उ०-किसी भी पदार्थ, वस्तु या संबंध के प्रति अनुराग,व आसक्ति।
किसी व्यक्ति विशेष वस्तु विशेष अथवा संबंध विशेष से असीम राग या लगाव हो जाए कि उसके खो जाने मात्र की कल्पना भी भयभीत करदे तो यह स्थिति मोह है।
देखा जाए तो यह एक अभिव्यक्ति है जोकि आवश्यक व अनावश्यक दोनों ही है। यदि बात करें आवश्यक की तो यदि इक मां का अपने नवजात शिशु से मोह न हो तो उसका भरनपोषण कैसे संभव होगा। यह उस नियंता की एक व्यवस्था है जिसे समझना होगा ।
अब इसे अनावश्यक रूप से कब देखें?
तो उत्तर में इतना जान ले कि आप किसी वस्तु को अपने अधिकार में ही रखने को ही व्यथित रहे। और अनावश्यक रूप से उसके अन्य कोई सार्थक प्रयोग को बाधित कर रहे हो तो यह मोह अनावश्यक हैं। यहां आपको अनेकों उदाहरण मिलते हैं जो इस शब्द की सार्थकता व निरर्थकता को और विस्तार से जानकारी देता है।
कहते हैं श्री राम चरित मानस के रचयिता ,श्री तुलसी दास जी अपनी पत्नी रत्नावति से बेहद प्रेम रखते थे।एक प्रसंग आता है कि वो अपनी पत्नी से इतना प्रेम रखते थे कि एक बार वो मायके जा रखी थी और तुलसी दास जी को उनका यह वियोग सहा नहीं गया और वो रात्रि में ही उनसे मिलने अपने पत्नी रत्नावति के घर पहुंचे और मोह की प्रबलता वश वो सांप को ही रस्सी समझ उस से उनके घर में घुसे जिसका परिणाम यह हुआ कि रत्नावति को यह पसंद नहीं आया और तुलसी जी को खूब भला बुरा कहा। तो मोह की यह भी प्रकाष्ठा है। हालांकि इसके बावजूद कि तुलसी जी का अपनी पत्नी रत्नावति से प्रताड़ना उनके लिए सार्थक परिणाम लाई। जोकि उनका अपनी पत्नी रत्नावति से मोह भंग हुआ ।जग को विशेष लाभ यह हुआ कि विश्व को एक महान काव्य "श्री राम चरित मानस"के रूप में प्राप्त हुआ।।
एक और घटना का जिक्र मोह कि अनावश्यकता को समझने के लिए यदि करने चाहे तो विश्वामित्र का अप्सरा मेनका से मोह उनकी हजारों वर्षों की तपस्या को क्षीण करने का कारण बना।
ऐसे ही अन्य अनेक उदाहरण मिलते हैं जो मोह की प्रबलता के सार्थक व सकारात्मक व नकरात्मक प्रभाव प्रस्तुत करते है।।
अतः समझने की बात यह है कि आप किस संदर्भ में किसी चीज की प्रासांगिकता को कैसे आंकते हैं।
तो आज हम ने एक सवाल मोह क्या है को जानने का प्रयास किया जो मुझे लगता है आपको निश्चित रूप से सरलता से समझ आया होगा।।
विवेचक;
संदीप शर्मा।
(श्रीमद्भागवत गीता उपनिषद)!
देवभूमि देहरादून उत्तराखंड!
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