Skip to main content

तप क्या है ?

 तप क्या है यह एक सामान्य  सा प्रश्न है और जब हम इसके अर्थ को जानने का प्रयास  करते है  तो मन मे धारणा बनती है कि,कोई  साधू या सन्यासी कोई  स्थान विशेष  पर बैठ  कोई  मंत्र रट रहा है।पर यह कतई  सत्य नही है यह तो उन  जन मानस को लगता होगा जो चिंतन मनन से कोसो दूर है जो ज्ञान  शुन्य है।और ऐसे सब विचित्र  विचारो को पुख्ता करने की रही सही कसर चलचित्र  के हल्के व अल्प विकसित कलाकारो की भेंट बन कर रह गई   ,जिन्हने  ऐसे महान  कृत्य को नाटकीय  ढंग से पेश  किया।।

तो इसके सही अर्थ  जानने है तो आइए  एक नवीन  दृष्टिकोण को स्थापित करते हुए  इसके मतलब  को जाने।

"तप" शब्द  दो वर्णो का मेल है 'त'+'प'="तप"।

अब वर्ण  त तम यानि अंधकार  का परिचायक है तो प वर्ण  प्रकाश  का ।

तो पाठकगण  तप से तात्पर्य  तम से प्रकाश  की यात्र हो गई  न।

और यह तम या अंधकार  है क्या वास्तव  मे इसे भी समझे।तम या अंधकार  से तात्पर्य है अज्ञान  की स्थिति  यानि जिसकी हमे जानकारी नही है।वही प्रकाश  की बात करे तो वो स्थिति  जिसकी जानकरी उपलब्ध भी है व हम भली प्रकार से समझते व जानते भी है।तो यही अज्ञान  से ज्ञान की यात्रा का सफर ही तप है 

माननीय  यह बडे अनुशासन  व  ज्ञान की उच्चस्तरीय  स्थिति है इसे आप यू हल्के मे न ले।सयंम, अनुशासन, व कर्मठता से लगन व धैर्य  को बरकरार रखते हुए  प्रयोग पर प्रयोग  व अथक  प्रयास  कि प्रक्रिया  ही तप है ये कोई  मंत्र रटने का कार्य  नही है पर हाॅ जो मंत्र रटना है वो उदेश्य  का लगन का व तब तक सार्थक  व निरर्थक प्रयास  करते रहने का जब तक तय परिणाम  दृष्टिगत नही होते या तय लक्ष्य  हासिल  नही कर लिए  जाते तो आदरणीय गण  अब आप को समझ आ रहा होगा की तप क्या है।

अब आप को एक संस्कृत  का श्लोक  बताता हू जो इस कथन की पुष्ट  करेगा।

वो श्लोक है।

असतो मा सदगमयः,

तमसो मा जयोतिरगमयः

मृत्य  मामृतम् गमयः।

अर्थात। 

हे ईश्वर  मुझे झूठ  से सच्चाई  की और ले चलो,

अब देखा जाए  तो झूठ  क्या है? झूठ  यानि छलावा, भ्रम,व अनजान पन या फिर अज्ञान  की स्थिति  तो यहा से जाना कहा है,तो भाई जाना है जानने को,सच्चाई। वो क्या है जो सच है तो आदरणीय  जो सत्य है वही सच है अब सत्य क्या है ? तो जो शाश्वत है व शाश्वत  क्या है ?जी जो सही सटीक  ज्ञान  व जानकरी है वही सत्य है वही सच्चाई है वही शाश्वत  है तो यह सब ही तो जानने की विधि प्रविधि  तप है।

आगे फिर  कहते है तम से प्रकाश  की और ले चलो तो यह हम पहले भी स्पष्ट  कर ही चुके है कि अनजानपन से जानने तक की सफर की यात्र ही हमे तम से प्रकाश  की और लाती है।

आगे कहते है मृत्यु से अमरता की और तो मृत्यु क्या है खालीपन, शून्यता की स्थिति या आस्तित्व हीन होने की स्थिति तो ऐसी स्थिति से कहा जाने या ले जाने की प्रार्थना  हो रही है तो अमरता यानि आस्तित्व शील होने की, प्रकट होने की, सदैव  होने की कामना हो रही है तो क्या है जो सदैव  रहेगा तो वो है सत्य,ज्ञान, व जानकरी है ।जो हमेशा रहेगी जिसका होना ही आस्तित्व शील होना है।तो यही यात्रा तप को परिपूर्ण  परिभाषित  करती है।

तो अब तो स्पष्ट हो ही गया होगा।कि तप क्या है।

अब सवाल  उठता है ये तप करने वाले है कौन?,

तो जवाब है जो उत्कंठित है।जो जिज्ञासू है।जिन्हे जानना है जो वैज्ञानिक है जो नवीन  को जानने को प्रयास रत है।जिन्हने ठानी है जो कर्मशील है जो तत्व  ज्ञानी है,जिन्ह समाज  व पर्यावरण  व संसाधन  की चिंता है जो ईश्वरीय  सोच व कृपा से परिकृष्त है ।

