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स्थितप्रज्ञ [भाग:-2]

 

जय श्रीकृष्ण,जी।
पाठकगण सुधिजन व मित्रगण।
  दोस्तो  आज श्रीकृष्ण  जी की कृपा पुनः हुई  और हम उपस्थित है अपने स्थितप्रज्ञ  के अगले भाग की विवेचन  को।
हमने पिछले भाग  मे इसके कुछ  पहलुओ  पर विचार  किया था ,अब आगे विवेचन  करते है। स्थितप्रज्ञ  का।
स्थितप्रज्ञ  का जो सबसे ज्यादा अर्थ मुझे समझ मे आता है वो है वर्तमान  मे रह कर उस स्थिति  अनुकूल  व्यवहार  करना जो उचित  हो व जिसकी आवश्यकता हो। न कि या तो भूत की विवेचना करते रहना व अपनी तारीफ  या निंदा  मे व्यस्त  रहना न ही भविष्य  को व्यथित  रहना कि  यह कर दूंगा वह कर दूंगा ।इसी की दौड  या चिंता मे ही  रहना।
कारण एक तो न ही  भूत व न ही भविष्य  आपके  या हमारे हाथ मे है । और फिर  न ही आप और हम  भूतकाल को बदल सकते है न ही भविष्य  से परिचित है भविष्य  मे आप  की क्या  स्थितियां होगी ये  भी किसे मालुम।
हाॅ वर्तमान  अमुल्य है जिसमे हमे न्यायिक  जीवन के परिस्थितिजन्य सही निर्णय  लेने है, ताकि अपने विवेक  द्वारा अधिक  से अधिक  बेहतरीन  कर सके। और उसके लिए  प्रयासशील  रह उसमे बेहतरीन  अवसर को तलाशे।वर्तमान मे  अनुकूलता ही स्थितप्रज्ञ  की एक स्थिति है।
वैसे देखा जाए  आप के हाथ मे ज्यादा परिवर्तन  है नही।पर यदि आप  वर्तमान  को बेहतरीन  तरीके से जी लिए  तो भविष्य  आपका एकदम  निश्चित हो जाएगा।यह तय है।।यह वर्तमान  यदि नियोजित है तो स्थितप्रज्ञ  की स्थिति बनती है।
स्थितप्रज्ञ  का तात्पर्य  हर स्थिति मे धैर्यवान  रहना है। ये  क्यू आवश्यक है यह भी ध्यान  देने कि आवश्यकता है।
पहले तो इससे आपकी निर्णायक  क्षमता बढ जाएगी कारण आप यदि समस्या मे है और विचलित  नही है तो सही ढंग  से हल को सोच  पाएगे और यदि उल्लास मे है तो भी ज्यादा संतुलित  होगे व वो स्थिति के विपरीत  होने पर भी  वहा व्यथा अधिक  न होगी। जितना  कि पहले आनंद  की  स्थिति  मे थी। क्योकि आपकी यात्रा सुख से दुख मे आई है।जिसे कहे तो  अब स्थिति भिन्न है।कभी खुशी कभी गम।और ये अकस्मात आने वाले पल हमे बने ही झकझोरने  को है।तो यहा संयमित रहना ही स्थितप्रज्ञ है।
यह उस  रोगी की भांति है जिसे शुगर है।तो उसके   शुगर लेवल को न ज्यादा करना है  ,न ही घटाना है क्योकि दोनो ही स्थितियां अहितकर है।तो समझे न आप।
यह स्थितप्रज्ञ का मतलब है ऐसा सम व्यवहार  कि अपने को नियत्रंण मे रखना।
न अति उत्साहित  ही होना न ही  अति विचलित  होना ।
सम व्यवहार  हर सुख दुख मे।
क्योकि परिस्थितिजन्य  यानि किसी भी परिस्थिति  का होना वर्तमान  व आपके पूर्व के संचित कर्मो  के आधार  पर होना भी है।
जिसका मुख्य  कारण आपके प्रारब्ध का भी होना है।   जिनका फल हमे भोगना है।यदि आप इससे  बच सकते तो आप यहा इस जीवन  मे न होते।तो यह विवेक  आपको उस परिस्थिति मे  और धैर्यवान  बनने मे सहायक  होता है ।यदि आप सम व्यवहार  करेगे  तो आपके सोचने विचारने की शक्ति मे उत्साह व समृद्दता आएगी।क्योकि समय चाहे अच्छा हो या बुरा उसने परिवर्तित  अवश्य  होना होता  है पर यदि व्यवहार  अनुकूल  रखेगे तो सकरात्मक  परिणाम दृष्टिगत होगे अन्यथा कभी भाग्य  को तो कभी सितारो को व कभी ईश्वर  को दोष देते  दिखोगे।  यदि ऐसा करोगे तो  कोसते कोसते नकरात्मक  विचारो का सृजन  होगा जिससे जीवन जीना दुष्कर  हो जाएगा।
इस नकारात्मकता  से बचने को आप अवांछित तौर तरीके  अपनाने लगेगे जिससे आपका व्यवहार  अप्रिय  व अवैधानिक  व अनैतिक  होने लगेगा।
आप लोगो मे अलोकप्रिय होने लगेगे।
जिससे आपकी व आपके प्रति कटुता बढती  जाएगी।परिणाम यह होगा की जीवन की डगर कठिन  होती जाएगी हर कदम  भारी लगेगा।और आप अवसाद  को प्राप्त होगे।
स्थितप्रज्ञ  के होने के अपने लाभ  है।
हानि एक भी नही ।
कारण यह तो हर हानि से बचने का उपाय है ।न कि हानि की  कोई शंका को ही होना। 
एक तो गीता सहज ही सटीक  सटीक  उत्तर सुझाती है कि कब क्या व कैसे करना है ।यह सब कठिन  नही है यदि व्यवहार  मे करना आरंभ  कर दे।
