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सिमरन क्या, क्यू व कब ?

 जय श्रीकृष्ण। 

सभी मित्रगण  सुधिजन  ,पाठकगण, व,आदरणीय  जन को राधे राधे  के स्नेहिल  अभिनंदन के बाद मीठी सी जय श्रीकृष्ण। 

साथियो 

अक्सर कहते सुना है भज ले हरि का नाम तू बंदे फिर  पाछे पछताएगा।

या गुरू धारण  कर लिया तो आवश्यक  है सुमिरन। 

सुमिरन  है क्या ?

क्यू आवश्यक  है लाभ  हानि  सब की चर्चा करेगे यहा।

तो आइए पहले जाने कि :-

*सुमिरन  है क्या ?

सुमिरन  अर्थात  सिमरन। यानि पुनः पुनः किसी मंत्र   या नाम  का दोहराव  या उच्चारण करना।।

पुनः पुनः ,बार बार।

आखिर  बार बार क्यू?

तो कारण स्पष्ट है मन की गति  तीव्र  है ,चलायमान है,चंचल  है मन,अस्थिर  है वायु की भांति  टिकता नही शायद वायु के गुण  लिए  है सो  इस अस्थिर व चंचल मन को स्थिरता देने के लिए  अभ्यास  की आवश्यकता है यह अभ्यास  सिमरन  कर पूरा  किया जा सकता है।एक कारण यह है ।

दूसरे और भी कई  महत्वपूर्ण  कारण है।मसलन अपना उद्धार।

हम अपने मन को नियंत्रित  नही कर सकते कारण।इसकी तीव्र  गति व चलायमान  होना ।भौतिक  विज्ञान  मे समय चक्र  को समझे जिसे time speed से समझते है हम।तो यह पूर्व  व भावी  के साथ वर्तमान  को भी लिए  है ।मन को एक संत ने सूक्ष्म  शरीर  कहा  है।तो इस स्थूल  शरीर  से सूक्ष्म  शरीर  का सामंजस्यपूर्ण  व्यवहार  को भी सिमरन  आवश्यक हो जाता है व उद्धार  का कारण तो है ही।

अब अन्य कारण तो विद्वान  जानते होगे।पर मेरी मति इतना ही जानती है।

तो यह तो हो गया कि सिमरन  क्या है व कयू? का जवाब। 

एक और बात भी मस्तिष्क  मे आई कि सिमरन  यू भी करना चाहिए  कि मन शिथिल  नही रह सकता ।उसकी भूख है कर्म  अब चाहे यह शारीरिक कर्म  हो अथवा मानसिक। क्योकि मानसिक कर्म   होगे तभी शारीरिक कर्म के  रूप मे परिवर्तित  होगी ।सो इस उदेश्य को पाने के कारण इसकी क्षुधा  पूर्ति  हेतु भी भी सिमरन  आवश्यक है कि इसे उलझाए  रखो किसी कारण को जो सकरात्मक हो बजाए इसके कि कुछ  नकरात्मक  सोचे व फिर  वो कर्म  मे तब्दील  हो।

तो दोस्तो यह सब के अलावा भी सिमरन  के कई उदाहरण व कारण  हो सकते है।तो मुझे इन सब मे जो सबसे सटीक  व पूर्ण  लगते है वो समय चक्र से सामंजस्य, व सकरात्मक  विचार  को प्रयास।  बाकि आपकी अपनी अपनी सोच व choice है।

अक्सर सनातन परंपरा मे ईश्वर  के नाम  को सिमरन  का बल दिया है।पर यह दैनिक  जीवन मे भी उपयोगी है ।

कभी छोटे बच्चो  को पाठ  पढते देखो क्या करते है ?

वही बार बार  दोहराव। 

क्यू ताकि याद रहे व यादाश्त  मे स्थाई रूप  से स्थापित हो जाए  व विस्मरण  न हो अर्थात  भूले नही।

तो सिमरन  का उदेश्य  भी यही है कि लक्ष्य  को बार बार  दोहराव  कर उस तक पहुंच  स्थापित  करना वहा तक पहुंचना व पाना।

अब समझ आया होगा कि सिमरन  क्या है, व  ,क्यो करे। 

पर सिमरन  कब करे।

तो उत्तर  है ।

जब भी समय मिले,

समय न मिले तो अनिवार्य  रूप से निकाले क्योकि यह आपके उत्थान  को आवश्यक है।आपकी सद्गति  का कारण है आपके मोक्ष व चिंतन  का समाधान है।आप सिमरन  कर किसका रहे है यह बहुत  महत्वपूर्ण है।

एक स्थिति आती है।कि आप किसी उलझन मे उलझ गए। तो यहा तीन बाते हो सकती है।

पहली समस्या को देख भयभीत  होते रहे।

दूसरे है सलाह  ले कि  अब क्या करे व तीसरा है कि सकरात्मक  रहते हुए धैर्यवान  बने व बजाय  समस्या के आगमन  के कारण भयभीत हो ,क्यू न उसके समाधान  के पक्षो  पर ध्यान  केंद्रित  किया जाए।तो सखी यह हमे कर्मशील व सकरात्मक  बनाने के साथ-साथ  हमे सद्गति  प्रदान करने का प्रमुख  कारण व हल है।

सिमरन  को सबसे ज्यादा जो लोग करते है व उचित  मानते है तो  नो है श्रध्दा वान होते हुए  अराध्य की अराधना  को ।

पर बताया न नित्य नैमतिक  कार्यो  को तरजीह  देने के लिए  भी सिमरन  आवश्यक है।

तो किस सिमरन  पर अधिक  ध्यान  देने की आवश्यकता है ?

