आई है ऋतु बसंत,
जीवन को देती संदेश अनंत,
पीली पीली सरसो की क्यारी,
लग रही जैसे,पीताम्बर ओढे त्रिपुरारी,
कुस्मित पुष्पो के अंदाज को देखा ,
राधे गाती मल्हार ह्रदय देश का।
मलय बसंत की बयार तो देखो,
धरा का नववधू सा श्रृंगार तो देखो,
हरियाली,है पेडो पर छाई
तितलियां भंवरो मे मस्ती छाई,
नाच रहे है फूल फूल पर ।
इतराए है प्रकृति के नूर पर।
पतझड़ पत्ते झाड़ रहा है,
नए वसन को उतार रहा है।
अमराई पर है बौर जो आया
प्रिय प्रियतम का मन भरमाया,
पंछी चहचहां रहे है,
मिलन को गीत वो गा रहे है।
युगलो का लगा योग तो देखो,
कैसा कर रहा मदहोश है देखो।
आलिंगनबद्ध नवयौवन है,
करने चले नवीन सृजन है।
जिधर देखो उधर ही रस है,
प्रेम पर रहा अब किसका बस है।
मयूर कोकिल पपीहे की बोली,
गौरैया, कर रही ठिठोली,
मधुमक्खिया है भीं भीं करती,
जैसे नदिया कल कल बहती,
चूस रही है कुसुमो का मकरंद,
हर और फैला है आनंद।
देखी प्रकृति की छटा निराली,
जैसे ब्याहता ने मेंहदी रच डाली,
खुशिया बहार मे छाई हुई है,
युगलो मे मस्ती छाई हुई है।
खोना न यह कोई भी पल छिन,
जीवन मे रखना उत्साह तुम हरदिन ।
तभी बसंत खिलता रहेगा,
यह नव सृजन का हिस्सा रहेगा।
दो को एक बनाने को यह,
प्रेम का रस बरसाता रहेगा।
कवि संदीप की चाह है यह तो,
मलय बसंत सदा रहे कहे तो।(3)
@@@@@#####
जय श्रीकृष्ण।
मौलिक रचनाकार।
संदीप शर्मा। देहरादून से।
Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com ,
Jai shree Krishna g ...
Comments
Post a Comment