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स्थितप्रज्ञ। [भाग एक ]

 राधे राधे दोस्तो,

पाठकगण, सुधिजन, व मित्रगण को जय श्रीकृष्ण के साथ-साथ  राधे राधे ।

दोस्तो आज अपनी "श्रीमदभागवत गीता आज के संदर्भ मे Sandeep Sharma "part -2" के तीसरे भाग  मे मोह के बाद स्थितप्रज्ञ पर लिखने को मन हुआ।दोस्तो यह terminology श्रीमदभागवत गीता मे बहुत बार कही  व प्रयोग  की गई है ।

जब तक हम।इनका सही सही अर्थ नही जान लेते तब तक हम उस वाक्य की गहराई  को नही नाप सकते है।  जहा ये प्रयोग  हुआ है।

तो सखी यह बात है जब  मुझे श्रीकृष्ण  प्रेरित  करते  कि मै लिखू  तो आनन्द  बढ जाता है।कारण  मुझे स्वय  भी विभिन्न  दृष्टिकोण  पर सोचने को प्रेरणा मिलती है। 

तो चलो विवेचन  कर प्रयास  करते है समझने का इस शब्द स्थितप्रज्ञ को जो गहरे अर्थ छिपाए है।

स्थितप्रज्ञ:- का संधि  विच्छेद  करे तो 

स्थिति +प्र + ज्ञ 

स्थिति यानि इक दशा या स्थिति  जिसमे आप यथार्थ रूप  से है ।यह सुख व दुख  या आनंद  की अवसाद  की कोई  भी हो सकती है।

प्र:- यानि प्रवीण।,यानि दक्ष।

तो यानि आप उस स्थिति  से निपटने, संभालने  या उसका सामना करने को कितने निपुण  है।

ज्ञ:-ज्ञान  ,या ज्ञेय  की स्थिति। 

तो यहा ज्ञेय से तात्पर्य  उस स्थिति के पूर्ण  रूप से मुल्यांकन कर जानकर समझ कर  उस अनुसार  व्यवहार  करने  की विधि विशेष है।ताकि मन विचलित  न हो ।किसी भी पक्ष का जो उससे प्रभावित है।

तो यह तो संधिविच्छेद कर हमने इस शब्द का मुल्यांकन किया पर अब इसके मौलिक  भाव की तरफ आते है जो इस शब्द  को  पूर्ण * (शब्द  स्थितप्रज्ञ  की ।)रूप  से समझाता है ।

वो यह है कि  आप जिस  भी स्थिति मे जिस कारण से है उसका आपको बोध हो, कि आप वहा  क्यू है ? आप इस स्थिति मे होने का कारण समझ रहे हो ।और इसका भी बोध हो कि कैसे इससे विचलित  नही होना है व उसके ( यदि विकट स्थिति है तो) क्या हल प्रस्तुत  करना है के समाधान  को आप प्रस्तुत  हो।

और यदि आप उल्लास  व आनंद  के स्थिति मे है तो आप कैसे स्वय को नियंत्रित  रखेगे। क्योकि यह।सच मे बडा कठिन  है क्योकि आप उस समय इतने उन्माद  मे होते है कि आपको अपनी स्थिति का ज्ञान  तक नही रहता।

जब आप हर स्थिति का मुल्यांकन  कर उसके हल को प्रस्तुत  होते है तो आप स्थितप्रज्ञ  कहलाते है।

होता क्या है हमे यह ही पता नही होता कि हमे कब क्या करना है ।

गीता यह जीवन के रहस्य व रहने के नियम ही तो बता रही है और क्या है ।कोई  भी धर्म का काम क्या है कल्याण  व इससे बडा कल्याण  क्या होगा कि आप जीवन सार्थक  जी कर व्यक्तिगत  व सामाजिक  कल्याणार्थ  प्रस्तुत  हो यही तो जीवन  की सार्थकता है न।

तो आपने देखा यह सनातन धर्म हिन्दू मुस्लिम या कोई  पंथ विशेष  को नही बल्कि  सनातन अर्थात सबके लिए  सब स्थिति मे  हल लिए  खडी है।

तो हम बात कर रहे थे स्थितप्रज्ञ  की।और यह कि हमे हर परिस्थिति  से सामना करना भी नही आता।यह सच्चाई  है।मै अवसाद या दुख  की बात नही कर रहा क्योकि वहा तो सब विचलित  होते ही है ।

मै तो बात कर रहा हू सामान्य आनंद  की जब आप साधरण  रूप से प्रसन्न होते है ।कभी देखा है आपने ऐसे मे चलो कोई  उदाहरण  देता हू।

घर मे शादी है ,कैसा माहोल है ,

जाहिर  सी बात है खुशी का आनंद  का तो ऐसे मे घर मे कई  काम है व कई  जिम्मेवारिया है उपर से अनजान  भय भी ।इधर पता चला कि हमने किसी को कुछ  कह दिया और वो बुरा मान गया ।अब ये क्यू हुआ।यहा विचार करने को है।

