ये जीवन मे एक दिन का मुकाम,
सच मे है बडा महान,
जो सोचा ,तय किया, और बढ चले,
तो निश्चित है,उस पल को जीवंत होते देखना,
जो सोचा था "जीवन मे एक दिन। "
यू तो हर कोई मुसाफिर है ,
मंजिल का अपनी पर पहुँचेगा तभी,
जब स्वेद व श्रम का इत्र बिखेरेगा ,
खुद से अनेक दिन,
तब आएगा वो प्रतीक्षित सा ,
जीवन मे एक दिन,
कितना कुछ साकार होने को बैठा है,
जीवन का आकार लेने को समेटा है,
जो प्रतिक्षा मे है कि कोई संवारेगा,
हमको पुकारेगा, जीवन मे एक दिन।
इक "उधेड से बुन""आकार से निराकार"
की यात्रा का पडाव है ,
जीवन का सोचा वो मुकाम,
जिस पर चल कर पहुंचना है,
जीवन मे एक दिन।
क्या कामना से काम और फिर तमाम ।
होना ही नही है जीवन मे एक दिन।
कितना ,सच मे कितना जो पाया है,
जो पा रहे है ,जो पाएगे, का सब मुकाम है,
यह जीवन का एक दिन।
जिसके लिए आए थे ,वो सोचा क्या,
जीवन मे एक दिन।
जो मर कर भी रह जाएगे
क्या किया कुछ वैसा ,
जीवन मे एक दिन,
हरि भजन ,हरि सुमिरन,जैसा कुछ न चाहिए,
जो कर दिया खुश किसी जीव को ,
जीवन मे एक दिन।
बैठो ,सोचो व स्वीकारो,कि हमने तो बिता दिया बिन कुछ किए ही जीवन का प्रत्येक दिन, ।
अब थो सोचो समझो कि करना है वो सब जो न है किया ,
जीवन मे किसी भी दिन।
ताकि जब लौटे न रहे पछतावा,
कि हमने तो कुछ किया ही नही
जीवन मे एक भी दिन।
जय श्रीकृष्ण।
मौलिक रचनाकार।
आपका अपना
संदीप शर्मा। देहरादून से।
क्या जब लौट जाऊँगा,मै भी शांत हो ।
आप करोगे मुझको याद ,जीवन मे किसी एक दिन।
जवाब कमैंट बाक्स मे दीजिएगा।आज ही के दिन ताकि पढ सकू और समझू कि बहुत है पूंजी जो लुटाई यहा समय की ।अब पाई है वो जीवन मे एक दिन।
जय श्रीकृष्ण।
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