हमारी सनातन परंपरा उत्कृष्ट परम्परा रही है।उसमे अथाह ज्ञान व जानकरी का समावेश रहा है ।पर वो नीरस न लगे सो इसे संकेत या कहानियो से समझाया गया।अब बौध्दिक विकास वाले तो इस पर विश्लेषण कर आत्म चिंतन कर इसके अर्थ पा लेते है या कहे जानने को लगे रहते है पर आमतौर पर कुछ लोग इसे कथा कहानिया या किस्से समझ इनकी उतनी कदर नही करते। अन्ततः परिणाम यह होता है कि यह धरोहर खोती जा रही है।
आप को बता दू कि ऐसा कई बार पूर्व मे भी हो चुका है।यह धरोहर जो ज्ञान गंगा है जब लुप्त हुई तो पुनः इसको पाना या इस परंपरा या निधि की खोजना ही सागर मंथन है।अब यह भी सांकेतिक रूप से ही तो समझाया गया।और फिर इसमे यह नियम भी न था कि सुर अथवा असुर या देव अथवा दानव म दोनो ही प्रयास करे ।अब जैसे जैसे प्रयास होते जाएगे।वैसे वैसे हमे इनके अर्थ पाते जाएगे।हमारे अर्थ मिलते जैसे हमारी बुध्दि होगी वैसे हो जाएगे।और जिसका इस से कोई फर्क नही कि कौन खोजे से ही कोई खोजे देव या दानव ,उसके प्रभाव वैसे होगे यानि अस्त्र बनाया था सुरक्षा के लिए अब उसकी धौंस देने लगे है। सो कोई देव हो या दानव कोई भी खोजे अब आप देखे यदि ऐसा न होता तो रावण जो आपकी दृष्टि मे दानव था कितने अनुसंधान कर कितनी औषधियो को खोज कर समाज को दे गया कितने नियम कितने अस्त्र शस्त्र ओर एक बात बताऊ सबसे बडा गुण वो दानव देकर गया वो थी भक्ति ,जो वो इतना भावुक होगया कि अपने शीश काट काट चढाने लगा ।हालाकि आप कहोगे कि स्वार्थ था तो महाशय माना तो आप स्वार्थ के हित ही चढाए न अपने अंग देखू कर पाते है या नही।अब लौटते है अपने टॉपिक पर कि जिस अर्थ से हम।विश्लेषण करेगे उतना ही हम सार्थक उत्तर पाते जाएगे।व उस निर्धारित ज्ञान या विधि अथवा परंपरा को पुनः पा लेगे।अब यह भी समझे कि यह विधि या परंपरा वास्तव मे है क्या। तो पाठकगण यह कुछ नियम या जीवन जीने का ढंग है जो आपके चारित्रिक जीवन को निखार नैतिक होने से आपके जीवन को अर्थ देता है।अब कोई इसे जो सांकेतिक भाषा मे समुद्र मंथन मे कह रहा या समझा रहा है या कोई कैसे।पर यह लुप्त हुआ ज्ञान विज्ञान समस्त सागर की गहराई मे चला गया कौन से सागर मे गया ,यह भव सागर मे गया समझे। जी ,औषधिया,वेद,पुराण, गायत्री,और तो और कल्पवृक्ष, कामधेनु आदि आदि यहा दो की मै व्याख्या कर रहा हू ,एक कल्प वृक्ष व दुसरे कामधेनु बौध्दि स्तर मेरा जैसा है वैसा प्रयास करूगा सुधार की पूर्ण गुंजाइश है वो आप करना अथवा कमैंट करना कि आप इस विषय पर भी ओर यह कहना चाहते है या जोडना चाहते है मुझे खुशी होगी।और यही तो मंथन वास्तविक है।यह सागर जलमग्न सागर नही है ।अपितु भव सागर है जिसमे हम गोते खा रहे है।
यही जन्म-जन्मांतर की भवाटवी से हमे विश्वास व वैज्ञानिक आधार खोजते हुए जो समाज के कल्याणार्थ हो अनुसंधान कर उसे सामान्यतौर पर स्वीकार करना ही परम्परा है। व सागर मंथन है। तो आइए पहले कामधेनु व कल्पवृक्ष को समझे।
कहानी तो कल्पवृक्ष व कामधेनु की पौराणिक गाथा यू कहती है कि यह देवो की धरोहर थी कही स्वर्ग मे थी फला ने उनसे देवताओ से लड कर या तपस्या से पाया ।अब आप देखे तो पाने के दो ही तो ढंग है छीनना या मेहनत कर पाना।अब इन दोनो के परिणाम यथा काज व आचरण तथा गुण। कैसे सो छीना है तो भय है कब चला जाए,अरे किसी को पता न चल जाए या अपनी ही मद मे चूर उस वस्तू विशेष की कदर ही नही न ही सही उपयोग तो यह तो हुआ छीनने का स्वाद,
वही दुसरे जिसका ज्ञान है या जो उसका अधिकारी है उससे विधिवत उसकी आज्ञानुसार लेना।तो वो आपको उसे कैसे अपनाना है या व्यवहार मे कैसे लाभदायक होगा सब बताया जाएगा व कोई भय तो है न फिर शाश्वत आपका व अब आप इसे भोगे व आनन्दित हो।तो कौन सी विधि आप हासिल करने को अपनाते है वो आपकी पात्रता निर्धारित कर देता है की अच्छी है या बुरी अर्थात दैविक है या आसुरी।जैसी है वैसे ही परिणाम ।जो पहले ही बता दिए है।
