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व्रत व्रति व वृत्ति। ,

 

दोस्तो जय श्रीकृष्ण।
हम सब पर करूणामयी  राधे रानी की असीम  कृपा बरसे।व श्रीकृष्ण  सदा सहाय रहे।
आज साथियो मन ने सोचा कि चर्चा की जाए।
"व्रत  व्रती  वृत्ति " पर,
की यह क्या धारणाए  हो सकती है।क्योकि यदि  भूखे रहना ही व्रत है  ,जो कि मुझे नही लगता ऐसा है।क्योकि यदि भूखे रहने से व्रत होता तो आधा पेट  भोजन पाने वाले को आधा फल  तो मिलता ही न।पर ऐसा नही है ।या कभी कभार  भूखे ही सो जाने वाले को पूरा फल तो मिलना ही चाहिए था न। क्योकि वो तो फिर  पूरा ही व्रती ही तो कहलाता है  और यदि वो व्रती  है तो उनको उसका  फल भी अवश्य ही  मिलना चाहिए  था। पर मैने आज  तक ऐसा  होते नही देखा कि कोई  शख्स भूखा रहा हो।व उसका व्रत  माना गया हो। जैसे किसी कथा किस्सो  मे बताया गया है।या हमने पढा।
तो फिर  क्या है सखी "व्रत  व्रती की वृत्ति"  की कहानी आइए समझने की चेष्टा  करे।पर याद रहे मेरा निष्कर्ष  न तो अंतिम  है न ही कोई  शास्त्र  से अनुमोदित। यह तो मेरा स्वतः का चिंतन  व विश्लेषणात्मक  बुद्धि  का विवेचन है।
आप पूर्णतः इससे सहमत  व असहमत हो सकते है।क्योकि यह विश्लेषणात्मक  विचार मेरे व्यक्तिगत है।
आइए पहले जाने की व्रत  क्या है ?
तो उत्तर जो मुझे दिखता है वो है  व्रत :-उदेश्य  या लक्ष्य है  जो निर्धारित किया है अर्थात  वो प्रयोजन  जिसको हासिल  करना है।तो यह कुछ  भी हो सकता है अर्थात  यह वैज्ञानिक, सामाजिक, आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक जैसे किसी भी विषय  से संबंधित हो सकता है।
तो उदेश्य  व लक्ष्य  जितना स्पष्ट व सटीक  होगा उसके परिणाम  उतने ही सटीक  व उदेश्य  केंद्रित व फलदायी होगा। है कि नही।
तो व्रत  का मायने या अर्थ मात्र व मात्र  उदेश्य  को इंगित  करना है।
{इसकी भूमिका व प्रस्तावना  मेरे अनुसार  इतनी ही है।स्पष्ट  व निश्चित  उदेश्य। }
चलिए  अब बात कर लेते है व्रति की,।की।
*  :-     व्रती  कौन है?
तो स्वभाविक है कि अब जिसने लक्ष्य या उदेश्य  निश्चित  किया है वो व्रती  है ,अर्थात  वो व्यक्ति  एक व समूह मे अनेक  हो सकते है जिन्होने  किसी लक्ष्य  को साधा है या पूर्ण  करने को ठाना है।तो यहा उदेश्य  को निश्चित  करने वाला व उसपर क्रियात्मक  प्रयास व प्रयोग करने वाला व्यक्तिगत या सामूहिक इंसान या संगठन व्रती है ।जो उदेश्य  विशेष के लिए  तत्पर हुआ है। आप एक बात स्पष्ट  रूप से देखे व गौर करे कि क्या यह सही नही। लक्ष्य को इंगित  करना व्रत व उसको प्रयास कर प्राप्त  करने वाला व्रती ।तो हुई न पूर्ण व्याख्या ।
तो सूक्ष्म रूप से हम व्रत  व व्रती को तो समझ ही गए  है ।अब वृत्ति  पर चर्चा कर लेते है।कि यह
* :-  वृति क्या है ?
वृत्ति दोस्तो ये वृत्ति   या व्यवहार  व आचरण  अथवा  एक  प्रक्रिया है जो उदेश्य  प्राप्ति  को आवश्यक है हमे क्या करना है कैसे करना है व क्या नही करना है।यानि do's n don't  की लिस्ट  बनानी होगी।किन नियमो को अपनाना है किनको नही यह सब वृत्ति  पर आधारित है ।
"वृति "व्रती के "व्रत " पर आधारित है ।
अब यह तीनो चीजे यू समझे :-
पहले पूजा व अर्चना  सा व्यवहार कयू।?
क्या ये धार्मिक है ?
तो इस प्रश्न के उत्तर  दोनो है ,
अगर लापरवाह  हो बेमन से करे तो अधार्मिक  है । यू ही है कोई  लाभ बो या न कोई  फर्क  पडने वाला नही।
और वही यदि मन से किसी लक्ष्य के प्रति समर्पित  होकर करे तो धार्मिक है।
बात आस्था  व विश्वास  के साथ साथ मर्यादा  व नियम स्थापित करने की है। वैसे ये यू भी कह सकते है कि:-
की ये  यू भी धार्मिक है ,यदि एक अनुष्ठान  सरीखा है ,एक यज्ञ है, जिसे पूर्ण  करना है।क्योकि  कई लोगो के हित की बात होती है।तो यह यू भी धार्मिक  है ,क्योकि धर्म  का काम है सामाजिक  हित परहित व पारलौकिक  परिणाम  जो सभी के लिए  फलदायक हो।
