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मानव स्वभाव ।(भाग एक।)

 

हरि कृपा हुई आज फिर जो हमारी अधूरी चर्चा पर हम पुनः एकत्र हुए  ।
सबको जय श्रीकृष्ण।
तो चर्चा चल रही थी मानव या जीव के स्वभाव  की।
पहले तो प्रश्न बनता है :-
* आखिर  यह स्वभाव  है क्या  ?
तो आदरणीय  जो मन की वृत्ति  का प्रतिकार है अर्थात  जो हमारे आचरण  व व्यवहार  व मनोवृत्ति  की किसी आचरण  के फलस्वरूप परितोष चाहे वो सकरात्मक हो नकारात्मक हो अथवा तटस्थ भाव से दिया गया प्रतिउत्तर ही हमारा स्वभाव है।
जैसे भाषा को संबोधित  करते हुए  कहते है कि मन की बात कह कर। बोल कर ,लिख कर या संकेत  द्वारा समझा कर हम अपने मन की बात का जो अदान प्रदान करते है तो वो विधि  भाषा है वैसे ही हमारे आचार, व्यवहार,व संकेत के माध्यम  से किसी क्रिया  की प्रतिक्रिया हमारा स्वभाव है।
अब यह कोमल है कठोर है ,अच्छा है व बुरा है यह सब नापने को तीन भाग कर दिए  गए। जो इससे पूर्व के लेख  मे बताया था।यह तीन भाग है
*सात्विक,
*राजसिक। व
*तामसिक।
अब हम थोडा थोडा पुनः यहा इस पर विचार-विमर्श  करते है।
जैसे कि पहले है सात्विक।
यह हमारा  आचरण   या स्वभाव  कब सात्विक  होता है व कब नही यह हमारे खानपान पान आदत भाषा व व्यवहार  से प्रकट होता है।
खान-पान :- यदि हमारा खान-पान  अच्छा व अध्यात्मिक है अर्थात  नियंत्रित है शरीर  को लाभान्वित  करने वाला है ।बजाय स्वाद  देखने के क्या खाना व कितना खाना व कब  लाभकारी है   यह सब विचार  कर तय होता है तो सात्विक  स्वभाव  होगा  व बनता है।क्योकि कहते है न जैसा खाओ अन्न वैसा होगा मन।तो सही मात्रा मे खाना।ज्यादा  गरिष्ठ  गर्म,तीखा व खट्टा  आदि न खाना हमारे सात्विक  होने का सूचक है।यदि आप देसी घी,दूध,पोष्टिक आहार  नियंत्रित  मात्रा मे आवश्यकतानुसार लेते है तो आप सात्विक है।
पर यह सब आहार  आप अति मात्रा मे लेते है तो आप सात्विक  नही है।
यहा अन्न  जीवित  रहने की शर्त  पर स्वीकार है।न की अन्न  के लिए  जीवित  रहने को।
आचरण व्यवहार  :- यदि आप सकरात्मक है,ध्यान से कार्य  करते है ताकि और  लाभान्वित  हो व सदैव  इसी प्रयास  मे रहते हो कि गलती से भी कुछ  अनैतिक  न हो जाए।तो आप मान्यवर  सात्विक है।यदि अपने जीवन  निर्वाह  के साथ साथ अपने भावी  जीवन के सुधार  को प्रयासरत है तो आप  सात्विक हो । यदि आप अनुशासित  जीवन जीते हो कसरत शारीरिक  व मानसिक  व व्यापारिक  व व्यवहारिक  सब पर सदैव  न्याय संगत  आचरण  अपनाते हो तो आप सात्विक प्रवृत्ति की प्रकृति के हो। ऐसे जीव शांत प्रवृति के सुलझे हुए  कम गुस्से वाले होते है।
भाषण:-
जब हम मृदुभाषी  व मितव्ययी  व कम बोलने वाले होगे तो यह भी सात्विक  होने की निशानी है।
राजसिक स्वभाव:-
राजसिक  स्वभाव  बहुत  कुछ  आडंबर  मांगता है। वो व्यर्थ  के मान सम्मान  को चिंतित  रहता है व ठाठ बाट  पूर्व  व्यवहार  का प्रदर्शक है।
तो आइए  इसके भी सभी पहलुओ  को समझ जाने कि हम है क्या हमारा स्वभाव  कैसा है।
खान-पान :- राजसिक  स्वभाव  की प्रकृति का व्यक्ति  या जीव। खाने पीने मे पौष्टिकता  से अधिक  महत्व  खाने के स्वाद पर देता है भले ही वो कम पोष्टिक  ही क्यू न हो।
