कशमकश मे हू मै,, दिल की सुनवाई से,,। कहता है जो वो ,,वो कर नही पाता ,, जो करता हू वो,, बेचारा सह नही पाता,, होकर अनमना सा ,, नाराज रहता है संग मेरे,, जैसे लिए हो इक लड़की ने ,, बिन मन मेरे संग फेरे,, यह कहू तो सच है ,, सिर्फ काव्य नही है,, हकीकत भी बनती है ,,फिर,, कविता क्यू ,, ये ,,स्वीकार्य नही है ? मै तो लिखूगा,,यह सच ,, मुझे जो लगता है सही है ,, कविता का,, फाइनल सा टच,, इसमे कोई बनावट तो नही है,,। जो सीधे जज्बात,,बोलती है ,, कविता फिर जिंदा हो उठती है,, तब रूह की ,, आवाज बोलती है। तो लोग नाहक ही डरते है ,,न,, नादान है बहुत,, उसकी ही है वो बात ,, जो बदल कर नाम बोलती है। पढने वाले,, पढते नही है कविता,, वो दिल के हालात पढ लेते है,, तभी तो ,,फिल्म मे चलने वाला संगीत,, सिर्फ महबूब ही फिर क्यू समझते है। यह कशमकश,,क्या आप ,कुछ समझे ? कि बिन मन ,,संग कैसे ,, वो मेरे हॅस दे। ...
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