तो पौराणिक  उदाहरण  देखे तो हमारे शास्त्र हमे ऋषिगण व मुनिगण के विभिन्न  उपकारो व उनकी उत्कृष्ट  भेंटो  की एक लंबी फेहरिस्त  दिखाते बताते फिरते है ये सभी ऋषिगण  तप किया करते थे क्या मंत्र रटते थे ,न न बिल्कुल  नही ,यह अपनी अपनी आश्रम  जो की इनकी प्रयोग  शाला होती  थी उनमे निरंतर  प्रयोग  करते थे, और हर स्तर के वैज्ञानिक वहा मौजूद रहते थे यह सब इतने गहन परिश्रम  व लगन के साथ व तन्मय हो कर करते थे कि इन्हे पता ही न चलता कि समय कितना व्यतीत  हो गया।पर परिणाम  प्राप्त  करके ही हटते थे।और मजे की बात तो यह है कि दूरदर्शी  इतने होते थे कि भविष्य  मे क्या आवश्यक होने वाला है किसकी जरूरत  होने वाली है इस सब को जानकर उनके हल देते थे ।अपने आशीर्वाद  के रूप मे जो उनके तप अर्थात  भरसक श्रम का परिणाम  होती थी।

तो दोस्तो अब  आप समझे कि यह ऋषिगण  कौन थे तप क्या था आओ एक दो उदाहरण  दू।अस्त्र शस्त्र की बात करे तो एक से एक घातक  शस्त्र  जैसे ब्रह्मास्त्र, शक्ति, प्राघ,इत्यादी। चिकित्सकीय क्षेत्र  की बात करे तो कैकयी कौशल्या, सुमित्रा जी का या कुंती का या द्रुपद  का बांझ होने के बाद भी बच्चे जनना  यह आज से पांच से पचास हजार साल पूर्व की बाते है तो यही तप के परिणाम  थे जो विशिष्ट  व अद्भुत  खोजे व अनुसंधान  थे कोई  क्षेत्र  अनछूआ व अनजान न था समय के पल क्षण की जानकारी से लेकर पृथ्वी  की गति के अलावा सूर्य  चंद्र व अन्य  ग्रहो की बात तो जाने ही दो यह अन्य अकाश  गंगाओ से लेकर कितनी पृथ्वीलोक के अलावा अन्य लोको की बाते भी बताते दिखे यह उनके तप यानि प्रयोग व अनुसंधान  का ही नतीजा थे।व है।कब कब सूर्य  चंद्र ग्रहण होगा सबका सब जानकारी प्रमाण  सहित प्रस्तुत है ये क्या मंत्र रटने से आती है नही नही तो ये था तप तम से प्रकाश  की यात्रा।

कृषि  हो सामाजिक पर्यावरण या चिकित्सीय क्षेत्र अथवा कोई  अंतरिक्ष से लेकर कोई  भी अन्य क्षेत्र  सबकी बारीक  से बारीक  जानकारी के तथ्यात्मक ढ़ंग  से पेश करते दिखे ये तपस्वी। 

यू ही नही राजे महाराज गंभीर  समस्याओ  के हल पाने को इन ऋषिगण  की तपस्थली की और भागते थे।और मजे की बात तो यह कि उन्हे समाधान  भी मिलते थे।और तैयार  

महाभारत मे संजय को दिव्य  दृष्ट की बात हो या बर्बरीक की धड़  कटे शीश को जीवित  रखने की बात ,मृत्यु  से वापस  लाने की बात हो या अंगहीन को अंग  देने की बात आज से पचास हजार साल पूर्व  टैस्ट ट्यूब बेबीस। कोई  परिकल्पना  न थी सब संभव  था।और स्त्री  से ही बच्चा जनाना  की शर्त भी छोटी पड गई  पुरूष  से ही पैदा करवा  दिया राजा यवनाष्व  पुलसत्य वंश  का राजा ।ये सब क्या आश्चर्य  मंत्र रटने से होते है ।

मूर्ख है जो ऐसा सोचते समझते है व उपहास उडाते है तप व तपस्या  का पीढ़ी  दर पीढ़ी  होने वाले प्रयास  होते थे ये तप।

अब एक ये प्रश्न  उठता है कि ये सब जंगलो मे ही कयू।

तो जवाब  है कि भाई  एक तो गुप्त  रखना होता था।दूसरे एकांतवास मे चिंतन मनन ताकि व्यवधान न हो तीसरे कोई  हानिकारक  या नुकसान  हो तो संजीव  प्राणि  को नुकसान  न हो।फिर गैसीय  प्रभाव  इत्याद  जंगल  के पेड  पौधे जल्द हवा को शुद्ध करते और भी कई कारण थे

 तो अब आया समझ  की तप क्या है कौन करते थे क्यू करते थे आदि आदि 

जो भी आप समझे या जानना चाहते है तो इस संदीप  के तप को भी सार्थक  करना कमैंट  करके बताना  सही समझ आया या नही 

जय श्रीकृष्ण। जय श्रीकृष्ण। जय श्रीकृष्ण। 

विवेचक 

संदीप  शर्मा। 

Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com Jai shree Krishna g. 






