श्री शिवमहापुराण के अनुसार श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा
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भीम उपद्रव का वर्णन
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सूत जी बोले 👉 हे ऋषियो! पूर्वकाल में भीम नाम का एक बलशाली राक्षस हुआ था,जो कि रावण के भाई कुंभकरण और कर्कटी राक्षसी का पुत्र था। वह कर्कटी अपने पुत्र भीम के साथ सह्य पर्वत पर रहती थी। एक बार भीम ने अपनी माता से पूछा- माताजी! मेरे पिताजी) कौन हैं और कहां हैं? हम इस प्रकार यहां अकेले क्यों रह रहे हैं?
अपने पुत्र के प्रश्न का उत्तर देते हुए कर्कटी बोली- पुत्र भीम! तुम्हारे पिता रावण के छोटे भाई कुंभकर्ण थे। पूर्व में मैं विराध राक्षस की पत्नी थी, जिसे श्रीराम ने मार डाला था। फिर मैं अपने माता-पिता के साथ रहने लगी। एक दिन जब मेरे माता-पिता अगस्त्य ऋषि के आश्रम में एक मुनि का भोजन खा रहे थे, तब मुनि ने शाप द्वारा उन्हें भस्म कर दिया था। मैं पुनः अकेली रह गई। तब मैं इस पर्वत पर आकर रहने लगी। यहीं पर मेरी कुंभकर्ण से भेंट हुई थी और हमने विवाह कर लिया। उसी समय श्रीराम ने लंका पर आक्रमण कर दिया और तुम्हारे पिता को वापस जाना पड़ा। तब श्रीराम ने युद्ध में उनका वध कर दिया।
अपनी माता के वचन सुनकर भीम को भगवान विष्णु से द्वेष उत्पन्न हो गया और उसने बदला लेने की ठान ली। वह ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या करने लगा। उसकी घोर तपस्या से अग्नि प्रज्वलित हो गई, जिससे सभी जीव दग्ध होने लगे। तब ब्रह्माजी उसे वर देने के लिए गए। ब्रह्माजी ने उसके सामने प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा। तब भीम बोला- हे पितामह ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे महाबली होने का वर प्रदान करें। तब तथास्तु कहकर ब्रह्माजी वहां से अंतर्धान हो गए।
वर प्राप्त करने के बाद प्रसन्न होकर भीम अपनी माता के पास आया और बोला माता ! मैं शीघ्र ही विष्णु से अपने पिता कुंभकर्ण के वध का बदला ले लूंगा। यह कहकर भीम वहां से चला गया। उसने देवताओं से भयानक युद्ध किया और उन्हें हराकर स्वर्ग पर अधिकार स्थापित कर लिया। फिर उसने कामरूप देश के राजा से युद्ध करना आरंभ कर दिया। उसे जीतकर कैद कर लिया और उसके खजाने पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। राजा दुखी था। उसने जेल में ही पार्थिव लिंग बनाकर शिवजी का पूजन करना शुरू कर दिया और विधिपूर्वक 'ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप करने लगा।
दूसरी ओर, राजा की पत्नी भी अपने पति को पुनः वापस पाने के लिए भगवान शिव की आराधना करने लगी। इधर, भीम नामक राक्षस से दुखी सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। तब विष्णुजी ने सब देवताओं को साथ लेकर महाकेशी नदी के तट पर शिवजी के पार्थिव लिंग की विधि-विधान से स्थापना कर उसकी स्तुति आराधना की। भगवान शिव उनकी उत्तम आराधना से प्रसन्न होकर वहां प्रकट हुए। शिवजी बोले- हे देवताओ! मैं तुम्हारी स्तुति से प्रसन्न हूं। मांगो, क्या मांगना चाहते हो?
शिवजी के वचन सुनकर देवता सहर्ष बोले कि - भगवन्! भीम नामक उस असुर ने सभी देवताओं को दुखी कर रखा है। आप उसका वध करके हमें उसकी दुष्टता से मुक्ति दिलाएं। देवताओं को इच्छित वर प्रदान कर शिवजी वहां से अंतर्धान हो गए। देवता बहुत प्रसन्न हुए और जाकर राजा को भी सूचना दी कि भगवान जल्दी ही तुम्हारे शत्रु भीम का नाश कर तुम्हें मुक्त करेंगे।
भीमशंकर ज्योतिर्लिंग का माहात्म्य
सूत जी बोले – हे ऋषिगणो! अब मैं आपको भीमशंकर ज्योतिर्लिंग के माहात्म्य के बारे में बताता हूं । इधर, जब दानव भीम को यह ज्ञात हुआ कि राजा कैदखाने में कोई अनुष्ठान कर रहा है तब वह क्रोधित होकर जेलखाने में पहुंचा। भीम राजा से बोला- हे दुष्ट! तू मुझे मारने के लिए कैसा अनुष्ठान कर रहा है। बता, अन्यथा मैं अपनी इस तलवार से तेरे टुकड़े टुकड़े कर दूंगा। इस प्रकार भीम और उसके अन्य राक्षस सैनिक राजा को धमकाने लगे।
राजा भयभीत होकर मन ही मन भगवान शिव से प्रार्थना करने लगा। वह बोला- हे देवाधिदेव! कल्याणकारी भक्तवत्सल भगवान शिव। मैं आपकी शरण में आया हूं। आप मेरी इस राक्षस से रक्षा करें। इधर, जब राजा ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया तो वह क्रोधित होकर तलवार हाथ में लिए उस पर झपटा। एकाएक वह तलवार शिवजी के पार्थिव लिंग पर पड़ी और उसमें से भगवान शिव प्रकट हो गए। उन्होंने अपने त्रिशूल से उस तलवार के दो टुकड़े कर दिए। फिर उनके गणों का दैत्य सेना के साथ महायुद्ध हुआ। उस भयानक युद्ध से धरती और आकाश डोलने लगा। ऋषि तथा देवतागण आश्चर्यचकित रह गए। तब भगवान ने अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से भीम को भस्म कर दिया, जिससे वन में भी आग लग गई और अनेक औषधियां नष्ट हो गईं, जो अनेकों रोगों का नाश करने वाली थीं।
तब अपने भक्तों का कल्याण करने के लिए कल्याणकारी भगवान शिव सदा के लिए राजा द्वारा स्थापित उस पार्थिव लिंग में विराजमान हो गए और संसार में भीमशंकर नाम से प्रसिद्ध हुए। भगवान शिव का यह लिंग सदैव पूजनीय और सभी आपत्तियों का निवारण करने वाला है।
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