तो सुधिजन  बस रहा का विचार  व चुनाव  आपकी दिशा व दशा का निर्धारण  करेगा।

यदि लक्ष्य छोटा व तत्कालीन है तो आप चुनेंगे संसारिक  महत्व की चीजो के पाने को सिमरन। 

पर यदि कोई  बडा लक्ष्य व चुनौती को स्वीकार  करने की मंशा है अगले  जन्म तक की भी सोच है कि  सुधार  व विकास  हो तो फिर वैसे ही सिमरन  करने होंगे। 

जैसे एक तो है छात्र  सा सिमरन। 

इसके लाभ  तत्कालीन है अति सूक्ष्म  है व अल्पकालिक है।

फिर  मध्यम  प्रकार के लाभ  लेने है तो ऐसे सिमरन  करे कि ईश्वर का नाम  तो ले पर बदले मे मांगे संसारिक  वस्तुए ही जैसे ईश्वर इस समस्या से निजात दिलाओ। हे भगवान  धन दौलत  औलाद  ,जमीन  ,जर जोरू व जमीन  सरीखी मांगो  की पूर्ति को हो तो यह मध्यम  प्रकार  को फलदाई होगा पर अब यदि उदेश्य  काफी  बडा व उत्थान को उत्कृष्ट  रखना है थोक आप सिमरन  करेगे ध्याएगे भी पर कुछ  मांगेंगे  नही कुछ  भी।कारण  बताया था कि अराध्य की अराधना   कर मांग  कर बैठे तो सस्ता सौदा कर लिया वही रिजर्व  कर लिया समय आने पर मांगेगे जैसा कुछ  कर लिया तो कैकयी  की बातो व आचरण  की तरह भले ही।जग हॅसाई हो या लोग  बला बुरा भी कहे।जब मांगोगे तो बडा ही मांगोगे व वो ऐतिहासिक  व एक का नही अनेक के कल्याण  का कारण होगा।राम  हो या भरत।लक्ष्मण  हो या शत्रुघ्न  ,सब के सब तब महान  हुए  क्योकि बुराई  एकमात्र  कैकयी  ने ली।पर कितनो के चरित्र  चरित्रार्थ कराए  कहने  की आवश्यकता ही नही।समूचा रामायण  इसका उदाहरण है।आप की सोच कहा तक सोचती है आप समझते नही आप सिर्फ  यह सोच कर बैठे है कि सूर्यवंश  के राजा दशरथ  से लेकर लवकुश  तक सब के चरित्र  का उत्थान हुआ ।पर महाशय नही आप कम ऑक  रहे है।

यहा तो आप से लेकर जिस जिस  ने यह गान व पुराण  पढा व वहा से लेकर चरित्र  निभाने  वाले से लेकर इनके गुणगान  करने वाले नारद  ब्रहमा, व उमा पार्वती से लेकर शिव शंकर व वाहन सरीखे गरूर  व काक भुशुंडि व जटायु  इत्यादि  से लेकर पर्यावरण  का हरेक  कण लाभान्वित हुआ था है व आगे भी होएगे।

क्या है सब ।

सिमरन का फल।

तो देखा आपने कि एक सिमरन  कितना फलदायक  व आवश्यक है।हमे स्वयं विकास के विचार को फलीभूत  करने को आवश्यक  है कि हम सिमरन  करे।

मुझे लगता है अब इसके काफी तथ्यों से आप वाकिफ  हुए  होगे व  हुए  है और अपनी इस सिमरन की आदत को यदि है तो बढाएगे अन्यथा अपनी नित्य  नैमतिक  आदत मे शुमार  तो आवश्यक  रूप  से करेगे ताकि लाभान्वित  हो जैसे प्रह्लाद हुआ व अन्य समस्त  ऋषिगण  व देवतागण से लेकर स्वयं राम कृष्ण  सरीखे तत्वदर्शी  हुए। आदि आदि ।

अभी के लिए  इतना ही।

फिर मिलते है अगले शीर्षक  क्षेत्र  व क्षेत्रज्ञ  के विकास  के चर्चा  के दौरान।

जय श्रीकृष्ण। जय श्रीकृष्ण। ।जय श्रीकृष्ण। 

आपका शुभ  चिंतक ।

संदीप  शर्मा। 


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