इस रंगमंच की दुनिया मे,
कितने अजीब से चेहरे है,
कुछ तेरे है ,कुछ मेरे है,
रखते बात , सब बहुतेरे है,
कुछ रात लिए,गम की काली,
कुछ उगते सूरज के सवेरे है,
इस रंगमंच की दुनिया मे ,
नित बदल रहे ,बस चेहरे है।
बात अजीब सी लगती है,न,,
अभी खुश थे कुछ देर पहले,
फिर कैसी बदरी घिर आई,
अब गम के बदरा घेरे है,
जो चहक रही थी खुशियां पहले,
वहा रात लिए अब अंधेरे है
नित नए बदलते मौसम है,
न टिकते सब,न ठहरे है।
इस रंगमंच की दुनिया मे
बस बदल रहे तो सेहरे है।
किरदार बदलते बहुतेरे ,,
हर बात के मतलब ठहरे है,
उसने वो कहा, और मैने ये कहा,
पर जो अर्थ लगे वो बहरे है,
इन मामूली सी बातो मे,
हम खो रहे अर्थ जो गहरे है,
इस रंगमंच की दुनिया के,
नित बदल रहे सब चेहरे है,
दम तोड रही,जज्बातो की,
गठरी जो सिर पे ले रहे है,
बस "मै" और "मेरा "ही ,हावी है,
हम ,तुम, सब तो ,कहा ठहरे है,,
इस रंगमंच की दुनिया मे ,
नकली नकली से चेहरे है।
बाते करते बस खुद ही की,
औरो से क्या,अपने थोडे है,
यही रंगमंच के किरदारो के
दिख रहे जो असली चेहरे है।
नकाब लगाए बैठे कई ,
रंग भी जिनके कुछ गहरे है,
चेहरा है छिपाते घूम रहे,
असली कौन है ,जो पहरे है,
सब मिलावट का है दौर चला,
असलीपन कहा अब ठहरे है।
इस रंगमंच की दुनिया मे,
सब नकली नकली चेहरे है।
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मौलिक रचनाकार।
संदीप शर्मा। देहरादून।
जय श्रीकृष्ण जी।
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