तूझे चाहना ,क्या सच मे ,
कोई बडी भूल थी,
जो हो भी गई, तो,
तुम्हे भी तो वो कबूल थी,
फिर क्यू जिद्द ने तुम्हारी,
इक रिश्ते को दफन किया।
इतनी क्या मजबूरी थी,
जो बरकत को हज्म किया
तुमने दिला कर ,
हर पल ,रूखे एहसास,
छीने वो सारे पल जो ,
मेरे थे खास।
वो सब तो न कभी,
लौट कर अब आएगे।
वो तो हो गए धूल,
अब कहा पोंछे जाएगे।
यह सितम तुम्हारे मुझे ,
नही है बिल्कुल भी कबूल
हाँ, माना ,वो मेरा, चाहना तुमे ,
भूल थी ,बहुत बडी भूल ।
#####
संदीप शर्मा।
( देहरादून से।)
Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com,
Jai shree Krishna g ..
Comments
Post a Comment