जय श्रीकृष्ण साथियो।
अपने स्नेहिल श्रीकृष्ण जी की कृपा राधे रानी के सानिध्य के साथ हम सब पर सदैव बनी रहे।वैसे वो वैसे ही करूणामयी है प्यार लुटाते ही रहते है ।तो
साथियो यह सीरीज की विषय वस्तु मुझे कुछ न कुछ भीतर से ही प्रेरित करती है कि इस पर मै कुछ न कुछ अवश्य आम शब्दो मे लिखू ,ताकि जन समुदाय आसानी से सब समझ जाए।व वो दिग्भ्रमित न हो क्योकि धर्म कर्म कोई बहुत जटिल प्रक्रिया नही है जिसे बताया या उलझाये गया है।सिर्फ सावधानीपूर्वक अपने कर्तव्य पूर्ण कर परहित को लाभान्वित करना ही इसका मूल उदेश्य है।पर साथ ही व्यक्तिगत विचारो का विकास व उत्थान भी हो यही इसका परम व एकमात्र उदेश्य है। बस है क्या कि यह सब एक कडी के रूप मे आपको हमको अपनाना होगा ताकि आप वो सब हो जाए जिन्हे आप ढूंढ रहे है।
आपसे पूछू तो किसकी तलाश है ?
तो शायद आप अध्यात्मिक होते हुए कहे ईश्वर की ,
तो किसे पाना है ,
तो कहोगे ईश्वर को
तो सामान्यतः आमजन मंदिर-मस्जिद यूं ही तो जाते है ,ताकि वो उस अदृश्य शक्ति को अनुभूत कर सके। उससे अपनी बात कह सके पर कितनी हैरानी की बात है कि वो स्वयं ईश्वरीय अंश हो अपनी खोज करने की बजाय उसे खोज रहे है जो अदृश्य है। निराकार है।आप स्वयं वही है, जिसे आप खोज रहे है पर वो खोज दूसरो मे रहे है।यहा एक बात मै स्पष्ट कर दू कि वो ऐसा क्यू कर रहे है हम सब ?
इस का कारण है क्योकि वो जो जैसे जरा के बीच भ्रूण होता है तो पहचान मे नही आता ,उसी भांति उसे स्वयं मे वह ईश्वर नजर नही आता जो है तो इतना निकटस्थ की आप ही हो पर धूमिल इतना कि काम,क्लेश, राग लोभ,द्वेष आदि आदि के न जाने कितने आवरण लिपटे है जिन्हे धोने पर ही आप वो होंगे जिन्हे आप खोज रहे है।और फिर वैसे ही नजर आए भी कैसे क्योकि वो समस्त गुण कहा है उसमे जो छिपे है उत्तमता के उन्हे ही तो निकाल संवारना है यही खुद को निखार वह होना है जिसे वो खोज रहा है।
तो चलिए इसी कडी मे आज ईश्वरीय विचार की इस विषय वस्तु "तत्वदर्शी" पर अपने विचार रखे ।
कि:-" तत्वदर्शी कौन है,किसे समझे,?"
तो साथियो आओ जाने इसका विशुद्ध उत्तर जो मेरी निज सोच कहती है या बुद्धि समझ पाई है।
पहले तो समझे तत्व क्या है ?
तत्व यानि विशुद्ध पदार्थ element.:- a substance of one kind .n in its purest form.जिसमे सर्वत्र एक से कण मौजूद है यानि कोई मिलावट नही ।अतः यह मात्र शुध्द नही बल्कि विशुद्ध है purest form of atom or oneself. ।तो तत्व यानि मौलिक रूप से विशुद्धता का होना हुआ।है न ।
अब दर्शी किसे कहे ?
तो आप इसे ऐसे कह सकते है जो एक मत या विषय पर सटीक सार्थक व शुध्द राय या विचार रखता हो।
यानि वो ज्ञानी या महापुरुष जो किसी विषय वस्तु की पूर्ण जानकारी रखता हो प्राचीन से नवीन तक तो ऐसे विचार या दर्शन रखने वाले को ही दर्शी कहेगे।
अब दोनो शब्दो का संयोजन करे तो बनता है तत्वदर्शी।
तो आशा है स्पष्ट हो गया होगा कि तत्वदर्शी कौन है ?
तो एक सटीक व परिपूर्ण उत्तर या जवाब है वो दर्शन या विचार प्रस्तुत करने वाला महापुरुष, जिसे उस विषय का पूर्व से लेकर नवीन तक का स्पष्ट ज्ञान है।ऐसे पुरूष योगी भी हो सकते है व महाज्ञानी भी।एक तरह से वह अपने आप मे एक पूर्ण शख्सियत है जो किसी अन्य को भी परिपूर्ण करने मे सक्षम है।a complete encyclopedia. In itself n can make others a complete personality. In purity themselves. Or itself.
