जिन्दा लाशो का शहर है ये ,
तू मौत की दुआ कबूल मत कर।
कफन चाहिए ही नही किसी को, यहा,
तो दफन की भी चिंता,
मेरी मान यह कसूर मत कर ।
मुर्दे खुद लड रहे है ,खुद से ,
तू मौत की चिंता मेरे यार ,
बेफिजूल सी तो मत कर ।
तूने देखे नही वो मंजर ,
जो तेरे सामने है,
तू क्यो बांधे है पट्टी ,ऑखो पर काली,
जब दिखता नही है नजर भर।
यह रात थोडी लंबी होगी, यक़ीनन
तो दिन निकल आने की चिंता,
भी जल्दी से भी मत कर।
यहा सब ओढे है,
नकाब कोई न कोई,
तो कोई मजबूर है ,कहे,
तो फिक्र मत कर।
जिसके फायदे है जहा तक ,
वो जुडा है तुझसे,वहा तक,
तू गैर होने की शिकायते ,
तो कम से कम मत कर।
वजह ढूंढ ही लेते है,
यहा कोई न कोई ,
हर बात की संदीप,
तू बेवजह की वजह ,
बेफिजूल भी मत कर।
क्या हुआ खामोश है,सब,
सब और से अब ,
तू बाहर की छोड
और अंदर के शोर को सुना कर।
तेरी शिकायते खुद ब खुद मिट जाएगी।
जो कर रहे है दूजे ,
तू तो कम से कम ,
न सब वो कर।
चल आ बैठ कर कर ले ,
दो" बाते सुकून की ",
मै करू फिक्र तेरी,
फिक्र तू मेरी कर।(2)
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रचियता।
संदीप शर्मा।
( देहरादून से )
Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com ,
Jai shree Krishna g .....
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