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गीता आज के संदर्भ मे।

 जय श्रीकृष्ण 

गीता को जानने से पूर्व चलिए  कुछ  terms या शब्द जान ले जो सामान्यतः हम इस ग्रंथ मे  पढेगे।व उनके अर्थ को सही से समझ सके  यह आवश्यक है हम उन्हे वैसे ही जाने जैसे मै समझा हू। या मेरे अनुसार होने चाहिए। आप जहा चाहे वहा सुधार करे ।

जय श्रीकृष्ण। 

प्रश्न:-  बुध्दि  क्या है व कितने प्रकार  की है ?

उत्तर:- मति अर्थार्त समझने का कौशल।या स्तर ।

मति को बुद्धि  भी कह सकते है।तो यह चार प्रकार की है।

=मति,1=सुमति, 2महामति 3=कुमति व,4= मंद मति।

चलिए  थोडी विवेचना करले चारो पर ।

मति :- मन की भावना या विचार,अथवा आचरण  या व्यवहार ही मति है।

सुमति:- इस भावना व्यवहार  या आचरण वाले व्यक्ति  का मत जीयो  व जीने दो पर आधारित होता है ।आस पास कोई  दुख मे है तो यह यथा योग्य सहायतार्थ  तत्पर है।यह सत्यनिष्ठ  प्रवृत्ति के होते है

2=महामति:- उच्च कोटि के कल्याण कारी  जीव ,जो किसी के भी दुख  से व्यथित  हो जाए द्रवित हो,

व अपने सामर्थ्य से बढकर सहायतार्थ  पेश आने वाले।ऐसे व्यक्ति, स्वयं दुख उठा कर भी दूसरो की भलाई करते है।यह सज्जन, संवेदनशील, सौम्य स्वभाव, धर्मात्मा  प्रवृति  के स्वामी होते है।

यह उस वृक्ष की भांति होते है ,जिन पर मीठे फल लगते है ओर लोग उन फलो की चाहत मे लाठी डंडे पत्थर  सबकी मार सह कर भी फल देना नही छोडते।

सदैव  प्रसन्नचित्त, कभी शिकायत  नही किसी से।महान होते है ऐसे व्यक्ति। 

3= कुमति :- -नाम से ही स्पष्ट है ,जो व्यक्ति  सब की उन्नति से चिढे,इर्ष्या करे विद्वेष रखे व बाधक बनने का प्रयास  करे वो कुमति या मंद मति  प्रवृत्ति के आचरण के स्वामी होते है।इन का मकसद बस इतना ही है कि भला हो तो मेरा किसी ओर का न हो।

यह सदैव  दुसरे को न केवल हतोत्साहित करने के तरीके ढूंढते है वरण इस प्रयास  मे रहते है कि कैसे भी किसी बाह्य या आंतरिकव्यवहार से बाधा पहुँचाए।कुत्सित मनोवृति के स्वामी होते है।

4= मंद मति:- यह व्यक्ति ऐसी प्रवृति के जीवधारी है जिनका एक ही मूल मंत्र है मेरा भला हो न हो  पर दूसरो का  किसी हालत मे नही होना चाहिए, यह बाधा पहुँचने के नित नए  तरीके इजाद करते है व उन्ही मे संलग्न  रहते है।

अगले अंक मे ब्राह्मण के बारे मे बात करेगे।

जय श्रीकृष्ण। 

आपका अपना श्री कृष्ण दासानुदास  

Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com,  Jai shree Krishna g 


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