क्या लगता है आपको यह स्थिति क्यू उपजी।वैसे तो कई  कारण है पर मूल कारण  आप का स्थितप्रज्ञ  न होना।आप कहोगे मैने शादी मे दो लाख चार लाख  दस लाख या कितना भी खर्च किया सब तारीफ  कर रहे थे पर आपके नाते रिश्तेदार। वहा कोई  न कोई  अवश्य  नाराज होकर गया होगा ।कारण फिर  वही स्थितप्रज्ञ  न होना।

अगर मै कहू कि वहा आपने  आप बडी बडी बाते की बजाय छोटी छोटी बाते पर ध्यान ही न दिया यदि इन बातो पर भी ध्यान देते तो यह स्थिति नही आनी थी।आप किस किस को बुला रहे है उनकी  अपनी अपनी प्रकृति  है।वो  कैसी है  इससे तो आप वाकिफ  होते ही है क्योकि मुल्यांकन  करने मे तो हम सब माहिर है ही।पर फिर  क्यू न आपने उनके हर बात का ध्यान  रखा कि स्थिति न उलझे।

क्योकि स्थिति को खडा करने से पूर्व  आपने ही तो बडी बडी योजनाए  बनाई थी उसी पर तो लाखो खर्च  किए ।पर छोटी छोटी बाते जिन पर ध्यान  देना जरूरी था उसका क्या ,वो तो दिया नही जो शायद फ्री  मे ही मिलना था ।तो यह आनन्द की स्थिति मे है हमे पता ही नही कैसे प्रतिक्रिया देनी है यही पर देखे यार दोस्त बैठे है हॅसी खेल चल रहा है अचानक लडाई  शुरू। अब आपके सामने यह स्थिति  क्यू आई।तो यह भी दूरदर्शिता के अभाव  के कारण।

यह तो सामान्य बिल्कुल  सी सामान्य बाते है पर जब जीवन के दर्शन से बाते जुडती है तो वहा पर जब  हमे उलझन  आती है तो वहा कैसी प्रतिक्रिया करनी है इससे वाकिफ  होना ही स्थितप्रज्ञ है।कभी कभार  आपने देखा होगा कि आप  सुख मे है तो वहा अचानक  कुछ  ऐसा घटित हुआ  कि स्थिति ही बदल गई। 

हमे इसे ऐसे समझना होगा कि हम जीवन के व्यस्ततम  चौराहे  पर खडे है जो अमूमन  होता है और हमे हर और से ट्रैफिक  को निर्बाध  रूप से गति देनी है ऐसा न हो कही का ट्रैफिक  बांधित  हो जाए।बस यही कला मे निपुणता  स्थितप्रज्ञ  की है।

यदि आपने हर हाल मे स्वय को सामना करने को ढाल लिया व न तो अति उत्साहित हुए न ही अति अवसाद  मे गए  जब यह कूल कूल सी स्थिति आप सहन व वहन करना सीख गए  तो महोदय आप स्थितप्रज्ञ हो गए। यह कोई  युद्ध  की ही स्थिति की कल्पना नही है यह जीवन के हर छोटे मोटे स्तर से लेकर सामान्य  से अध्यात्मिक  सामाजिक  से व्यक्तिगत  व पारिवारिक  व पारस्परिक  व्यवहार की अनुकूलता  ही स्थितप्रज्ञ  की स्थिति है।

यहा हमे स्थिर  रह कर न्यायिक  व्यवहार  का प्रदर्शन  करना है ताकि जो बताया कि कही का ट्रैफिक  रूके न अर्थात  हर क्षेत्र की अहमियत  को देखते हुए  ऐसे कार्य करे कि बडे से बडा व छोटे से छोटा कार्य भी प्रभावित  न हो अर्थात  ignore न हो न ही उसके किसी को  महत्वपूर्ण   या अमहत्वपूर्ण  की सी दशा का सामना करना न पडे यानि सब और सबको सामान तवज्जो दी जाए व मिले ।

साथियो यहा बात कोरी फीस लगती है पर इसका इतना ही महत्व नही है ओर  भी है पर क्या यही सब समेट ले ।न न ।यह संभव नही यानि धैर्य  भी चाहिए। ।

अभी हमे देखे यहा बहुत  कुछ  कहना बाकि है जो इस संकलन  मे मै सब न कहूगा ।मुझे इसके दूसरे भाग  मे बाकि व्याख्या करनी होगी। यह भी स्थितप्रज्ञ  की सी ही स्थिति है।तो कहिए  जयश्रीकृष्ण। क्योकि अगले भाग मे बाकि चर्चा जारी रखेगे 

धन्यवाद  व आभार। व जय श्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण  जयश्रीकृष्ण। जयश्रीकृष्ण। मिलते है अगले अंक मे।

जय श्रीकृष्ण। 

विवेचक। 

संदीप  शर्मा। देहरादून से। 


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