जय श्रीकृष्ण दोस्तो
हमने अपनी इस सीरीज "श्रीमद्भागवत गीता आज के संदर्भ मे Sandeep Sharma part :-2" की इस सीरीज मे
अपने पिछले लेख मे हमने मोह,
मोह व आसक्ति व फिर स्थितप्रज्ञ पर दो दो अध्यायो मे विवेचना व चर्चा की
आज हम इसी क्रम को आगे बढाते हुए, "स्वाध्याय" पर चर्चा को प्रस्तुत हुए है।ईश्वर से प्रार्थना है कि हम इसके सही अर्थ तक पहुंच सके। व सटीक अर्थ जान सके।
तो आइए चर्चा आरंभ करे।
सभी का मंगल हो।
तो साथियो हम करने जा रहे है चर्चा स्वाध्याय पर आप कहोगे ज्यादा समझता है अपने को जो स्वाध्याय जो हमे पता ही है उसे बताने जा रहा है। है न यही कहेगे न ,जी सही कह रहे है आप पर मै इसकी ऐसी हिमाकत नही कर सकता ।आप सब जानते ही है स्वाध्याय यानि आपके व सब के अनुसार वो अध्ययन जो हम स्वतः करते है ठीक कहा न।
तो असल बात लगती भी है,कि स्वयं का किया हुआ अध्ययन। अब आप देखे तो कितना हम स्वयं पढते है अध्यात्मिक से लेकर सामान्य साहित्य तक ।और तो और समाचार तक तो क्या यह सब स्वाध्याय है।
विचारे तो लगता है ।हां यही सब स्वाध्याय ।
स्वाध्याय यानि स्वयं से किया हुआ अध्ययन। पर एक सवाल है कि यदि स्वय का पढा हुआ या अध्ययन ही स्वाध्याय है तो उसके जो अर्थ हम महसूस कर रहे है वो ही सही या गलत जो भी अर्थ तक अपने विवेकनुसार समझ रहे है फिर तो वहा सही होने चाहिए ।
है न ।विचारे ।
क्या लगता है सब ठीक चल रहा है ,या मै जो भी कह रहा हू ।वह ठीक है।यदि आपको लग रहा है कि यही ठीक है तो महाशय आप निश्चित रूप से गलत है।
पर वही यदि लग रहा है कि नही थोडी गुंजाइश है सुधार की, तो आप थोडा सही है।व कुछ कुछ सही समझने लगे है। पर यदि उक्त उक्ति को आप सिरे से खारिज करते है तो आप निश्चित रूप से पूर्ण सही है।व आप सही मार्ग पर चल रहे है।आपको समझने मे ज्यादा देर न लगेगी।
तो साथियो यह स्वाध्याय स्वयं का किया हुआ अध्ययन नही अपितु " स्वयं का यानि निज का किया हुआ अध्ययन है।"
आप कहेगे अंतर कहा है
वही तो पहले कहा था।
पर नही महोदय वही नही कहा था।पहले आपने कहा था स्वय किया हुआ अध्ययन। यानि स्वयं ही पढा हुआ।
जबकि अब मे या अर्थ कह रहा है" स्वयं का अध्ययन" यानि की स्वयं को पढे स्वयं का अध्ययन करो ,*""यही स्वयं यानि निज या अपना अध्ययन करना ही स्वाध्याय है।*""
अब आप कहोगे कि खुद को क्या पढे,
व क्यू पढे तो यहा समझने की बात यह है कि स्वय को ही तो जानना है।इसी को तो समझना है कि हम कौन है कहा से आए है क्यू आए है क्या खाना पीना सोना मैथुन व सुख दुख भोगना या हसी मजाक करना ही स्वाध्याय है ।कहने की आवश्यकता नही कि नही ।
स्वाध्याय इससे बहुत आगे की चीज है हमने उन प्रश्नो के हल खोजने है जिनके उत्तर अब तक निरूत्तर है।
यह बढे बढे योगी के लिए भी दुविधा के प्रश्न है।इन्हे समझना आसान नही।आप देखे आप किसी की जरूरत है या आपके बिना भी चल सकता है ।तो अभी आपको लगेगा नही मै तो बहुतो की जरूरत हू। मेरे बिना मेरे बच्चे पति पिता मां बहन या अन्य रिश्तो का क्या होगा।सब को जी हाॅ सबको आपकी जरूरत है ।पर भ्रम है आपका चार दिन भी न लगेगे आपको भुलाने मे ।यह आप अपने से विलग हो चुके रिश्तो के बारे मे सोच कर देखे जो भले ही आपके बहुत प्रिय थे निकट थे आप राग के कारण तो याद करते है पर क्या उनके बिना कुछ भी रूका क्या ?
