क्या दौर था उस जमाने का,
था बचपन वो खजाने सा,
न मांग बनानी आती थी ,
न बात ही बनाई जाती थी,
कोई कुछ भी हमे कह जाता था,
यह दिल न दिल को लगाता था,
अब अजब गजब सी बात है,
वही मै हू वही जज्बात है,
अब सही किसी की नही जाती,
हर बात बुरी लग जाती है,
मेरी दुनिया जाने क्यू फिर,
मुझसे ही उलझी जाती है,
शायद मै अब मुझमे वो न रहा,
जो असल मे हुआ करता था,
अब भरा हू मै बस उस सब से ,
जो करा तुम सब ने मुझ संग से,
समझ आता नही की कौन हू,मै,
जो अब हू या जो तब था वो मै।
इक जीवन के बीते बरसो ने
सब सोख लिया सच था जो मै।
अब रहा नही कुछ भी बाकि ,
जो पैदा हुआ था मुझमे मै।(2)
क्या वो था मै या यह हू मै
नही समझ है आता कि कौन सा हू मै।(3)
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स्वरचित मौलिक रचनाकार,
संदीप शर्मा,
Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com ,
Jai shree Krishna g.
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