जय श्रीकृष्ण साथीगण। जय श्रीकृष्ण। पाठकगण। व जय श्रीकृष्ण सुधिजन ।
कृष्ण कृपा का विस्तार। हुआ है तो पिछले लेख कर्म अकर्म व विकर्म के लेख पर चर्चा करते हुए इसके अगले अंक पर बढते है।हम चर्चा कर रहे थे कि कर्म की। व कर्म की परिभाषा के बाद हमे बताया गया था कि कर्म यज्ञ है व यज्ञ ही कर्म है।तो इस यज्ञ को समझना है यज्ञ वर्षा कराएगा यज्ञ पुष्टि का साधन होगा यज्ञ से विकास होगा।तो यज्ञ हमारे कल्याण का एकमात्र साधन है।और वह यज्ञ है ध्यान कर मंत्र उच्चारित करना।जो सृष्टि का आरंभ से अंत व आत्माओ व जीव की पूर्व व बाद की गतियो का साधन है वो एकाक्षर मंत्र और कोई नही बस ¤ॐ¤ है।इसी को ॐ को बस ॐ को साधो।यदि अपने जीवन रूपी पिंड का उत्थान करना है तो□ ॐ□का जप करना होगा ।यह सृष्टिकाल का नियंता है।बस आस्थावान होते हुए ध्यान मग्न होकर अपने इष्ट को नमस्कार कर ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,
का निरंतर जप करते रहे व कोई अन्य साधन या मंत्र को न बोले बस यही बोले।
ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,
यही आपके अवमुक्त होने का साधन है। यह कोई पाठ नही है जिसे निपटाना है जल्दी जल्दी बोल कर समाप्त करना है बल्कि इसके उच्चारित ईरते हुए आनंद के साथ इसके स्वाद की अनुभूति का अनुभव लेना है।यही वर्षा के मेघ बन कर अन्न उपजाने का कारण है।अब देखा आपने यह शब्द जाल आपको कितना उलझाये है।अभी कहा कि ॐ का जप वर्षा करवा अन्न उपजाने मे मदद करेगा ,है न यही गीता जी भी कहती है तो कौन सा अन्न यह भी जान ले।यह गेंहू चावल,मक्का, सरीखा अन्न नही बल्कि आपकी आत्मा को तृप्ति करने वाला ईश्वर को संतुष्ट करने वाला अन्न है।और यह अन्न, बस ॐ का जप है यही यज्ञ है यही अन्न आपकी क्षुधा शांति का मंत्र व यंत्र है क्षुधा अभी बताया जो भूख को आप बार बार पैदा हो रहे है यह भूख आपके आत्मिक विकास व उत्थान को भेजती है व आप जो पिछली चर्चा मे लिखा था कि धन संचय मे लग जाते है संचय किसका।उस पूंजी का जो कंरसी रूप बताया था ।कि अच्छे व बुरे लाभ को जोडने लगे थे।अच्छे व बुरे उपाय रूपी कृत्य कर जिसे आप कर्म समझे बैठे थे।परोपकार, दया, दान,पुण्य आदि आदि।करो यह करने को मै मना नही करता पर यह सब भी माया का ही जंजाल है जो सुख या दुख भोगने को जन्म लेगे।और एक गलती और एक और जन्म। फिर शुरूआत भवाटवी की।तो मान्यवर यहा यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि उत्तम उपाय यदि सोने की बेढी है ।तो अनुत्तम उपाय लोहे की।तो बेहतर है आप तटस्थ रहते हुए कर्मशील रहिए।
अब यह न कहना या पूछना कि कौन सा कर्म ।क्योकि दूसरा लेख चल रहा है यह इस सब पर।तो पुनः दोहरा देता हू।कर्म यानि यज्ञ, यज्ञ यानि ॐ का उच्चारण। बस यही आप की तुष्टि का अन्न है जिसे खा आप समृद्ध होते होते पाप काटते काटते, सुख मय करंसी व दुखमय कंरसी का सृजन न कर मात्र एकमात्र उदेश्य को प्राप्त होगे जो आपके जन्म का है आत्मिक व सात्विक कल्याण। तो यही यह सरल सा उपाय आपके लिए कृष्ण सरीखे तत्वदर्शी सुझाते है।कहा मुश्किल है ?।इसके तो उच्चारित करने मे अशुद्ध होने का भी भय नही कारण यह अ+ओ+म =ॐ का संयोजन है।जो हौठ जिह्वा व वायु को संतृप्त व संतुष्ट करती हुई उच्चारित करनी है यही वो मेघ बनेगा जो कल्याण की वर्षा करेगे जिससे अन्न [जो बताया कि आत्मिक शुद्धिकरण को] को तृप्त करने मे कारागार होगा।
है न कितना सरल व सटीक उपाय ।कोई झंझट नही,कोई विधि विशेष नही, बस निरंतर समर्पित भाव से आस्थावान रहते हुए इसे समर्पित करना है ईश्वरीय शक्ति को जो आपने तय की है जिसके प्रति आपकी आस्था है।