ऐसे जीव खट्टापन, तला भूना,व हर प्रकार  का भोजन  करना पंसद  करता है स्वाद  बेहद हो व वेरायटी भी ज्यादा हो।कम स्वासाथवर्धक चलेगा।पर कम स्वादिष्ट नही।
तभी तो विविधतापूर्ण  के साथ तीखा तेज नमक मीठा भी थोडा तेज  जैसा भोजन  ऐसे स्वभाव  के व्यक्तित्व  की पहचान है।
आचरण  व व्यवहार  :- राजसिक  प्रवृति  का जीव खान-पान  की तरह  ही आचार,व्यवहार  मे भी खूब  दिखावा व आडंबर को महत्व  देता है।दान करेगा तो दिखा दिखा कर ढिंढोरा  पीट कर कोई  अन्य कृत्य करेगा तो भी बस इसे सदैव  वाह सुनने की ललक लगी रहती है।इसके अंदर अहम का भाव  सदैव  दिखता है।भला ही परोपकार क्यू न कर रहा हो।
भाषण:-
राजसिक  किस्म के लोग भाषाई  आचरण मे भी सदैव  सम्मान के आकांक्षी  बने रहते है।व शीघ्र  क्रोधित व आवेशित हो जाते है।
तो देखा आपने यह स्व उत्थान को भी दिखावे व आडंबर  मे लपेट  कर बड़ा चढा कर पेश करने वाले प्रवृत्ति के स्वामी होते है।
छोटी छोटी बाते से आहत होने वाले। शान शौकत के शौकीन होते है।यह ढींगे भी हाॅकते है।
श्रमिक होते है व दूरदर्शी भी।
यह सब गुण  एक राजसिक  व्यक्तित्व की पहचान  कराते है। यह मूलतः  धनी होते है व अंहकार  खूब  हावी होता है।मैने यह किया ,मैने वो किया ।मैने ऐसे किया मैने वैसे किया का खूब  बखान  करते नजर आते हे।थोडी उच्छृखलता  भी व्यवहार  से दृष्टिगत  होती है।
तामसिक स्वभाव :-
ऐसे व्यक्तित्व  के जीव हर दृष्टिकोण से पीछे रहते है।बांसी खान दुर्गंधयुक्त भी ,नकरात्मक, क्रोधी,द्वेष  व ईर्ष्या  युक्त, नुक्स निकालने मे माहिर।
तो आइए।ऐसे जीव की पहचान  करे कि जिसका स्वभाव  निंदनीय है।
जोकि तामसिक है।
पहले
खान-पान :- यह जीव बांसी दुर्गंधयुक्त बचा-खुचा भोजन खाने के आदि होते है।
जानते है क्यू।
क्योकि  आलस्य प्रमाद  व श्रीहीन व श्रम विहीन होने के कारण ऐसे जीव खुद तो परयास शून्य रहते है जिस कारण जैसा मिला जिस तरह से मिला वैसा ही स्वीकार कर लेते है क्योकि और कोई हल भी नही।
और यह बोजन भी चिन्ताग्रस्त से होकर व कुढते हुए  ग्रहण करते है।क्योकि प्रयास  कम है तो बचा बचा कर रखते है।जिससे बांसी  व दुर्गंधयुक्त  होता है।व अब इस आचरण  व आदत से मजबूर इसी मे आनंदित  रहने लगते है।
व्यवहार  व आचरण  :-
तामसिक  स्वभाव  के जीव निर्दयी, घोर कुंठित व ईर्ष्यालू  प्रवृत्ति के होते हे व घातक यू होते है कि किसी भी बात पर संतुलन  खोकर प्रहार  कर बैठते है।यह अहम से भरे हुए  छोटी सोच  व अज्ञान  के होते है।इनसे उलझने का मतलब  है कीचड मे धसॅना।
भाषण:-
तामसिक  स्वभाव  के जीव चूकि कम वास्ता  रखते है शिक्षा से तो आचार विचार के साथ निम्न स्तरीय  शब्दो का चयन इनकी आदत व शैली बन जाती है।अक्सर यह सही उच्चारण  तक नही कर पाते ।सीखने का मादा तो कतई  नही रखते।बस कैसे तैसे जुगाड  से ही काम चलाने को प्रवृत्त रहते है।
इनसे कोई  अपेक्षा भैस के आगे बीन बजाने वाली उक्ति को चरितार्थ  करती बात लगती है।
तो साथियो आपने  देखा यहा हमने स्वभाव  के तीन मानको को कसौटी पर कसकर कुछ  खास खास नियम आचरण व व्यवहार  के साथ साथ। खान-पान  व भाषाई  प्रकृति तक का तीनो का विश्लेषण  किया अब हमे इन्हे समझ कर खूब अच्छी तरह से तटस्थ हो कर समझना है कि हम कहा है हमारा स्वभाव  क्या है।
साथियो  अब एक महत्वपूर्ण  प्रश्न।
*:-क्या स्वभाव बदला जा सकता है?
