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बहुत कुछ पीछे छूट गया है।

 

बहुत कुछ  मुझसे  छूट  गया है,


यू जीवन ही रूठ गया है,


थोडी जो  कर लू मनमानी,


गुस्से हो जाते है ,कई  रिश्ते नामी।


सबके मुझसे सवाल  बहुत  है,


सवाल मेरो के जवाब  बहुत है,


अपने काम मे बोलने न देते,


सब सलाह  मुझको  ही देते,


क्या मै बिल्कुल  बिन वजूद हूॅ,


या किसी पत्थर का खून हूॅ।


क्यू है फिर फर्माइश  सबकी,


ऐसे करू या वैसा ,जबकि,


कहते है सुनता ही नही है,


जाने इसे क्यू, सुझता ही नही है,


बिल्कुल  निर्दयी हो चुका हूॅ।


पता है क्या क्या खो चुका हूं ?


बढो मे जब पिता को खोया,


जानू मै ही ,कितना ये दिल रोया,


और भी रिश्ते खत्म हो गए,


जाते ही उनके, सब मौन हो गए।


डर था सबको शायद ऐसा,


मांग  न ले ये कही कोई  पैसा,


सब के सब मजबूर हो गए,


बिन  मांगे ही डर से दूर हो गए,


ताया चाचा,मामा मासी,


सबने बताई  हमारी   हद खासी,


इन सब से हम चूर हो गए  ,


छोड  सभी से दूर हो गए।


फिर  जब हमे लगा कुछ  ऐसा,


रिश्ते ही नही अब तो डर काहे का।


बस जिंदगी  के कुछ  उसूल  हो गए,


बचपन मे ही बढे खूब  हो गए।


इक इक कर हमने सब पाया,


इस जीवन  की सारी माया,


कपडे लत्ते,,मकान  और गाड़ी,


सीख भी ली थोडी दुनियादारी,


बस इक गलती यहा हो गई,


तस्वीर  बदल दी पर ,
पर संस्कार न कोई ,
यही से सब वापस  आ लोटे,
गुम हो गए  थे, जो रिश्ते  खोटे,

पर अब सब लगते थे बेमानी,
दिल ने जगह दी दिमाग  ने न कही,
दिल ले कर बैठा था शिकायत,
उसकी हमने दबा दी चाहत,

पिए खून  के घूंट बडे  कुछ
शिकन न लाई सूरत पर  कही कुछ,
इन्ही से हम नमकीन हो गए,
कडवे कडवे  से नीम हो गए।

जो जो आया गले लगाया,
हमसे वैसा न बन पाया,
जो सब मद मे थे चूर  हो गए,
खडे वही है ,यहा थे खडे,

अपनी यही है राम कहानी,
क्या सुनोगे,दर्द हमारे ओ जानी,
सब ने कुछ  कुछ  लूट लिया था,
बहुत  कुछ  पीछे छूट  गया था।।(2)
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मौलिक रचनाकार,
Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com,
Jai shree Krishna g


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