गर्दिश मे अजमाना न ,किसी अपने को यारो,
यहा अच्छे अच्छे सगे भी, बेचारे ,,
मजबूर हो जाते है,
हाॅ गैरो पे कर लेना भरोसा ,,
ऑख मूंद कर भी,
क्योकि अपने तो पहले ही दूर चले जाते है।
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उसे बता , दिया क्या,, सच फिर तुमने,,
अपनी गुरबत का,,और उससे पडे काम का।
लो यही बात तुम्हारी ,, अच्छी नही ,,
अब वो भी,, देखना ,, कर रहा होगा ,,
तैयारी निकलने की,,समझना,,
काम बिन वजह ही कोई निकल आया जो होगा।
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उसे देखो ,टूट कर भी ,कैसे मुस्कुरा रहा,है,,
जैसे कोई होश खो "मसखरा "
पगला रहा है,
ये जो ताजा जख्म मिला है न उसे,"संदीप "
यह उसी का कोई सरूर है,उसको।
वर्ना मैने तो दुखती पे सबको,,
खामोश होते ही देखा है।।
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चोट दी ,,उसने बहुत खूब दी उसने,,
पर मेरे मुस्काने की आदत ,
मुझसे वह छीन नही पाई,
इसीलिए शायद ,,लगा उसे,,कि
मुझे खरोंच थोडी ही क्यू है आई,
मेरे उसके नोच तक डालने की हसरत,
भी ,,क्यू उसे इसी कारण,,
वो खुशी सी न दे पाई।(2)
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बडा जालिम किस्म का ढीठ है "संदीप, "
जो वो ,, टूट कर ,, सहन कर,,
अजीब सा ,,सब्र कर लेता है।,,
इतना टूटने पर भी,, जाने कैसे ,,
तू,, फिर से खुद को सब मे,,
""जज्ब "" कर लेता है।।
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क्या दुख ,तकलीफ मे हॅसना बुरा,है,
पूछ रहा था कोई,,
ऐसा खुश नसीब, कौन है यारो,,
जिसे ,इस दर्द का इल्म तक नही।।
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संदीप शर्मा ।
(देहरादून से)
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