Skip to main content

पिता ।

 

ऐसे एहसास, को,,
जो हो बहुत ही खास हो ,,
जिसमे हो खुशी बिखेरने का दम,,
अंदर ज्वालामुखी का,
चाहे  हो रहा हो दहन,
नम्र  से ह्रदय  वाला,,
कठोर सा दिखने वाला,,
जो टूटा हो अंदर से,,
बिल्कुल  ही जार जार,,
तब भी रखे सशक्त,,बंधन का ,,आधार,,
पूछ लेते है कभी सज्जन मित्र  साथी,
तूसी साढे लई  कित्ता की,
दस्सो ता पिता जी।।

यह सब भी सुन कर ,,
और हौसले  बुनकर  ,,
जो खडा रहे दिवार सा,,
उलझा  हो बेशुमार  सा,,
उसी चट्टान  को ,,
कर रहे सम्मान  जो,,
तो कहिए  फिर ,,मै रिझा जी ,,
आप पर और पिता जी।।

आने वाली घडी,,
का लगाता अंदाजा,,
अपने ख्वाब  रख किनारे,,
दूसरो के रहता सजाता,,
करके अपनी सांसे कम,
भरता हिम्मत  सब मे दम,
मेरे बाद ,, न तंग रहे,,
परिवार  मेरा ,,हरदम बढे,,

मेरे बाद भी परेशानी न हो ,,
इसीलिए लुटाता जवानी वो,,
रहता सदा बेआराम,,
सोते  मे भी सोचे ,,यह काम,,
कैसे मिले सबको  आराम,,
परिवार  की चिंता  को ,,
ढोता चिता तक जो ,,
वही एक अदद सा शख्स,,
नाम है जिसका  पिता ,,
जिसके कभी माथे पर,,
न दिखे बल शिकन सा।

बेनजीर रखता वो प्यार
नजर किसी को आता न यार,,,
रखता ऐसा छिपा सब यार ।।
प्यार इसका झुकता नही।
बस करता रहता कुछ न कुछ,
पर सुनता कुछ भी करता नही।।

खोया खोया गुम सा,,
डांटने मे निपुण  सा,,
दिखाता बडा रौब,है,
अंदर का जो शोर है,,
उसे रहता सदा छिपाए,,
चुपचाप  भट्टी मे ,
वो खुद  को ही ,,
रहता  सुलगाए,,।

ऐसे दृढ, निश्चय वाला,,
परिवार  के लिए  हुआ मतवाला,,
करते जाए पुण्य,,पाप ,,
तब भी नही, होता उदास,,
इसकी जरा कहानी तो सुन,,।
कहते हो पिता जी ,,
क्या कर रहे तुम।।

ब्याह से लेकर ,,आखिर तक,,
सुनता,,सबकी ,,पर न फारिग  कब,,
आती जाती फर्माइशो का,,
चुभने वाली  शिकायतो का,,
सब की सब वो झेलता,,
बना लेता एक खेल सा,,

आऊट वो हुआ नही,,
सपोर्ट  उसे कभी मिला नही,,
भावनात्मक  होकर भी ,,
रखता उन्हे भींचता ,,
कैसा है न शख्स यह ,,
जिसे कह रहे सख्त है यह पिता ।

जिम्मेवारियो  मे भी  खुश  सा ,,
रहता बना बुत सा,
रखकर चेहरे पर झूठी हॅसी,
छिपाए  रखता ,चिंता  अपनी,,
बस रखता मकसद  एक,,
परिवार  मेरा बने नेक,,
सबकुछ  मै उसके लिए  कर जाऊ,,
खुश  रहे हर जन यहा,,
भले ही मै मर  क्यू न जाऊ,,।

ऐसी भावनाओ  का लिए, साथ ,,
रखता जो आत्मविश्वास,,
उस शख्सियत  का नाम है पिता,,जी,,
औलाद कभी कभी ,,तब भी है कहती,,
तूसी साढे लई  कि कित्ता  ,पिता जी।(2)

जोडकर  सबकुछ,,
छोड़कर  सबकुछ, 
जो हो जाता है खुश ,,
वो शख्स है पिता,,
जी वो शख्स है पिता।।[२]
##@##@##
मौलिक रचनाकार,,
संदीप  शर्मा,।


