उस घर को जमाना हो गया,
बचपन का घर पुराना हो गया,
सुनी थी ये बात,
इक बच्चे से आज,
उसे क्या पता, कैसे थे वहा के जज्बात,
जो आज का खजाना हो गया,
"अजी सुनते हो,"
"की" आवाज सुने जमाना हो गया।
अब तो पत्नि भी पति से,
बराबरी की बात करती है ,
इसी बराबरी के अधिकार मे ,
उसके नाम से पुकार करती है।
मिल बांट कर होती नही ,
अब कोई कही बाते,
बडे विवाद ,थे पहले भी पर ,
कभी कचहरी नही थे जाते।
और इधर बच्चे ने भी कह दिया,
बचपन का घर पुराना हो गया।
सब कुछ बदल गया अब ,
तो नया जमाना हो गया।
बचपन के घर मे सुने नही थे,
तलाक, छुटन छुटाई के किस्से,
ये जरूर सुना था ,
तेज बडे है कभी पति ,
कभी पत्नि, उनके
सब भले ही उनसे डर डर के रहते थे,
पर मजाल है घर टूटे,
बचा रहता था हर घर,
सो घर घर ही रहते थे।
छीना,झपटी,कुटन कुटाई,
कितनी की अब याद नही,
वो बेफिक्र सी झपकी ,मैने
कब ली थी
सच मे मुझको अब याद नही ,
बचपन का घर कहा गया,
जब रहा नही ,मेरा स्वाद वही,
कहा से ढूंढो जो छोड दिया था,
उस पल का किया न था अह्सास कभी।
बढे बढे दर्द छिपाए, भी ,
खुल कर हॅसा करते थे।
बचपन के ही घर मे ही हमारे,
सुनहरे सफर हुआ करते थे।
याद है मुझको,बढे बूढो की,
आज भी वो लडाई,
मुददा था बहू की किसी का,
समझाने गए थे दादी ताई।
और सम्मान फिर मिला उम्र भर,
बचा घर था बचपन का जिसका,
भरा पूरा परिवार है उनका,
नही हुआ विलग रिश्ता किसी का।
बचपन के घर की फिर देखो ,
और अनोखी,बात सखी ,
बचपना रहता था उम्र भर ,
सब का होता था सत्कार सखी,
आज बडप्पन छीन ले गया,
बचपन किए बिन आवाज सखी,
पैदा होते ही देने लगते 'बाल' को,
अनुशासन के पाठ सखी,
माना वो जब बडा जब होगा,
काम बडे ये आएगे,
पर वो तो बिन बचपन के देखो न ,
सीधे ही बढे हो जाएगे।
क्यूकर छीन रहे हो स्वर्णिम,
पल ये जो हसीन है,
लौटा दो बच्चो को बचपन उनका
नही मामला बनेगा संगीन है।
आओ बडप्पन मे फिर आज ,
नाचे कूदे शोर मचाए ,
बिन वजह की बातो पर ही ,
खिलखिला कर , हॅसते जाए।
बच्चो संग बच्चे बन कर ,
उनका उनको बचपन लौटाए,
इसी धारा मे हम भी कयू न,
अपने बचपन के घर हो आए।(2)
#######
संदीप शर्मा,( देहरादून से।)
(Happy childhood)
Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com Jai shree Krishna g ,
Comments
Post a Comment