तो चलो काम धेनु को समझे पहले।
कामधेनु। कहते है यह स्वर्ग की वो गाय है जिससे जो आप चाहे सो इससे प्राप्त करो।तो आदरणीय आप बुध्दि का प्रयोग करे तो यह संकेत किस और है ।क्योकि यह बात जो वास्तविक है पर अवास्तविक सी लगती है ।मान लो मेरी इच्छा हुई की मुझे हलवा चाहिए ,अब चाहिए तो मैने काम धेनु से कहा तो उसने मुझे झट से दे दिया।कथनानुसार तो यही तात्पर्य है आदरणीय पर असल बात को समझे ,क्योकि आप बुध्दिमान है,यानि आपको बुध्दि पर मान कब होगा जब प्रमाणिक बात करेगे ,श्रेष्ठ बात सही ढंग से रखेगे।तभी तो न तो फिर काम यानि इच्छा अब इच्छा हुई तो प्रयास हुआ फल को यहा हलवा खाने की कामना हुई सो साधन विहिन थे जो माँगे गए ( यानि जुटाने है ) वो साधन थे विधि थी यानि आपने हलवे को खाने की सामग्री को सोचा या मांगा तो वो तो थी आटा /सूजी,घी,शक्कर,व काजू मेवे तो इनकी कामना या लालसा जो कि तो यही इच्छा आपके प्रयास जो व्यवहारिक कर्म मे तब्दील हुई आपने मेहनत कर अर्थ यानि धन पाया ,धन आया तो वो सामान लाए,फिर उससे हलवा बनाया तो चखा पर वो भी स्वतः अकेले ही नही बल्कि बांट कर उससे यह हुआ की एक तो यह प्रसाद बन गया दूजे,और भी प्रेरित हुए। तो यह है कामधेनु की कहानी धेनु यानि धुन, धुन पाने की धुन बनाने की धुन ,काम इच्छा तो इच्छा पूर्ति की धुन से जब प्रयास होगे तो सफलता से पूर्व तो रूकोगो नही न ।जब ऐसा होगा तो कामधेनु ही तो दूही गई। अब किसी गाय के दूओ तो सीधा हलवा थोडा ही निकल आएगा।तो यह है तात्पर्य व राज़ कामधेनु का जो सागर मंथन की भेट हैयानि वो परम्परा समझना विधिवत समझना यही है सागर मंथन। यानि विचारो से उपजी है व जब यह विचार जो पौराणिक थे घुम है उन्हे खोजना है ,यही परम्परा जब परंपरागत रूप से स्वीकार जन मानस ने कर ली तो सनातन अर्थात सबकी बन गई।
यही कहानी कल्पवृक्ष की है यह पूर्णतया वैज्ञानिक है कारण कल्प वृक्ष।
कल्प:- यानि कल्पना अब आपने कोई कल्पना की कि यह चीज ऐसी हो जाए तो अब मन मे आ गया अंतः आपकी बुध्दि एक वृक्ष की भांति आपनी बौध्दिक जडो का विस्तार दूर दूर तक कर अपने विचार को मजबूत आधार प्रदान करेगी।इस इच्छा को भी जो काल्पनिक है साकार करने के लिए कामना की वृक्ष की जडो को ही सींचेगी ताकि यह कल्पना साकार हो।फिर जब प्रयास सार्थक होते जाएगे तो धीरे धीरे यह वृक्ष बडा होगा यानि आप लक्ष्य की और बढने लगेगे।तो यही प्रयास सुदृढ होते होते आपकी कल्पना को आपके अथक प्रयास से काल्पनिक रूप से जब वास्तविक रूप मे साकार रूप मे परिवर्तित हो जाएगी तो यह कल्प वृक्ष की देन हो गई। सो बौध्दिक जन यही कहानी है सागर मंथन की कामधेनु की व कल्प वृक्ष इत्यादि की।यही मेरी बुद्धि सोच समझ पाई है ऐसा नही है कि मोबाइल के एप्पल 14 की इच्छा हुई और किसी पेड से मांगा तो वहा लटक रहा है आप देखे सब सांकेतिक आधार पर कहे गए उपदेश व तरीके है समझो व उस पर काम करो अन्यथा उपहास के पात्र बने व अपनी वैज्ञानिक महान संस्कृति का मजाक उडवाओ व उडाओ। पर ध्यान से क्योकि यह उस संस्कृति का उपहास नही आपकी अल्प बुद्धि का उपहास है समझे।
समझने वाले तो समझ भी गए। जो न समझे वो अनाड़ी है।
एक और बात बताऊ यह कल्प वृक्ष से फल पाने वाले लोग कौन थे व है ये प्रश्न का उत्तर आप दे दे तो मै स्वयं को धन्य मानू हालाकि पूछने पर तो मै इसका उत्तर आपको दे ही दूँगा।
तो और विचार करे सागर मंथन है चल रहा मै असुर हू आप देव तो आप भी योगदान दे माननीय
जय श्रीकृष्ण जय श्रीराम जय श्रीकृष्ण। करे मंथन।
सप्रेम भेंट।
विवेचक
पौराणिक व सनातन,
श्रीमदभागवत गीता जी।
स्वरचित मौलिक रचनाकार।
Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com,
Jai shree Krishna g
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