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तभी राम मिलेगे।

 

प्रश्न उठा था फिर इक बार,


ध्यान  देना ,होगा उपकार,


इक नारी ने पूछा था  जैसे,


क्या पुरूष  सभी है बिल्कुल वैसे,


ये फिर क्या ,बात हो गई,


पुरूष है तो ,इल्ज़ाम  लगा दो कोई।


ऐसा नही है चलने वाला,


मर्यादित  रहे सभी सब बाला,


माना मन मे कुढन है बाकि,


एक ही दवा  नही है  सब व्याधि की,


सुनो जो सच मे तुम नारी हो,


माना अब पुरूष पर भारी हो,


बात उठाई  जो जैसे है ,


जवाब  उसी मे ही वैसे है।


मै सीता हो जाऊ जो जब,


क्या राम बन पाओगे तुम तब ?


पर ये प्रश्न  पति से ही क्यू ?


भाई पिता के लिए  चुप  मुंह क्यू  ?


क्या वो सभी राम ही है सब,?


जो है तो सीता के रावण ढूंढे  वे क्यो तब?


वैसे भी कहा वो राम हो गए, ?


पर पत्नि उनकी को रावण  हो रहे।


बात इतनी पे खत्म न हुई ,


क्या घर पे उनकी कोई  मजबूरी  न हुई ?


यदि ऐसा है तो फिर माॅ पिता  ने ,


सिखाई  क्यो न मजबूरी क्या हुई है?


पति भी तो  इक इंसान ही है न


लेकिन ,नही वो भगवान  जी है न,


अपने घर का  वो राम ही है तो


मिली न सीता,क्यू उसे सच तो।,


यदि बात की बात न होती,


राम की हालत ,रावण सी न होती।


सीता तो दूर जो तुम मंदोदरी हो जाती


रावण  की भी मर्यादा रह जाती।


वो भी कुछ संस्कारी हो जाता,


दुष्टता रहती पर दुष्ट रह न पाता।


ये प्रश्न  मौलिक है वैसे ,


पर  विचलित  मुझे करते है ऐसे,


बात पुरूष  पर कोई  भी उठा दो ,


चुप  है  यदि वो तो कोई  भी धोखा दो ,


ये सब अपने दिल से पूछो,


सीता हो तो मिले  राम न  फिर क्यू ,


राम  जो  था वो अपने घर का,


बना  दिया अब रावण,  कब का,


क्यू चरित्र  है उसका बदला,


और क्या लोगे उससे बदला,


कुछ  तो चिंतन मनन करो तुम ,


राम जो चाहिए  सीता बनो तुम।


ये तो ठीक  बिल्कुल है वैसे,


जैसी कहावत जैसे को तैसे।


जानता हू बदनाम  मै होऊँगा ,


जो अपनी मन की मै कॅहूगा ।


इतना न पुरूष  को तुम अब तोडो,


इंसान है वो ,अभिमान  को छोडो,


रहा न वो तो संतति  न होगी,


राम न होगा तो , सीता भी न होगी,


बताओ तो तुम्हे किस बात का गुमान  है,?


क्यू सपने तुम्हारे अथाह है ?


सीता ने भी जब मृग सोने की चाह की,


राम ने तब भी उसकी परवाह की,


क्या बनवासिन की ये इच्छा थी,


सारी रामायण, इसी की तो कथा थी।


क्या तुमको लगता है ठीक  था,?


लांछन लक्ष्मण पर लगाना भी ठीक था?


ये सीता थी,तो फिर राम क्या थे ,


क्या वो सच मे खुद  से अनजान थे,


यदि ये जो सच था ,तो राम भी रब था,


सीता की मर्यादा को चिंतित था,


इसी लिए  अग्नि मे छिपाया,


भले ही लोगो ने फिर प्रश्न  उठाया,


और दोषी फिर राम को  ही बनाया।


सब की खातिर  सहा सब राम ने ,


हुई  न सीता कभी उसके नाम मे,


तब  भी सीता को दे दर्जा ऊंचा,


फायदा ही दिया सीता को ही पूछा।


राम सिया से सिया राम हो गए,


रामायण  रच वो खुद  ही खो गए,,


सिया की चिंता  सबको सताती,


पर राम  क्यू यू बदनाम हो गए।


उठा लो सारे शास्त्र है जितने,


नारी के है रूप  कहे जो है जितने ,


सम्मान उसने तब ही है  पाया,


संवारा जब पति के पतित्व का साया।


पति यहा पर  पुरूष  नही है,


वो बिगडैल कोई  दुष्ट नही है ,


परा की प्रकृति  को तो मानो,


उसकी भी चाहत को जानो,


तभी तुम्हे सम्मान मिलेगा,


सच जो कहू तभी राम मिलेगा,


हाॅ सच मे कहू तो तभी  राम मिलेगा।(2)


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यह काव्य कठोर  जरूर  है पर अकाट्य सत्य है।लिखना मेरी मजबूरी है क्योकि मै पुरूष  हू।और अफसोस  मुझे यूं है कि मेरे इर्द-गिर्द  सीता नही है।पर हर नारी को चाहिए  राम। पर वो सीता होना नही चाहती।अब प्रश्न था तो उत्तर भी है।क्योकि दुख है तो सुख भी,दिन  है तो रात भी,फिर वो अंधियारी है तो उजाला भी चाहिए न ।
माना मै व मेरा परिवार  ईश्वर  की अनुकम्पा से अभिशापित है जो जो स्त्रिया यहा आई।वो सब शिकायते ही करती गई  पाई।
पर खुशी यह है कि यहा पैदा हुई सभी सीता है ।वो नही जो मृग मांगे सोने का।बल्कि  वो जो आग मे छिपती है पति के संकेत पर।
बस बात ख़त्म। इस रचना का हश्र जानता हूं सो  कमैंट  की दूर लाइकस की अपेक्षा भी नही है पर पढिए।और  चाहे तो जवाब  दे कि" राम  तब मिलेगा" सार्थक है न।
जय श्रीकृष्ण जय श्रीराम जय श्रीकृष्ण
मौलिक  रचनाकार,
संदीप  शर्मा। (देहरादून से,)
Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com,
Jai shree Krishna g ..


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