Comments

Popular posts from this blog

सीथा सादा सा दिल।

  है बहुत बडी उलझन, जब समझ न कुछ  आता, निकल जाते सब कोई  , बेचारा दिल  ही रह जाता , कितना कोमल  ये है, समझ इससे है आता , जो चाहे जब चाहे, इसको दुखा जाता, ये सीथा सादा दिल, समझ क्यू नही पाता, सब जाते खेल इससे, यह खिलौना  भर रह जाता। ये कितना सच्चा है , समझ तब  हमे है आता, हम मान लेते सब सच, जब कोई झूठ भी कह जाता। कितना ये सीधा है , तब और भी समझ आता। जब देखते छला ये गया, बना  अपना छोड जाता। कितना ये सादा है, पता तब  है चल पाता, जब हर कोई  खेल इससे, दुत्कार इसे जाता। ये सच्चा सीधा सा, कर कुछ भी नही पाता , खुद  ही लेकर दिल पर ये, हतप्रद ही रह जाता। हो कर के ये घायल , समझ नही  है कुछ पाता, क्या खेल की चीज  है ये, या जीवन  जो धडकाता। इतनी बेरहमी से , है धिक्कारा इसे जाता, ये तब भी सीधा सादा, बस धडकता ही जाता। खामोशी से सब सह , जब झेल न और पाता, कहते अब मर ये गया, तो जीवन  तक रूक जाता। यह सीथा सादा दिल , कितना कुछ  सह जाता। देकर के जीवन ये, बस खुद ही है मर जाता।(2) ######@@@@@###### वो कहा है न दिल के अरमान  ऑसुओ मे बह गए, हम वफा करके भी तन्हा रह

बहुत कुछ पीछे छूट गया है।

  बहुत कुछ  मुझसे  छूट  गया है, यू जीवन ही रूठ गया है, थोडी जो  कर लू मनमानी, गुस्से हो जाते है ,कई  रिश्ते नामी। सबके मुझसे सवाल  बहुत  है, सवाल मेरो के जवाब  बहुत है, अपने काम मे बोलने न देते, सब सलाह  मुझको  ही देते, क्या मै बिल्कुल  बिन वजूद हूॅ, या किसी पत्थर का खून हूॅ। क्यू है फिर फर्माइश  सबकी, ऐसे करू या वैसा ,जबकि, कहते है सुनता ही नही है, जाने इसे क्यू, सुझता ही नही है, बिल्कुल  निर्दयी हो चुका हूॅ। पता है क्या क्या खो चुका हूं ? बढो मे जब पिता को खोया, जानू मै ही ,कितना ये दिल रोया, और भी रिश्ते खत्म हो गए, जाते ही उनके, सब मौन हो गए। डर था सबको शायद ऐसा, मांग  न ले ये कही कोई  पैसा, सब के सब मजबूर हो गए, बिन  मांगे ही डर से दूर हो गए, ताया चाचा,मामा मासी, सबने बताई  हमारी   हद खासी, इन सब से हम चूर हो गए  , छोड  सभी से दूर हो गए। फिर  जब हमे लगा कुछ  ऐसा, रिश्ते ही नही अब तो डर काहे का। बस जिंदगी  के कुछ  उसूल  हो गए, बचपन मे ही बढे खूब  हो गए। इक इक कर हमने सब पाया,

घर की याद।

  आती बहुत  है घर की याद,, पर जाऊ कैसे ,बनती न बात,, करता हू जब इक  हल ,,ऐसे ,, आ जाती बात ,,और ,, जाने किधर से ? इक घर सूना हुआ तब  था,, जब मै निकला, लिए रोटी का डर था,। रोटी के लालच को खूब,, उस घर को क्यू गया मै भूल,, भूला नही बस वक्त ही न था,, इस रोटी ने,,न दिया समा था ,। हो गए हम अपनी जडो से दूर,, जैसे पेड  एक खजूर,, पंछिन को जो छाया,,नही,, फल भी लगते है बहुत  दूर।। आती बहुत है याद उस घर की,, कहती इक लडकी फिर, चहकी , पर तब वह उदास  हो गई, बात देखो न खास हो गई है। जिसमे उसका बचपन था बीता, ब्याह क्या हुआ ,वो तो फिर  छूटा,, इक तो जिम्मेवारी बहुत है,, दूजे  पीहर की खुशी का न जिक्र है,, मायके मे ,इज्जत भी तो न मिलती, करे भी क्या मजबूरी  बहुत सी ,, पहले तो चाॅव  वो कर भी लेते थे,, मुझको घर बुलवा भी लेते थे,, जब से हुई भाई की शादी,, बुलावा न आता ,,वैसे शाह जी,, अब तो रस्मे  ,निभाने लगे है,, घर मे कम बुलाने लगे है।। यही  है अब दर्द  का राज,, घर की बहुत  आती है याद। अब सुनो इक सहमी सी बात, जिससे  रोएगे  सबके जज्बात, न भी ,तुम जो रोना चाहो,, तो भी रो देगे