Comments

Popular posts from this blog

कब व कैसा दान फलदायी है।

 दैनिक जीवन की समस्या में छाया दान का उपाय 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ अक्सर ऐसा होता है कि व्यक्ति का बिता हुआ काल अर्थात भुत काल अगर दर्दनाक रहा हो या निम्नतर रहा हो तो वह व्यक्ति के आने वाले भविष्य को भी ख़राब करता है और भविष्य बिगाड़ देता है। यदि आपका बीता हुआ कल आपका आज भी बिगाड़ रहा हो और बीता हुआ कल यदि ठीक न हो तो निश्चित तोर पर यह आपके आनेवाले कल को भी बिगाड़ देगा। इससे बचने के लिए छाया दान करना चाहिये। जीवन में जब तरह तरह कि समस्या आपका भुतकाल बन गया हो तो छाया दान से मुक्ति मिलता है और आराम मिलता है।  नीचे हम सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन की विभिन्न समस्या अनुसार छाया दान के विषय मे बता रहे है। 1 . बीते हुए समय में पति पत्नी में भयंकर अनबन चल रही हो  〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ अगर बीते समय में पति पत्नी के सम्बन्ध मधुर न रहा हो और उसके चलते आज वर्त्तमान समय में भी वो परछाई कि तरह आप का पीछा कर रहा हो तो ऐसे समय में आप छाया दान करे और छाया दान आप बृहस्पत्ति वार के दिन कांसे कि कटोरी में घी भर कर पति पत्नी अपना मुख देख कर कटोरी समेत मंदिर में दान दे आये इससे आप कि खटास भरे भ

सीथा सादा सा दिल।

  है बहुत बडी उलझन, जब समझ न कुछ  आता, निकल जाते सब कोई  , बेचारा दिल  ही रह जाता , कितना कोमल  ये है, समझ इससे है आता , जो चाहे जब चाहे, इसको दुखा जाता, ये सीथा सादा दिल, समझ क्यू नही पाता, सब जाते खेल इससे, यह खिलौना  भर रह जाता। ये कितना सच्चा है , समझ तब  हमे है आता, हम मान लेते सब सच, जब कोई झूठ भी कह जाता। कितना ये सीधा है , तब और भी समझ आता। जब देखते छला ये गया, बना  अपना छोड जाता। कितना ये सादा है, पता तब  है चल पाता, जब हर कोई  खेल इससे, दुत्कार इसे जाता। ये सच्चा सीधा सा, कर कुछ भी नही पाता , खुद  ही लेकर दिल पर ये, हतप्रद ही रह जाता। हो कर के ये घायल , समझ नही  है कुछ पाता, क्या खेल की चीज  है ये, या जीवन  जो धडकाता। इतनी बेरहमी से , है धिक्कारा इसे जाता, ये तब भी सीधा सादा, बस धडकता ही जाता। खामोशी से सब सह , जब झेल न और पाता, कहते अब मर ये गया, तो जीवन  तक रूक जाता। यह सीथा सादा दिल , कितना कुछ  सह जाता। देकर के जीवन ये, बस खुद ही है मर जाता।(2) ######@@@@@###### वो कहा है न दिल के अरमान  ऑसुओ मे बह गए, हम वफा करके भी तन्हा रह

बहुत कुछ पीछे छूट गया है।

  बहुत कुछ  मुझसे  छूट  गया है, यू जीवन ही रूठ गया है, थोडी जो  कर लू मनमानी, गुस्से हो जाते है ,कई  रिश्ते नामी। सबके मुझसे सवाल  बहुत  है, सवाल मेरो के जवाब  बहुत है, अपने काम मे बोलने न देते, सब सलाह  मुझको  ही देते, क्या मै बिल्कुल  बिन वजूद हूॅ, या किसी पत्थर का खून हूॅ। क्यू है फिर फर्माइश  सबकी, ऐसे करू या वैसा ,जबकि, कहते है सुनता ही नही है, जाने इसे क्यू, सुझता ही नही है, बिल्कुल  निर्दयी हो चुका हूॅ। पता है क्या क्या खो चुका हूं ? बढो मे जब पिता को खोया, जानू मै ही ,कितना ये दिल रोया, और भी रिश्ते खत्म हो गए, जाते ही उनके, सब मौन हो गए। डर था सबको शायद ऐसा, मांग  न ले ये कही कोई  पैसा, सब के सब मजबूर हो गए, बिन  मांगे ही डर से दूर हो गए, ताया चाचा,मामा मासी, सबने बताई  हमारी   हद खासी, इन सब से हम चूर हो गए  , छोड  सभी से दूर हो गए। फिर  जब हमे लगा कुछ  ऐसा, रिश्ते ही नही अब तो डर काहे का। बस जिंदगी  के कुछ  उसूल  हो गए, बचपन मे ही बढे खूब  हो गए। इक इक कर हमने सब पाया,