यहा गीता मे श्रीकृष्ण बार बार कहते है कि तत्वदर्शी ऐसे कहते है उनकी शरण लो आदि आदि।यह गीता ज्ञान मै तुम्हे जो बता रहा हू तू इसे तत्वदर्शी के पास जा कर समझ.यह सब उन्होने कहा है और यह भी कि वो क्या कहते है और साथ ही वो यह भी कहते है कि ऐसा तत्वदर्शी कहते है।
क्यू कहा ऐसे चलिए अब ये जानते है।
तो यह भी जान लो वो ऐसे यूं कहा ताकि वो सज्जन आपका स्तर पहचान कर आपकी आत्म शुद्धि का वही से प्रयास करे ।और आपके उत्थान को सहायक होते हुए परिणाम तक पहुंचा दे।सहज है जब आप कही चलने को होते है तो कई बाते सामने होती है। भटकाव व अनमना पन से लेकर विभिन्न राहे रास्ते उसी मंजिल के प्रस्तुत करती है व रास्ते भी अनेकानेक है व वहा तक पहुंचने के तरीके साधन सब अलग अलग। तो तत्वदर्शी आपको यही से वहा का मार्ग दर्शन देते हुए, उस भटकाव से संभाल ले जाएगा व आपके रूचिनुसार आपको परिशुद्घी करेगा ताकि आप डगमगाए नही ।तो वो ज्ञानी-ध्यानी पुरूष तत्वदर्शी की श्रेणी का ही होगा न।जो यह क्षमता रखता होगा।
अब आप और देखे जो राम या कृष्ण को भगवान नही मानते तो उनके लिए वो समान्य से राजे महाराज ही तो है न ।पर उनको ईश्वर या ईश्वर तुल्य किसने बनाया ।तो महाराज ये कर्म या महान कार्य इन तत्वदर्शी के विचार रखने वालो के काम है।उन्हे इनमे वो असमान्य लगा जो समान्य से ऊच श्रेष्ठ व श्रेष्ठतम था तभी उन्हे भगवान का दर्जा मिला व दिया गया ।ऐसे ही नही उन्हे ईश्वर स्वीकार किया गया महाराज। उन्हे पूरी कसौटी पर कस कर इन तत्वदर्शी विचाराधारा के युगपुरुष ने अपने विवेक विज्ञान के वैज्ञानिक ढंग से सोच समझकर ही इन्हे ईश्वर का दर्जा दिया।
क्यू राम थे भगवान त्याग की मूर्ति मे कौन कम था चारो मे ,कोई बताए तो।ऐसे ही बलराम जी को क्यू नही कह दिया ईश्वर सरीखा राजे तो वही थे चाहे गोमांतक के कहो या द्वारिका के।फिर कृष्ण जिन्होने निहत्थे रह कर युद्ध ऐवे ही जितवा दिया ।भई कौन कहे कि कितनी विशिष्टता थी कितनी कसौटियो पर परख कर उन्हे ये पद सौंपा गया।
क्यू एक वानर हनुमान जी को ही वीर व महान माना गया बाकि सब क्यू कमतर रह गए। तो महाशय। यह तत्वदर्शी सरीखे वैज्ञानिक व महापुरुष ही बतासकते है या थे ।जो मानवीय से उपर की विचारधारात्मक कडी का विवेचन व विश्लेषणात्मक अध्ययन करने मे अपनी हर बौद्धिक कौशल के अनुरूप कस कर देखने के उपरांत तय,करते रहे व करते आए है।
तो मुझे लगता है काफी कुछ मेरी वैचारिक बुद्धि कौशल इन विचार-विमर्श के तत्वावधान की ,तत्वदर्शी की परिभाषा को आपको समझाने मे सफल रही होगी।
फिर भी कोई संदेह हो तो विचार करे
कमैंट अवश्य करे कि कमी कहा है ।व आप इससे बेहतर यू कह सकते थे या है।
मुझ पर जितनी कृष्ण ने कृपा की उतना मै जान पाया अब इसके उपर के स्तर को वो बताएगे जिन पर कृष्ण कृपा अधिक है।
तो जय श्रीकृष्ण। जय श्रीकृष्ण। व श्रीकृष्ण।
मिले है पुनः किसी अन्य चर्चा मे।
अपना प्यार अवश्य दे।कृष्ण कृपा खूब बरसे सब पर बरसे।
मौलिक रचनाकार।
संदीप शर्मा। देहरादून से।
Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com, Jai shree Krishna g.
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