दोस्तो  यहा बडे ध्यान  देने की आवश्यकता है यह बडा ही गंभीर  प्रश्न है।
अगर आप कहे की भगवान  चाहे तो स्वभाव  बदल सकता है तो यह पूर्णतया  गलत है कारण यदि यह भगवान  के बस मे होता तो कंस,हिरण्याक्ष, रावण, मधु कैटब, राक्षसी  प्रवृति  से लेकर स्वय उनके अंश से उपजे व्यक्तित्व  जालंधर, इत्यादि का वो प्रकट होकर स्वभाव  न बदल देते।
तो यह संभव  नही।है कि ईश्वर  किसी का स्वरूप या स्वभाव  बदल दे। यह कर्माधारित आचरण  के तहत संभव  भी नही।मेरे एक मित्र है संजय सेठ  उन्होने एक दिन  ऐसे ही चर्चा मे कहा स्वभाव  यू नही बदल सकता जैसे कोई  इलैक्ट्रानिक  चीज हम लाते है मसलन मोबाइल  या टीवी तो जो उसकी विशेषताए  हम लेकर आते है उनमे इनबिल्ट  फीचर्स को परिवर्तित  किसी भी हालत मे नही कर सकते क्योकि उसकी अपनी सीमाएं है ।ऐसे ही हम  अपने स्वभाव  मे बाह्य  व आंतरिक  परिवर्तन  नही कर सकते।
तो यही कारण रहा जब जब कोई  विशेष  आपत्ति  देने वाले राक्षस  से स्वभाव के लोगो ने कहर मचाया ईश्वर  ने आकर  उनका संहार ही किया।न कि ह्रदय  परिवर्तन।
हालांकि  अवसर बहुत  देते है ईश्वर  कि कर लो ह्रदय  परिवर्तन  बस पर यह शरीर के मॉडल  के अनुरूप है  पर यहा एक बात कहूगा।कि यदि आप चाहो तो दो बाते है यहा आप यह कर सकते हो अर्थात  स्वभाव  को परिवर्तित कर सकते हो ।
पहला है संयम व अभ्यास।
दूसरा है सत्संग।
आप प्रयास  करके देखे यदि लाभ न हो तो कहना
सयंम।
कहा है देखना इन्द्रियो  के न घोड़े भगे,
यहा हर दम संयम के कोडे  चले।
इसका अभ्यास। व संत समाज  का समागम। बस यही दो प्रयास  है जिससे आप चाहोगे  तो सिर्फ आप चाहोगे तो ही स्वभाव  मे परिवर्तन   संभव है।अन्यथा और कई  जन्म है होगे खेलो इस भवाटवी मे।
पुनरर्पि जन्मं पुनरपि मरणं।का खेला तो है ही।
ईश्वर  तक खरा होने पर ही ऐन्टरी है यह याद रहे।बस तो ठीक है बाकि तो बता ही दिया है ,उदाहरण  कितने कहते हो सब प्रस्तुत  कर दूगा पर काहे जब चाहोगे तो इतना ही काफी होगा।अन्यथा आपकी इच्छा।
जय श्रीकृष्ण। जय श्रीकृष्ण जय श्रीराम।
आपको यह आख्यान  कैसा लगा अपने बहुमुल्य विचार  रखना न भूले।
जय श्रीकृष्ण।
आपका व अपना शुभ  चिंतक
संदीप  शर्मा। देहरादून से।
एक बार फिर  से जय श्रीराम जय श्रीकृष्ण।मां भगवती सदा सहाय।जय माता दी।।


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