पूछ रहे सब , झांक झांक ,कर,,
इधर उधर की तांक झांक, पर,,
सोच रहे है कैसे,
नफरत वाले प्यार ,
को लिखे वैसे।
पहलू है कई कब से ,,
छिपा बैठा है यह सब,, मे,,
रूप लिए अनोखे ,,
देकर सबको धोखे ,,
अगर कहू मै वैसे,
जो लिख दू जो समझे जैसे।
तो क्या समझ पाओगे वैसे।
तो यह जो शय है ,
संदीप बोलेगा तो,,
खामोशी तुम्हारी तय है।
तो सुनो एक ही पक्ष रखूगा,
आप जीना उस पल को ,
मै सच मे नही समझा सकूंगा।
पर प्रयास रहेगा,
नफ़रत वाला प्यार हर हाल रहेगा।
बात है इक बेटी की ,
अनचाही आ पडी झोली मे,
नही जा रही समेटी जी,
क्या लगता नही यह जो व्यवहार है ,
जी यह बिल्कुल नफरत वाला प्यार है।
चलो आ भी गई कैसे तैसे,
भ्रूण हत्या से बचते बचाते,
अब घर मे कहने को दिलासा है,
लक्ष्मी आई है,
पर मन सबका ,,
कुछ-कुछ प्यासा है,
यह जो है न ,व्यवहार,,
यही है नफ़रत वाला प्यार, ,
घर मे सबके लिए बिछौना,
पर इस के लिए बेचारी होना,,
हर जगह ही भेदभाव,,
आने जाने वाले से लेकर ,,
नाते रिश्तेदार की सलाह,,तक,,
कोई तिरछी,ऑखो से,
कोई सीधे कटाक्ष तक,,
कोई दबी आवाज मे ,
तो कोई मुँहफट जबान से ,
सब कह जाता है,
यही व्यवहार,
नफरत वाला प्यार कहलाता है।
इधर हर बार ,
कोई न कोई दरकार,
कोई न कोई बहाना,
छीन लेता हर सपना उससे उसका
जता कर हक ,कोई न कोई अपना,
यह व्यवहार, क्या नही कहोगे ,,इसे भी
कि ये है ,, नफरत वाला प्यार।
डरते डरते जिंदगी जीती हुई,
मरते मरते हर श्वास गिनती हुई,
समाज की नजरो ,से बचाकर
सबसे दिखावे का प्यार पाकर,
जगह जगह उसे अजमाकर,
हर बार उसे तोड देना,
यह तो कहोगे कि नही ,
नफरत वाला प्यार होना।
चलो अब और कोई बात करे,
ललचाई नजरो से देखते ,,
उसके यौवन के भेडिए सा व्यवहार करे,
सब और उसको अशक्त दिखाते हुए,
नोच डालने को उसको,
उसकी मदद को आते हुए,
कहोगे नही इसे भी क्या यार,
कि है यह नफरत वाला ही प्यार।
और फिर ऐसे मे भी ,
गुणो को समेटकर ,
हो गई बडी जिंदगी को झेलकर,
तब जो ब्याह की बात चली,
सौन्दर्य की कोई न औकात रही,
बस जैसे पटा वैसा सौदा हुआ,
यह तो कहोगे न ,
नफरत वाला प्यार हुआ।
चलिए इसे भी जो तुम नही मानते ,,
तो ब्याही गई, मृत वो जिंदा सी,
पहुँचाने को सुख ,
किसी तन को उनिंदा सी,,
रख कर कइयो का भी ख्याल ,
मिला न आस्तित्व तब भी ,,
और न कोई अपनत्व सा व्यवहार ,,
अब भी कहते हो जालिम,,
कहा होता है किसी से यार,
आजकल ,,वो भी,,
नफ़रत वाला प्यार। ।
यही से एक जीवन की ,,
फिर शुरुआत होगी,,
हुई जो लडकी ,,
तो,, जिदगी ,, बर्बाद होगी,,
अब क्या कहू मै ,,
किसका मै करू एतबार,,
तुम तो कहते हो ,,
होता ही नही है ,,
नफरत, वाला, प्यार ,,
क्या सच मे नही होता है ,,
नफ़रत वाला प्यार,, ?
यदि नही होता है न ,,
नफ़रत वाला प्यार,,
तो एक बार लडकी बन के देखना,
उस मौत से जीवन को समेटना।
तब फिर कहना,सहना, और बताना,,
कि बदल गया है जमाना,,
नही अब नही होता है ,
ऐसे कही भी यार ,
जिसे तुम कहते हो,,
नफरत वाला प्यार।
जिसे तुम कहते हो,,
नफरत वाला प्यार।
@@@@@
मौलिक रचनाकार,( सर्वाधिकार सुरक्षित रखते हुए। )
संदीप शर्मा।
(देहरादून से आपके दिल तक।।)
Comments
Post a Comment