जय श्रीकृष्ण। सुधिजन, पाठकगण, व मित्रगण।
कृष्ण कृपा हम सब पर बनी रहे।
साथियो हम चर्चा कर रहे थे स्वाध्याय की,
स्वाध्याय यानि कि स्वयं का अध्ययन ,
क्यू करना है ताकि स्वय को जान सके कि आखिर हम है कौन।
व क्यू है।
आप को एक बात याद रखनी है वो यह कि सबसे पहले आप यह जान ले कि आपके होने के दो उदेश्य है जो एक उदेश्य मे आकर मिलते है। परम उदेश्य है स्वयं को जानना। व दूसरा उदेश्य है स्व का विकास। या उत्थान को प्रयास। अन्य कोई उदेश्य नही है जो कहू कि वो बाद मे बताऊंगा।
पहले परम उदेश्य ही जाने। क्योकि दूसरा उदेश्य उससे बाद आरंभ होता है।
अब प्रश्न है कयू जाने ?
तो क्यू का अर्थ या जवाब है ताकि आप आरंभ कर सके अपनी विकास की अगली यात्रा। कौन सी यात्रा,
अपनी तत्वदर्शी होने की यात्रा।
मै सोचता हू पता नही सार्थक है या निरर्थक। ये सब वार्ता पर कुछ भी कभी निरर्थक नही होता। हर कार्य का उदेश्य विशेष होता हो।तो यहा हम यही तो चर्चा कर रहे है।स्वाध्याय की।वो यह भी कि ये जो परिवर्तन सृष्टि का नियम है वो यही है कि सुंदर से विकृत होना,,व विकृत से सुंदर। यही अलटा पलटी तो चलती है जीव की यह सीख प्रकृति भी तो देती है न।
कहते नही है यहा सागर है पहले वहा बसावट थी,जगल थे पहाड थे आदि आदि व यहा आज हिमालय है वो सागरीय क्षेत्र था।तो यदि ऐसा है तो मेरे उक्त कथन की पुष्टि होती है न।चलो हम कहा उलझ गए। बस परिवर्तन सृष्टि का नियम है।व अटल है ,और यही बनना बिगडना ही सब चलता है।
अब आप देखे कितना आसान हो जाएगा स्वयं को जानना
आप पूछोगे वो कैसे ?
अरे वो ऐसे कि आपको बता दिया है आप खडे कहा हो ?
आपको पिछले अध्याय मे बताया था न कि आप ऐसे स्थान पर खडे हो यहा का आपको कोई अता पता भी नही है ।क्या यह स्थिति आपकी नही है ।सच बताना ।यदि न कहोगे तो बताओ तो वही प्रश्न जो आपसे पूछे थे पिछले अध्याय मे कि आप कौन हो ,क्यू हो इन सब के उत्तर। देखे जब यहा तक समझना सरल हो जाएगा न तब आगे के हल भी मिलने लगेगे कि,,
कि आपको गंतव्य भी जो अभी नही पता था दोनो का पता चल गया है।अब पता लगाना है कि जहा जाना है वहा से इनकी दूरी कितनी है। तब साधन खोजेगे। कि कौन सा ले और जब सब जान लेगे तो शुद्र से वैश्य,वैश्य से क्षत्रीय ,तब क्षत्रिय से ब्राह्मण व फिर तत्वदर्शी तक हो जाएगे ।जब तत्वदर्शी हो जाएगे तो ईश्वर तक की पहुंच सुगम हो जाएगी।
पर अभी भी मुझे लगता है आप समझे नही यदि समझ गए तो अच्छा यदि नही समझे तो चिंतन मनन करे।आप प्रबुद्ध है सब समझ आ जाएगा बस दो शर्ते रखे निरंतरता व धैर्य। यह आपकी सबसे बडी पूंजी है ,इस यात्रा की।
क्या आपने समझा कि स्वाध्याय है क्या ,
क्यू करना है,करके लाभ क्या होगा,
क्या लगता है कठिन है ?आप नही कर पाओगे क्या। क्या सच मे यही है या और भी तामझाम है।
सब पर विचार करना ,उन स्थितियों समझना,कब कैसे कहा इत्यादि के हल खोजने ही स्वाध्याय है।यही स्वाध्याय हमे हमारे गंतव्य तक ले जाने के मार्ग प्रशस्त करेगा।
यदि आपने मेरे इस सीरीज के पहले व पिछले सब अध्यायो का अध्ययन किया होगा तो यह सब समझना कितना सरल हो जाएगा कहने कि आवश्यकता नही।