ये गिन कर माला से या कैसे या ऐसे या वैसे का भी विशेष विधान न है बस मन मे विचार शून्य भी यही करेगा ।दीपक जला लौ को देखते हुए या बिना दीपक जलाए का भी कोई समस्या वाली बात नही।वैसे तो स्नान आवश्यक है पर मै कहता हू वो भी आवश्यक नही मन मे किसी के लिए कलुषित विचार न आने पाए यह प्रयास ही शुद्ध स्नान का घोतक है।बस यह सरल व सटीक उपाय और कर ले।तर जाओगे।तत्वदर्शी से देव हो जाओगे प्रयास अभी से आरंभ करना है कल से नही कल से तो अवधि बढेगी जितनी बढेगी उतना आनंद का अनुभव करोगे यह पांच मिनट से अभी आरभ कर शैने शैने बढाते जाओ।आप देखोगे कि चामत्कारिक लाभ व परिवर्तन आने लगा है।
ओहो कही आप आर्थिक या पूंजीगत लाभ तो न सोच रहे ।न वो न होगा ।यह अध्यात्मिक लाभ को है आत्मिक लाभ को है।इससे आप धनी तो होओगे पर अर्थ व्यापार के व्यवहार से नही बल्कि आत्मिक व जीव की गति को ।उसके उदार को।
तो यहा हमने समझा कर्म को जो वास्तविक कर्म है जिसे गीता मे सुझाया गया है।यही कर्म रूपी यज्ञ आपको करना है।ताकि आपकी अतृप्ति की क्षुधा तृप्त हो।व आपका कल्याण हो।
तो पाठकगण यहा हमने आपको वो सार बता दिया जो किसी एक तत्वदर्शी ने मुझे बताया था ।अब हम चर्चा को आगे अगले लेख मे बढाएगे जो हमारे लेख का विषय है ,
कर्म अकर्म व विकर्म।
इनको समझना कोई टेढ़ी खीर नही है ।बस सरल ढंग से बताऊंगा ,आप जो जो समझते जा रहे है उसका अभ्यास करना आरंभ कर दे अन्यथा लाभ न होगा।जैसे पहला लेख था ब्राह्मण, फिर ब्रह्मचर्य, तब सागर मंथन, तब तत्वदर्शी फिर स्वभाव आदि आदि इन्हे पढे समझे व वो संस्कार अपने अंदर पैदा करे यह ध्यान दे यह किसी धर्म या सम्प्रदाय की देन अवश्य है पर मात्र उनके लिए नही है यह लाभ का वो खजाना है जो लुटने को तैयार बैठा है।बस मेरे लोगो को ही लाभ हो यह उदेश्य रहेगा तो सनातन न रहेगा जबकि यह सत्य व सनातन को है।सर्वस्व को है।तो आप लाभान्वित पहले स्वयं हो फिर दूसरो को मार्गदर्शन देते हुए अपने आन्तरिक आत्मिक आनंद की अनुभूति की चर्चा करते हुए प्रेरित करे । यह असली अश्वमेघ यज्ञ होगा जो आपकी आस्था व विकास के सम्राज्य का ढंका दूर दूर तक फैला देगा ।पर ध्यान से यहा से आपका पतन आरंभ होगा। कारण यह पूंजीगत लाभ नही आप सम्मान की गद्दी को न पकड लेना लोग खडे है भीड बनाकर गुरू की तलाश मे पर आपको गुरू नही होना है समझे नदी ऑ होओ जल होओ ताकि बहते बहते लक्ष्य तक पहुच जाए।यदि चरणामृत या और उपक्रम मे उलझ गए तो यह कहा प्रभावी रहेगा ।जिसका आपको लाभ उठाना है बल्कि पहले तो आपने वो पुराने प्रारब्ध काटने है नए एकत्र न करते हुए। यह उसका आरंभ है।जितनी आस्था व श्रध्दा व विश्वास से ध्यान लगेगा वैसे वैसे चामत्कारिक अनुभव होगे। यहा आपको एक खास बात और बताने जा रहा हू जो किसी ने शायद आपको कही भी हो या न भी कही हो तो ध्यान से सुने।यह सब आपको कुछ पाने के लिए नही बल्कि सब खोने को प्रेरित करेगा यही है इसका मूल उदेश्य यही है स्थितप्रज्ञ की स्थिति को पहुंचना जो मुश्किल ही नही असंभव है पर यह ॐ सब का सब सब इतना सरल कर देता है कि आपका सारा चोला जो आपने फालतू की चीजो से भरा था एक एक कर आप सब छोडते या फैकते जाओगे क्योकि जिस आनंद की यह अनुभूति कराएगा वो धन तो आपने कभी कमाया ही नही।जिसका संचय यह कर्म रूपी यंत्र व यज्ञ कराएगा वो आपको और कुछ नही करा पाएगा।यह आपके शुद्र से ब्राह्मण होने व फिर देव तब महादेव से कृष्ण होने की प्रथम सीढी है।अभी मै इस आलेख को दूगा विराम क्योकि अगले भाग मे चर्चा होगी कर्म अकर्म व विकर्म की।
अब तो कोई संशय न रहा न यज्ञ या कर्म का तो हो जाए शुरू यहा मिले स्थान समय व न मिले तो निकाले समय व स्थान क्योकि यही करेगा आपका कल्याण। क्या ?
ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,
कृष्ण कृपा सब पर बरसे खूब बरसे।
जय श्रीकृष्ण। जय श्रीकृष्ण। जय श्रीकृष्ण।
ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,
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Analytical personality.
संदीप शर्मा। देहरादून।
Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com Jai shree Krishna g.
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