दर असल  बात यह है कि हमारे जीवन से अनुशासन  व संयम  व सनातन  जीवन  शैली नदारद हो चुकी है।
यह सब बीती बाते हो चुकी है। यह पाश्चात्य  संस्कृतनिष्ठ  भक्ति का असर है।जो नियम जीवन के अनायास  ही निशुल्क  उपलब्ध  थे अब व्यवसायिक हो चुके है।
व्यवहार मे जीवनचर्या की जो शुरूआत  योग व ध्यान  से होती थी अब ये जिम या ध्यान  कक्षाओ मे दिखने लगी है।कितना विचित्र  व हास्यप्रद है न योग व दैनिक  कसरत का मजाक सनातन संस्कृति का उपहास उडा कर ,ध्यान  की कक्षा का संचालन  करना जो वेद वेदांत  पठन पाठन का स्वाध्याय  से सीखने की प्रेरणा थी वो भी विभिन्न  केंद्रो  द्वारा  व्यवसायिक  कर दी गई है और यह बकायदा व्यवसायिक केंद्रो द्वारा संचालित है।।व  पढे लिखे मूर्खो  का उसमे प्रवेश  लेना भी  हास्यास्पद है।
यह क्यू है क्योकि स्थितप्रज्ञ  की स्थिति नही है आप हर विचार  व ज्ञान  की दुकान  खोल बैठे हो व्यापार  कर रहे हो ज्ञान  को खरीद रहे हो बेच रहे हो ।पर अर्जित  नही कर रहे।यही कारण है कि आपका आनंद  चिर स्थाई नही एक हवन या यज्ञ करा कर देखो कई  दिन पूर्व से लेकर कई  दिन पश्चात  तक उत्साह  बना रहेगा।याद करो अरे  तुम क्या याद करोगे ।गर दादी दादा वृद्धाश्रम  नही पहुंचाए  तो उनसे पूछो कि घर मे एक समारोह  चाहे विवाह  का हो या उपनयन  संस्कार  का नामकरण  का हो या समान्य सी सत्यनारायण  की कथा का, सब एक उत्साह  लाती  थी व्यवस्था करने से लेकर पूजन  तक सब आनंद  देता था।  और यदि  यह सब नियमित  होता तो क्या संस्कार  बनते थे  कहने की आवश्यकता नही है ।
पर अब तो आप  सब खरीद  रहे है जो आप गूगल  से सोच रहे हो फ्री  मे उपलब्ध है मुझे  सब पता है वेद वेदांत से लेकर हर वो जानकारी जिसे आप पाना चाहते है तो वो है कहा जिसकी आपको तलाश है।
यानि वो शांति ,वो खुशी,या वो उत्साह  जिसकी मै बात कर रहा हू।
जिसे शांति  सयंम संस्कार  या इस जैसी  जीवन-शैली कहते है क्यू आपको लाखो खर्च कर भी नही मिल रही ।लाखो रूपए
शादी समारोह  तक मे खर्च कर   आनंद  नही आता जो एक साधे समारोह  मे सब आ जाता था।
कभी चिंतन करे  एक शब्द है "" मेरा ""
कभी इस पर लिखा मेरा लेख पढना क्या है "मेरा" क्या है इसके सही तात्पर्य  ।और क्या है इसका आनंद  तभी समझ पाओगे जब उस बात की तह तक पहुचोगे । अभी तो यह सब जो कहा है आप कहोगे पता है यह  क्या है  जो आपको पता है पर आपको कोई लाभ नही दे रहा।?।
यह ऐसा ही हुआ न कि कोई  व्याधि है,
इलाज  भी पता है ,इलाज  हो भी रहा है ,
पर लाभ  नही हो रहा।
कारण जो पता है वो खरीदा है कमाया नही है जब तक कमाओगे नही सब पाकर भी फिजूल  रहेगा जैसे अभी तक हो रहा है ।तो स्थितप्रज्ञ का खेल सीधा आपको स्थिति से रूबरू नही कराता । न ही ही आपको उससे बचा कर लाता है,यह तो उस स्थिति से व्यवहार  करने के वैज्ञानिक  पक्ष व तर्क प्रस्तुत  कर आपको लाभान्वित  करता है।वैसे कई  कारक है जो आपको इस स्थिति के निकट लाते है व आपके आचरण  के अनुसार  आपको लाभान्वित  या अन्य स्थिति मे ले जाते है।
आप कैसे व्यवहार  चाहते है तय आपको स्वय करना है।क्योकि आपको आज सब पता है पर वो नही पता जो आपको असल मे करना है वो क्या है वो है  स्थितप्रज्ञ रहते हुए उसके अनुसार आचरण कर तनावमुक्त व सरल रहना ।
इसके लिए  आपको आवश्यक है आप

"स्वाध्याय।" ।करे।
अब यह स्वाध्याय  हमारे अगले अंक का मुद्दा रहेगा जिस पर हम चर्चा करेगे। क्योकि मै जानता हू आपके ज्ञानी स्वभाव  को आप शायद  शाब्दिक  अर्थ खोज  ले पर मायने न जान पाओगे जब तक कमाओगे नही।वो कैसे आप मेरे अगले लेख को पढ कर समझना।
आप को सब पता चल जाएगा।अभी तो देता हू  कलम को विराम। फिर मिलते है तब तक जय श्रीकृष्ण जय श्रीराम।
विवेचक।
संदीप  शर्मा।
नोट। हो सके तो कमैंट  दे कि क्या अनुभव  हुआ।या क्या हो जो इसमे और शामिल  हो सकता था।
जय श्रीकृष्ण


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