मन विचलित यू है,
यह दिल की सुनता है नही क्यू है?
सब इसके ही तो झमेले है,
वर्ना कहा सब अकेले है।
यह सुनता ही कहा है किसी की,
बस करता रहता है चित की,
ये सोचे भी कुछ न है जी,
क्या होगा गलत क्या होगा सही,
इसकी चंचलता को न तुम सुनो ,
जो हो सही बस वो ही चुनो,
तो ये विचलित भले हो जाएगा,
पर दिल से न कल्पाएगा।
तब सब अच्छा हो जाएगा,
जब सही और पग तू बढाएगा,
जाने कितनी सफलताओ के ,
तब समंदर तू लंघ जाएगा।
मान तो तेरा बढेगा ही ,
मर्यादित इज्जत भी पाएगा।
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जय श्रीकृष्ण
संदीप शर्मा।
मेरा मन,
क्यू तुझे चाहे ,
क्यू तुझे चाहे ,
मेरा मन।(गीत के बोल भी है )
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