वो झूठ का सामान बांध,
सच दिखाना चाहती है,
जाने जिंदगी को,खाक मे
खुद ही ,मिलाना क्यू चाहती है।
फितरत मे बस बनावट ही ,
बनावटी ही रिश्ते का,
जाने मंजर ये झूठ के ,
किसको दिखाना चाहती है,
सुर्खी बिंदी लाली,बिछुए,
पहने कभी घर पर नही,
बाहर जा पहन कर इनको,
किसको रिझाना चाहती है।
जिदगी मेरे संग उसे रास आई ही नही,
वो शायद यह मुराद ,
किसी आस बिताना चाहती है।
अदालत,सावधान इंडिया के डरावने मंजर,
जाने कयो वो वहम,
मेरी जिन्दगी मे मिलाना चाहती है,
दो घडी ,बैठी नही ,कभी वो ,पास मेरे चैन से,
वो जिंदगी फेसबुक पे ताउम्र बिताना चाहती है।
आज तक इस घर को उसने अपनाया ही नही,
शायद वो पहले छोडे घर को लौट जाना चाहती है।
गठ जोड हुआ शायद कुछ खास ही मजबूरी होगी,
गठ जोड तोड वो साथ मेरा छोड जाना चाहती है,
बेटे को करके वो परे सास को बुरा ही कहे,
यह कौन सी नई रिवायत वो आप चलाना चाहती है,
सब सह रहे है मंजर, बेरूखी ,बेखुदी,के सब ,
तब भी वो खुद ही दुखी है ,
यह जताना चाहती है।
सब कुछ करके खत्म ,
एक घर से चली थी दूसरे घर,
अब मन भरकर यहा से आगे बढ जाना चाहती है।
बस सभी भले लगते है छोड हमको,
हम क्या करे जो ,
ऐसे ही हालात वो रखना सदा ही चाहती है।(2)
जाने क्यू का प्रश्न अब मुझको तो कोई दिखता नही,
ये रिवायत व्यापार की सी शायद ,
कीमत लगाना चाहती है।(2)
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आजकल अक्सर ये हालात पुरूष महसूस कर रहे है,।घर टूट लिए है इन सब से पर सब बेपरवाह हो एक तरफा जिद्द को लिए है।समझ नही आता क्या औरत का काम चार रोटी बना कर घर पर एहसान करना है या घर के सुख-दुख मे शामिल होना। संकेन्द्रित रहना आत्म सम्मान नही है।
ये कुमति है।
फिर भी अब यह हालात है नकार तो सकते नही क्या कहोगे आप।
किसी पे समाधान हो तो बताए।हम तो हार चुके भाई।अथाह ख्वाहिशो के आगे।
यह वास्तविकता है जनाब ।यकीन मानिए।
जय श्रीकृष्ण जय श्रीराम जय श्रीकृष्ण।
संदीप शर्मा। देहरादून से।
Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com ,
Jai shree Krishna g aapka ..
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