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मेरा माहिया ओ घर क्यू नी आया।क़व्वाली।

 मेरा माहिया ओ,हो मेरा माहिया ,

ओए होए,

मेरा माहिया ओ घर क्यू नी आया,

औ रूसया, है ,(2), क्यू नही गया मनाया,।

के दिल मेरा नही हो लगदा। 

होए ओए।(3) के दिल.....



औंधे नखरे मै (2)

हा ,हा,औधे नखरे मै,

सहवा, सारे सारे,

पावे चंगडे या हौन पावे माढे,

के मै त नइयो  कोई  संगना,

होए ओए ,

के मै तो हौर नही कुझ  मंगना।

होए ओए। 

पावे सा मेरे  मुक जान सारे,

पावे सा मेरे मुक जान सारे,

नी  होर  न मै कुझ मंगना।

होए ओए के औधे रंग च ,ही मै रंगना।

होए,ओए,

के औधे  रंग च ही मै रंगना,


ओहदे नखरे न  बेवजह है सारे,

औनू किवे मै मनावा ,दस खुदा रे,

के रहदा तू क्यू चुप  सौनया,

होए ओए,

के रहना वे क्यू तो गुम सोनया,

ओए होए।


के रूठे यार नू मेरे कोई  मनावे,

मैनू एंज दी देवो न कोई  सजा वे,

हो मेरी पीड़ दी  देवो जी कोई  दवा वे 

के दर्द मेरा नही है घटदा 

होए ओए।

के दर्द  मेरा नही है घटना,

होए ओए।



के मेरा माहिया वे घर क्यो नही आया,

मेरा दिल है क्यू एंज घबराया,

रहदा डरदा जिवे हलवे न सरमाया, ,

के औधे बिन  नही मै जीवना,

होए  ओए, 

के दिल मेरा लभे प्रीत हा होए ओए 

के दिल मेरा लभे प्रीत हा,

होए ओए।

के दिल मेरा ...........

मेरा माहिया ...........

हो  ओ ,हो ...........

मेरा सोहना ...........

(Qwali)

इक कोशिश  कीती  ए पंजाबी  च कव्वाली  दी।कोई  इसनू अपनी आवाज  च गा के ऐनू मान बख्शो ते दिल  खुश  हो जावे।

सर्वाधिकार सुरक्षित रखदे  होए मौलिक रचनाकार संदीप शर्मा  दी गुजारिश। ए।

जय श्रीकृष्ण जय श्रीराम जय श्रीकृष्ण। 

(पंजाबी दी कव्वाली। )


Originally Scripted by Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com,

Jai shree Krishna g. .

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सीथा सादा सा दिल।

  है बहुत बडी उलझन, जब समझ न कुछ  आता, निकल जाते सब कोई  , बेचारा दिल  ही रह जाता , कितना कोमल  ये है, समझ इससे है आता , जो चाहे जब चाहे, इसको दुखा जाता, ये सीथा सादा दिल, समझ क्यू नही पाता, सब जाते खेल इससे, यह खिलौना  भर रह जाता। ये कितना सच्चा है , समझ तब  हमे है आता, हम मान लेते सब सच, जब कोई झूठ भी कह जाता। कितना ये सीधा है , तब और भी समझ आता। जब देखते छला ये गया, बना  अपना छोड जाता। कितना ये सादा है, पता तब  है चल पाता, जब हर कोई  खेल इससे, दुत्कार इसे जाता। ये सच्चा सीधा सा, कर कुछ भी नही पाता , खुद  ही लेकर दिल पर ये, हतप्रद ही रह जाता। हो कर के ये घायल , समझ नही  है कुछ पाता, क्या खेल की चीज  है ये, या जीवन  जो धडकाता। इतनी बेरहमी से , है धिक्कारा इसे जाता, ये तब भी सीधा सादा, बस धडकता ही जाता। खामोशी से सब सह , जब झेल न और पाता, कहते अब मर ये गया, तो जीवन  तक रूक जाता। यह सीथा सादा दिल , कितना कुछ  सह जाता। देकर के जीवन ये, बस खुद ही है मर जाता।(2) ######@@@@@###### वो कहा है न दिल के अरमान  ऑसुओ मे बह गए, हम वफा करके भी तन्हा रह

बहुत कुछ पीछे छूट गया है।

  बहुत कुछ  मुझसे  छूट  गया है, यू जीवन ही रूठ गया है, थोडी जो  कर लू मनमानी, गुस्से हो जाते है ,कई  रिश्ते नामी। सबके मुझसे सवाल  बहुत  है, सवाल मेरो के जवाब  बहुत है, अपने काम मे बोलने न देते, सब सलाह  मुझको  ही देते, क्या मै बिल्कुल  बिन वजूद हूॅ, या किसी पत्थर का खून हूॅ। क्यू है फिर फर्माइश  सबकी, ऐसे करू या वैसा ,जबकि, कहते है सुनता ही नही है, जाने इसे क्यू, सुझता ही नही है, बिल्कुल  निर्दयी हो चुका हूॅ। पता है क्या क्या खो चुका हूं ? बढो मे जब पिता को खोया, जानू मै ही ,कितना ये दिल रोया, और भी रिश्ते खत्म हो गए, जाते ही उनके, सब मौन हो गए। डर था सबको शायद ऐसा, मांग  न ले ये कही कोई  पैसा, सब के सब मजबूर हो गए, बिन  मांगे ही डर से दूर हो गए, ताया चाचा,मामा मासी, सबने बताई  हमारी   हद खासी, इन सब से हम चूर हो गए  , छोड  सभी से दूर हो गए। फिर  जब हमे लगा कुछ  ऐसा, रिश्ते ही नही अब तो डर काहे का। बस जिंदगी  के कुछ  उसूल  हो गए, बचपन मे ही बढे खूब  हो गए। इक इक कर हमने सब पाया,

घर की याद।

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