ,,
प्यार था उसका कोई और,,
तो शिकार मै क्यू हुआ,,
यही कशमकश,,
मुझको सताती है,,
जब की गई ,,उधर शायद,,मा बाप ,,
या बहन ,भाई की जिद्द,,
एक परिवार की खुशी,,
भींच डालती है।।
यह सब अनमने रिश्ते ,,
निभाने का जो उसका मेरा खेल है।
पाप है उस परवरिश का ,,
लडका जिसे रहा झेल है,,
यह वजह है घर मे ,,
होती तकरार की,,
हर छोटी बात पर,
टूटते परिवार व आस की,,
समझ नही पाता,
दोष किस किस को ,
किस हिसाब से दू ,,
उनके इस खेल का,
मै ईनाम भी फिर किसको दू।
वो तो जीत गए,,
अपनी हारी बाजी जीतकर,
पर मै क्या करू,,
इस तरह के जीवन मे,
खुद को पीसकर,,
क्या आपकी भी तो मेरी जैसी,
स्थिति नही है ,,
या आपकी किस्मत ,थोडी भली है,,
मै तो हू शिकार इसका,,
इसलिए,,खुशी,, नही है,,
आप खुश रहे ,,कविता पढे ,
सहानुभूति की दरकार न,
मुझसे ,, कृपया करे ।
मेरा तो यह जीवन का,
एक बेनूर सा किस्सा है,,
कशमकश मे डोलता,
बेकार सा हिस्सा है।
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Originally scripted by,,
Sandeep Sharma 🙏 Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com ,,
Jai shree Krishna g ✍ 🙏 ..
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