तो अब लगता हो स्वाध्याय का उदेश्य व महत्व क्या है।क्यू है यही सब का अपना अध्ययन ही स्वाध्याय है।
आप जानते हो।न हम खान पान ,आचरण भाषा व व्यवहार आदि से हम क्या है का अनुमान वो भी सटीक अनुमान लगा सकते है कि हम शुद्र है,वैश्य है क्षत्रिय है या ब्राह्मण है ये चारो वर्णो को समझने के उपरांत हमे अपने स्तर को उत्थान हेतू अगला प्रयोग व प्रयास करने के साथ अपनी अगली यात्रा आरंभ करने को बढ सकते है ।एक पुस्तक क्या करती है देखा जाए तो।उत्तर मे आप यही तो कहोगे न कि करती क्या है एक विचार धारा को लेकर आरंभ करती है व निष्कर्ष पर लाकर छोडती है ।यही सब हम आपको समझा रहे है भाई कि आपनी पुसक को पढना है जो आपको एक विशेष विचार धारा की और ले जाएगी व वही से उत्तरोत्तर बढते बढते आप बढते जाएगे अपने लक्ष्य यानि दूसरे उदेश्य स्व विकास की और
कितना सरल है ।बस आईना देखना है ।ईमानदार रह कर आतम विश्लेषण करना है विकृत विकार किनारे कर निखार लाना है।
उसके विभिन्न स्तर है।विधियां है,प्रविधियां है यही अपना कर अपने को आगे आगे लेकर चलना व बढना ही जो हमे हमारे उन्नतिशील होने के परिणाम का घोतक बनेगी ।
इसी को स्वाध्याय करना है यह खुद का अध्ययन ही स्वाध्याय है और कुछ नही।
एक बात बताऊ
ईश्वर प्राप्ति के दो मार्ग है।
भक्ति (कर्म)मार्ग।
ज्ञान (कर्म)मार्ग।
कौन सा आप अपनाओगे यह भी तय आपको अपनी योग्यतानुसार लेना है।मान लीजिए श्रेणी छोटी है तो ज्ञान मार्ग लाभ न करेगा ।कारण विकृत है जो समझोगे अर्थ भी वैसे ही लगेगे।
शुद्र के गुण तो शुद्रता की और ही ले जाएगे न वो आपको ब्राह्मण जैसे अर्थ थोडे लगाने देगा।यदि इतना आसान होता तो यह वर्गीकरण ही क्यू होता।समझे कि नही।नही समझे तो बस मनन कीजिए न समझ आए तो भक्ति कीजिए। वो क्यू वो यू।कि हमने शुद्र बुद्धि के चलते तो अर्थ तो गलत ही लगाने है सो बजाय अर्थ लगाने के जो जो कहा जा रहा है करते जाओ।शैने शैने व्यवहार संगत होते होते व्यापार संगत होने लगेगा ।अर्थात आपका नियम बन जाएगा।जब ऐसा होगा तो बुद्धि प्रश्न करेगी हल खोजेगी।ऐसे ही विकास की गति आरंभ होगी।
धैर्यवान व निरंतरता
यह बहुत आवश्यक है कारण यात्रा लंबी व युगो की है ।एक जीवन मे नही समेट सकते ।अभी समझ है तो बढ़ो आगे,
आगे पता नही ।
क्या होगा कोन वेष,परिवेश मे आएगा।सो जब समय लगे तब करेगे नही इसके लिए समय निकाले।
वैसे ही देर हो चुकी है ,बस अहम यह है कि आप कौन सी ट्रेन पकडना चाहते है ।पैसेंजर या बुलेट।
तो क्या लगता है क्या जाना आपने स्वाध्याय के बारे मे क्या यह वास्तव मे जरूरी है या यू ही ।यह सब खुद विचारे।
यही जानने को है स्वाध्याय।
जय श्रीकृष्ण।
मिलते है हमारे अगले लेख मे
और हां कृपया कमैंट कर बताए क्या लेख कुछ समझा पा रहा है या नही ।
जय श्रीकृष्ण साथीगण।
जय श्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण। जयश्रीकृष्ण जयश्रीकृष्ण
विवेचक।
श्रीमदभागवत गीता ।
संदीप शर्मा। देहरादून से।
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