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आनलाइन की बात

 

आजकल  सबको सुकून बहुत है,
आनलाइन है सबकुछ,
फिजूल  वक्त है।
क्या हुआ जो बोस सख्त है,
यहा तो काम है आनलाइन  ,
अब वक्त ही वक्त है।

पूछे स्कूल  वाले तो ,
तो कहते काम  कहा कराते है,
इतना कुछ  करवाते बस ,
पढाई  ही नही कराते है,
आज कल जो थोडा सा ,
यह बोझा शिक्षक  ने डाला है,
अभिभावक हो चुके परेशान,
उन्हे लगता सब गडबडझाला है,
कहते है कराते कुछ  नही,
पर मांगते तो देखो,फीस  बहुत है,।
आनलाइन के किस्सो की,
शिकायत बहुत है।

इधर पापा की तो देखो मौज हो रही,
अगर दफ्तर है सरकारी,तो खोज  हो रही,
अरे कोई  आएगा ,या फिर  बताएगा,
कि फला फला काम कौन करवाएगा।
हर कोई  परेशान है,
कर्मचारी  आनलाइन,
अब नही कोई  लाईन,
फौकट की तनख्वाह है।
आनलाइन  गवाह है ,
समझ नही आ रहा ,
काम कैसे चला जा रहा,
ओह समझ मे आ गया,
यह राज भी आज  खुल गया,
ये जो सरकारी नाम  का कर्मचारी  था ,
काम करता कहा था लाचारी था,
वो तो आफलाइन, भी आनलाइन  ,
सा काम करता था।
हाॅ  फर्क यह है ,
आफलाइन  पर थोडा उपर ,
से भी कमा लेता था।
चलो हमे क्या।
हम कौन सा सरकारी है,
काम दफ्तर मे होता कब
तभी तो बेकारी है।

लो उधर सुन लो रिश्तेदारो का भी हाल,
पहले ही थे आपस मे सो मलाल,
पहले  तो बहाना बडा आम है ,
मै आता मिलने आपसे ,
पर क्या करू ऑफिस  मे बडा काम है।

यू या नू कर सब टाल जाते थे।
अब तो मिलने को बिमारी बहाना,
सब आनलाइन ही रिश्ते निभाते थे

अब तो आप आनलाइन की आदत ही डाल लो,
मुह छिपाने की ज़रूरत  नही,मास्क  भी उतार लो,
जब सब है हि आनलाइन, तो फिर रिश्ते क्यू आफलाइन।
अब देखो न सबकुछ ईश्वर  जानता है ,
वो कर  तो रहा मदद,
तुम्हारे दिल की जो सब  जानता है।
तुम  ही चाहते थे न मिले आराम,
न करने पडे काम ,पर मिलते रहे पैसे,
अब बोलो हो रहा है न सब  वैसे।

अरे ठहर जाओ संभल जाओ,
कुछ  तो ऐसा कमाओ,
कि सब आफलाइन  हो,
न बेरोजगार की लाइन हो जो काम न करे ,
उसको न मिले तनख्वाह,
उल्टे उसको फाइन हो।
क्योकि, यह जो पैसा है न तनख्वाह का,
जो वो ले रहे,
सब बेरोजगार  व कामगार है जो खून पसीने की अपनी कमाई दे रहे।

इनका मोल तुम  समझो, दुगना कर लोटाओ,
कुछ  तो पुण्य  तुम भी कमाओ।
बाकि जैसे तुम्हारी मर्जी,
कयूकि आनलाइन  सब है फर्जी।
@@@@@#####@@@@@
Originally Scripted by ,Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com,
Jai shree Krishna g


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