नही न।तो आप किसकी जरूरत की बात करते है कौन है जो आपकी आवश्यकता की कमी महसूस कर रहा है मात्र मोह के अलावा कोई नही ।
शायद ये अटपटा लगे पर लगने का कारण समझ नही आता क्योकि कारण तो है ही नही।
जो कारण हे उस पर आपका ध्यान ही नही है ।पराध्याय तो खूब हो रहा है वो वैसा वो ऐसा ।
पर स्वाध्याय का क्या ?
कुछ गलत कहा क्या।
बुरा न माने ,खुद को जाने,
खुद को जानना ही स्वाध्याय है न कि कुछ खुद का पढा हुआ।
हाॅ खुद का पढा हुआ आपकी आपको पहचान कराने ,आपका मुल्यांकन करने मे बहुत सहायक होगा।
आप कौन है ?
यह उत्तर किसी योगी के पास जाओगे तो भी न मिलेगा ।कारण योगी खुद वह कौन है की खोज मे है ।
तो आप दिवार पर सिर क्यो मार रहे है।बढे बढे योगेश्वर जो आज के है ,जिन्होने सब वेद व अध्यात्मिक ज्ञान कंठस्थ कर लिया है तो वो आपको जरूर बताएगे कि आप जीव है आत्मा है ,पर है कौन ।अभी भी निरूत्तर ।जीव तो भाई पेड पौधा ,पशु पक्षी,कीट पतंगे सब है जीवाणु से लेकर ब्लू व्हेल क्या जीव नही।क्या उनमे आत्मा नही तो फिर जो उन्होने इतना वेद ,पुराण, ग्रंथ आदि पढने के बाद बताया तो वो तो मै आपको बिना पढे ही बता रहा हू कि आप जीव है ।
अब जीव किसे कहे ? प्रश्न तो यह आ खडा हुआ।तो जीव आपके अनुसार वो जिनमे जान है।संजीव प्राणी है न क्योकि उनमे प्राण है।वो जीवन रखते है तो जीव।
मैने थोडा सा बहुत पहले जीव कौन है पर एक लेख लिखा था ।उसे पढना तब पता चलेगा ,जीव कौन है ,
तो मे तो यह कह रहा हू आप कौन हो??।उत्तर तो इसका चाहिए। क्योकि यात्रा इसकी है इस जीव ने जो शरीर धारण किया है वो क्यू किया है इसको जानना है।यह होगा स्वाध्याय ,ये बडा मूल प्रश्न है ।यहा से आप जानना आरंभ करोगे ।यह वैसी स्थिति सी है कि मै आपको एक अनजान स्थान पर ले जाऊ ,फिर वहा से आपको बताऊ ,कि आप फलाने जगह से फलानी जगह आ जाइए।,और आपको जिस जगह आप खडे है का आभास नही अगला गंतव्य कहा है कैसे पहुँचना है का आभास नही तो कैसे पहुचेगे।क्या पहुँच पाएगे,नही न ,कभी भी न पहुंच पाएगे ,कैसे पहुँचे क्योकि आप अनजान पथ पर अनजान लोगो से गिरे बैठे है, दूरी ,सथान,समय,साधन का कुछ पता नही।
अगला गंतव्य मालुम नही तो किधर जाओगे,क्या पाओगे समझ ही सकते हो।
है कि नही। यही स्थिति हमारी व आपकी है ।यदि गलत कहा हो तो बताओ।
यदि सच कहा हो तो भी बताओ।
अरे मुझे लगता है हमे इसकी चर्चा बाकि अगले अध्याय मे करनी चाहिए क्योकि यह बडा हो रहा है।
तो जय श्रीकृष्ण। फिर मिलते है अगले भाग मे ,
स्वाध्याय भाग दो मे।
तब तक जय श्रीकृष्ण। जय श्रीकृष्ण। जय श्रीकृष्ण।
विवेचक ।
संदीप शर्मा।
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