समय था इक ऐसा,
कोई देखता न था पैसा,
सब का था सरोकार,
खुशदिल था हर परिवार,
सबके पास सम्मान था ,
हर कोई आता, इक दूजे के काम था,
कभी किसी को महसुस तक न हुआ,
कौन बडा ,कौन छोटा सबका सुकून बुआ।
हर शख्स का सम्मान बहुत होता था।
सच मे सबको आराम बहुत होता था।
सब कुछ पर्याप्त व उपयुक्त था,
जी उस समय परिवार सयुंक्त था।
फिर कुछ कुछ बंदिशे अखरने लगी,
निज फर्माइशे अलग सी पसरने लगी,
कुछ बंधन भारी लगने लगे,
आपस के रिश्ते बिखरने लगे,
तब आया छोटे परिवार का दौर,
होने लगा परिवार से अलग ,
परिवार बसाने का शोर,
अब बर्तन तो कम खडखडाते थे ,
बस पति पत्नि सास ससुर के साथ,
बच्चे भी एडजस्ट हो जाते थे,
तो लो जी बर्दाश्त की मात्रा और कम हुई,
यहा पति पत्नि मे फिर से अनबन हुई,
कारण तो थोड़ा ज्यादा न था बडा,
बस सास ससुर का लग रहा था,
पत्नि जी को बोझ थोडा,
सो उनसे भी पीछा छुड़ाया गया ,
उन्हे अपने से अलग कराया गया,
पति पत्नि जब लगे थोडा सयाने भये,
पिता माता वृद्धाश्रम जाने लगे,
अब परिवार थोडा और छोटा हुआ,
नया दौर एकल परिवार का आ गया मुआ,
हम दो हमारे दो मे भी न निपटे
हम दो हमारा एक पर आ सिमटे,
अब तो एक और नया कांट्रेक्ट है,
लिव इन रिलेशनशिप का,
आया नया कांसेप्ट है,
अब तो और भी कम बोझ है,
जब चाहो जिससे चाहो लो तुम मौज है,
बच्चे अब प्राकृतिक नही,
सारगेटिड विधि से होगे,
कोख भी किराए की,
जिस्म के भी किराएदार होगे,
मनुष्य तरक्की कर बहुत रहा है ,
चिकित्सक हर समस्या का ,
समाधान जो करे जा रहा है।
अब तो बच्चो को किराए की कोख या बीज का भी टंटा भी खत्म है,
आई,वी,एफ,प्रणाली व स्पर्म बैक,
सब उपलब्ध है।
परिवार की उजडती सिकुड़ती कहानी,
सुना रहा संदीप, तुम्हे अपनी जुबानी,
मानव थोडे अब तो मशीने पैदा होगी,
भाव जैसे चाहोगे वैसे मौल होगी,
क्या हुआ जो अब शव पे रोने,
कोई आता नही है,
कौन था अपना यहा
खरीदा था हर नाता सही।
यह थ्री आर,
रिडयूस, रियूस व,रीसाइकिल,
का स्यापा सही है।
सब खत्म हो रहा है धीरे धीरे।
परिवर्तन का दौर यही है ,
जैसे मिल रहा है जीवन ,
भले मानस जी ले,
आगे की स्थिति और भयानक होने वाली है,
चुपचाप होठ सी ले।
अंग भी होगे अलग अलग,
एक शरीर भी शायद लगने लगे भारी ,
देखो इंसान कितना तरक्की ,
कर गया, सखी वाह री,
जीवंत से जीवन को बेजान कर दिया।
आगे के माखौल का मेरा जी डर रहा ,
तुम जो सोच पाओ,
तो शायद वो सही है।
क्या परिवार रह गया,
जो समाज वही है।
अब बताइए,
मुझे समझाइए,
कुछ रह गया हो तो बताइए।
करू रचना बंद या
करोगे कोई अनुबंध।
अभी कहो तो कहू बहुत कहानी बाकी है ,
भावनात्मक, तो कुछ कहा ही नही,
कहानी तो कब की खत्म साथी है।
क्या तुम्हे लग रहा अब परिवार बाकि है,
परिवार , मेरा परिवार सब खत्म साथी है।
□□□□¤¤¤¤¤¤□□□□¤¤¤¤¤¤□□□□
स्वरचित, मौलिक,
एकदम मौलिक रचनाकार ,
संदीप शर्मा (अपना देहरादून वाला)
Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com ,
Jai shree Krishna g
Comments
Post a Comment