एक सज्जन थे शायद कही, किसी अवरोध मे,
कुंठित थे व भरे थे मन के भीतर के,
क्रोध से,
झुंझलाए वो कईयों पर , पर और तो कुछ कह न पाते,
कैसे फिर वो इस स्थिति से कहते सबको कुछ दिखाते,
बस धमका रहे थे कह कर इतना
क्या आप मुझे नही जानते ?
बात बढ गई थी स्वर सुन उस अनजान के,
हानि हो सकती थी भारी इन प्रश्न के बोध से,
बचना होगा ऐसे सब को भीतर के क्रोध से।
एक और परिदृश्य क्यू न प्रस्तुत करू,
क्या आप जानते है मुझे ,
इसके रूबरू करू।
अब के, ये प्रश्न था ,कही किसी अनजान से,
जो बढाना चाहता था,जान व पहचान वह,
यहा जब उनके परिचय हुए, बात कुछ आगे बढी,
बदले तब फोन नंबर ,जुडी रिश्तो की नई ही कढी,
ये भी तो न शब्द थे वही, फिर फर्क था क्या इसका हुआ,
यहा पहले पिटने को थे इधर संबंध, जुडने का हुआ।
असल की जो गहरी सरल,छोटी सी है बात है,
भाव कैसे आपके ,वो शब्द बताते,साहब है,
एक जहा मरहम बनते,वही दूसरे वो घाव है।
क्या आप मुझे जानते है? यह परिचय बता रहा है ये ,
जैसे होगे प्रश्न इसके उत्तर भी वैसे ही बने। ।
जानते तो भाई साहब अपने ही नही सच ये है,
हम भी कहा मानते है जिन सब का प्रश्न ये है।
एक सटीक सा यही उदाहरण यही का यही पर दे दूंगा।
सच्चे हो तो कबूल करना,
पैसा धौंस न कोई दूँगा।
जो मै आपकी रचना को लाइक कभी करू ही नही,
क्या आप मेरी रचना को फिर लाइक करोगे क्या तब भी यू ही,
नही ,नही ,कभी ऐसे होगा देखना कभी नही ,
व्यापार है व्यवहार का ,
क्या मै आपको और आप मुझको,
जानते न हो या फिर की नही।
तभी साथी कह रहा हू कि,
क्या आप मुझे जानते है ?
या फिर बता दू सब जो सच है सब का ,
न मानते है।
मेरा तो सीधा सादा सरल सा जवाब है,
जैसे को तैसे ही रखता,
यही मुझ घसंग बवाल है।
अब जो कहू कि क्या साहेब,
आप मुझे जानते है?
आशा है उत्तर होगा ,
जी, हम आपको पहचानते है।
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मौलिक रचनाकार,
Sandeep Sharma 🙏
Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com Jai shree Krishna g
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