जय श्रीकृष्ण मित्रगण। जय श्रीकृष्ण। आप सबको यह जान कर हैरत होगी कि आप जो स्वय को लेकर भ्रमित है कि आप की जाति फलानी या फलानी है तो यह भ्रम शायद आपका "ब्राह्मण कौन" पढ कर शांत हो गया होगा।
चले आगे बढते है।
ब्राह्मण को जाना तो समझ आया जो जीव को शुद्र से ब्रह्म बनाने की ताकत रखता हो वो ब्राह्मण। या जो ईश्वर से मिलवाने की राह प्रशस्त करे वो ब्राह्मण। है न सरल।
तो अब एक प्रश्न उठना लाजिम है की
ब्रह्मचर्य क्या है ?
तो दोस्तो यह अगर मै सरल शब्दो मे कहू तो
ब्राह्मण का आचरण ब्रह्म आचरण अर्थात जो आचरण एक विद्वान ब्राह्मण अपनाए, जो उसकी जीवन चर्या होगी वही आचरण तो ब्रह्मचर्य होगी न ।है कि नही तो यदि मै कहू ब्राह्मण के द्वारा किया गया आचरण ब्रह्मचर्य है ,तो यह अतिशयोक्ति तो न होगी न। अब सवाल यह उठता है कि कैसा आचरण। क्या शारिरिक इन्द्रियो मै मैथुन क्रिया का अंकुश या नियत्रंण ब्रह्मचर्य है, तो मै इसको स्पष्ट रूप से कहूगा नही।कारण ब्रह्म का आदेश क्या है सृष्टि का सृजन ।तो मैथुन क्रिया के नियत्रंण से क्या यह संभव है, कदाचित नही।तो फिर क्या है यह ब्रह्मचर्य। क्या अन्य जन की तरह मैथुन मे संलग्न रहना ,
न ये भी नही।
तो ब्रह्मचर्य मे फिर ऐसा क्या अलग है ?।तो मान्यवर मेरे मतानुसार यह वो आचरण है जो शुचिता व शुध्दता को देख भाल कर ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करे जो सबके लिए अनुकरणीय हो।यदि आपने कोई धार्मिक अध्ययन किया है तो आप इस बात से वाकिफ होगे कि असुर कैसे व कब उत्पन्न हुए।कहते है एक बार ऋषि पत्नि की अपने पति से साहचर्य की तीव्र इच्छा हुई ओर वो समय या काल था संध्याकाल। तो ऋषि ने पत्नि को थोडा रूकने को कहा पर वो इतनी अधीर व काम पीड़ा से पीड़ित थी कि स्वयं को रोक न पाई अब यह तो आप जानते ही होगे कि वैदिकनियमो को माने तो संध्याकाल रात व दिन दोनो के गुण लिए है।अर्थात यहा पर नकरात्मक स सकरात्मक दोनो तरह की ऊर्जा सक्रिय होती है। चुकि रात्रि का आगमन काल होता है और दिन की विदाई तो ऐसे मे निशाचर ज्यादा सक्रियहोते है जिनमे नकरात्मक ऊर्जा का समावेश अधिक होता है।आमतौर पर वैदिक पद्दतिमे तभी शुभकारी कार्य को करने का समय ब्रह्ममुहूर्तनिश्चितहै व रात्रिकालमे वे निषेध,है। ऐसे मे ऋषि की बात का मान रखना बनता था सो। इधर ऋषि के लाख समझाने पर भी काम का लोभ उससे काबू न हुआ अन्ततः ऋषि को मजबूरन उसी समय ही पत्नि को संतुष्ट करना पडा।हालांकि अनैतिक कुछ न था सिवाय समय के तो आचरण का समय अनुकूल न होना ही बस अनैतिक था। तो इस प्रकार जो संतति हुई वो आसुरी गुणो से युक्त बीज मात्र अनुचित समय के कारण असुरो की उत्पति हुई।यही क्रिया यदि सही समय व काल पर होती तो कदाचित असुर न पैदा होते।अतः क्रिया तो अनुचित न थी पर यदि यही कार्य शुध्दता व काल की शुचिता के साथ किया जाता तो दैवीय गुण युक्त संतान होती ,बल्कि उससे समाज व मानव जाति को लाभ भी होता। तो हमारे व्यवहार की आचरण की व्युत्पत्ति व उसका उस समय क्या प्रभाव होगा का विचार कर आचरण करना ही ब्रह्मचर्य है।तो आपने देखा अमूमन संभोग पर रोक को लोग ब्रह्मचर्य मान लेते है जबकि वास्तविक रूप से ऐसा नही है बल्कि उचित समय पर सब प्रकार से सोच विचार कर किया जाने वाला आचरण जो समाज व पूर्ण सृष्टि के अनुभव व उसके हित मे हो वैसा आचरण ब्रह्मचर्य है।मै तो यही मानता हू।ब्राह्मण ब्रह्मा से कब मिलवाएगा। जब वो पूर्ण शुध्द व शुचिता रखता हो।तो यदि उसके आचरण मे त्रुटि है तो क्या यह संभव है कदापि नही तो फिर वही बात हुई न कि शुध्द अनुकरणीय व सृजन के उदेश्य से किया गया आचरण ही ब्रह्मचर्य है।तो इसे कुछ यू समझे कि यह विशेष इस लिए है क्योकि यह संयमित व उच्च स्तर का अनुशासित जीवन का आचरण है जो सबके बस का नही।श्रेष्ठ व्यक्ति जो कठोरता से स्वयं की इन्द्रियो पर नियंत्रण रखते हुए ऐसे आचरण करे जो प्रशंसनीय व अनुकरणीय हो ताकि वो सब को लाभान्वित करने वाला हो तो ऐसे आचरण को ही ब्रह्मचर्य कहेगे।
आप भी विद्वान है मै जानता हू तथ्यात्मक रूप से आप और भी कह सकते है स्वागत है कमैंट करे व बताए आप और क्या सोचते है।
मै समय समय पर इसमे add on करूगा।आप जुडे रहे।व जाने सूक्ष्मता व सरलता से अपने वैदिक व वैज्ञानिक सनातन परंपराओ को।माध्यम कुछ भी हो चाहे मुझे पढे या किसी अन्य को कोई फर्क नही पडता कारण मैने अपना कुछ नही कमाया जो है सब विद्वान से लिया बस मेरे को लगता है कि सरल शब्दो मे आम जन की भाषा मे समझा रहा हू।बाकि बेहतर तो आप जानते है।मै तो शुद्र से प्रयास कर रहा हू कि हम ब्रह्मचर्य अपना ब्राह्मण हो जाए ईश्वर ऐसी शक्ति दे।अहम ब्रह्मा अस्मि।
ॐश्रीकृष्ण देवाय नमः।
जय श्रीकृष्ण जय श्रीराम जय श्रीकृष्ण।
सब को जय श्रीकृष्ण।
विवेचक
संदीप शर्मा,
श्रीमदभागवत गीता उपनिषद।
(की सरल शब्दावली। )
Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com ,
Jai shree Krishna g .
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