तो यह कोई  भी सामान्य से विशेष का  लिया हुआ व्रत ही तो   है । जो सबके लिए महत्वपूर्ण  व कल्याणार्थ है ,तो स्वतः ही धार्मिक  हो जाता है  कि नही।क्योकि सामाजिक कल्याणार्थ है।
अब जब ये धार्मिक है तो धर्म-कर्म के अनुसार  कुछ  निश्चित  नियम व आचरण  अपनाना  आवश्यक हो जाता।है ।
मसलन अल्पाहार।
क्यू ताकि सुस्ती  न आए,
बार बार  मल मूत्र को त्यागने  आदि का व्यवधान  न हो।
लक्ष्य पर केंद्रित रहे,।
और हमारे को ज्यादा से ज्यादा समय प्रयोग  या उसके फल पाने या मिलने तक उस पर प्रक्रियागत  व्यवहार को लग्न  लगी रहे।
व इससे पावनता की हद तक ये प्राप्त करना यू भी है क्योकि नवीन  ज्ञान  का सृजन  होने को है नई  विधा  का जन्म होगा।
नई  प्रक्रियागत  लाभ  हानि  इत्यादि  की समीक्षात्मक  पहलुओ पर विचार  करना है तो अनुशासित रहते हुए  व्यवहार  व आचरण  रखेगे तो जो भी परिणाम  होगे उन्हे सकरात्मक  रखने को हमे प्रयास  करगे  कि सटीक  व निश्चित  परिणाम  यथा योग्य  व उत्तम  फलदायक हो।
व उदेश्य  अनुरूप हो।
जब कोई  परिणाम  सार्थक सहयोग व  संगठन को करेगे  तो तय है धार्मिक भी  होगे व सम सामयिक भी।
धार्मिक  से तात्पर्य  ईश्वरीय  भी यू नही है कि  किसी जाति को ध्यान  मे रखकर  किया जा रहा प्रयोग है। न।यह सम्पूर्ण  मानव  व पर्यावरण  के हित को ध्यान  रखते हुए  लिया जाने वाला सहयोग  या प्रयास है सो  यू धार्मिक है।
अब वरति की वृत्ति  जितनी शुद्ध होगी व जितनी लग्न व पावन होगी परिश्रम  भी जितना उत्कृष्ट  होगा उतना ही वो समसामयिक  व सार्थक  परिणाम  लिए  होगा तो यहा भी धार्मिक  आस्था  सरीखा  यह प्रतीत  होता है व वास्तविक रूप से महत्वपूर्ण है सो तो भी धार्मिक  ही हुआ न।
तो उपवास  या अल्पाहार  कोई  निहायत आवश्यक नही बल्कि  काम या उदेश्य  अथवा लक्ष्य के प्रति  इतना समर्पण का कारण है कि खाने पीने की सुध बुध  तक न रहे।
यानि लक्ष्य  साधने को इतने प्रयत्नशील रहना कि भूख प्यास  की चिंता  गौण  हो जाए ।वैसे यह अनिवार्य  शर्त सी नही कही गई।
तो भी उपवास  या अल्पाहार  की बात इतनी  ही  समझ आती है। पर यह और भी है
जैसे अल्पाहार  हमे आलस्य व निद्रा  से भी बचाता है।तो
व्रति की वृत्ति  पर निद्रा  या आलस्य  भी हावी  न हो तो भी अल्पाहार  का नियम  रखा गया होगा।
मुझे तो यही लगता है।बाकि और कोई  कारण नही लगता। फिर भी आप सोच सकते है।
अब ध्यान  व जप की बात यहां क्यू की गई?
तो मान्यवर  वो स्वयं की बुद्धिमता व आचरण को अनुशासित करने,
मर्यादित रहने व लक्ष्य केंद्रित  रहने को दृढ़संकल्प  रहने व ध्यान  अपने उदेश्य  पर ही सटीकता से रखने के कारण  करने के लिए  कहा गया।
क्योकि यह मंत्र वो ध्वन्यात्मक ऊर्जा है जो सकरात्मक बनाए  रखने के साथ साथ  ऊर्जावान व रचनात्मक  बनाए रखती है।
और भी बहुत कुछ है कहने व सोचने को आप दृष्टिकोण  तो बदले जरा  अपनी बुद्धि को खुले मैदान मे दौडाओ  तो सही देखो क्या  क्या  परिलक्षित होगा।दृष्टिगत होगा सबका सब सामने आ जाएगा।
मेरी बुद्धि तो व्रत व्रति व उसकी वृत्ति  को यह कहने को कहती है बाकि आप ज्यादा विद्वान है।आपके विचार  सर माथे।
पर आस्था के मुल्य पर सार्थकता  को घायल न करे बस यही अनुरोध है।
एक बात याद रखे।
शास्त्र सहायक  तब है जब अर्थ  समझ आए ,अन्यथा कहानी है जो आपको सुनते सुनते सोने के उपक्रम  की और ले जाती है।।
विवेचनात्मक विश्लेषण कैसा लगा कमैंट  कर बताए।
जय श्रीकृष्ण।
संदीप  शर्मा। देहरादून से।
Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com Jai shree Krishna g 👍.


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