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Showing posts from April, 2022

सिमरन क्या, क्यू व कब ?

 जय श्रीकृष्ण।  सभी मित्रगण  सुधिजन  ,पाठकगण, व,आदरणीय  जन को राधे राधे  के स्नेहिल  अभिनंदन के बाद मीठी सी जय श्रीकृष्ण।  साथियो  अक्सर कहते सुना है भज ले हरि का नाम तू बंदे फिर  पाछे पछताएगा। या गुरू धारण  कर लिया तो आवश्यक  है सुमिरन।  सुमिरन  है क्या ? क्यू आवश्यक  है लाभ  हानि  सब की चर्चा करेगे यहा। तो आइए पहले जाने कि :- *सुमिरन  है क्या ? सुमिरन  अर्थात  सिमरन। यानि पुनः पुनः किसी मंत्र   या नाम  का दोहराव  या उच्चारण करना।। पुनः पुनः ,बार बार। आखिर  बार बार क्यू? तो कारण स्पष्ट है मन की गति  तीव्र  है ,चलायमान है,चंचल  है मन,अस्थिर  है वायु की भांति  टिकता नही शायद वायु के गुण  लिए  है सो  इस अस्थिर व चंचल मन को स्थिरता देने के लिए  अभ्यास  की आवश्यकता है यह अभ्यास  सिमरन  कर पूरा  किया जा सकता है।एक कारण यह है । दूसरे और भी कई  महत्वपूर्ण  कारण है।मसलन अपना उद्धार। हम अपने मन को नियंत्रित  नही कर सकते कारण।इसकी तीव्र  गति व चलायमान  होना ।भौतिक  विज्ञान  मे समय चक्र  को समझे जिसे time speed से समझते है हम।तो यह पूर्व  व भावी  के साथ वर्तमान  को भी लिए  है ।मन को एक संत ने सूक

कर्म अकर्म व विकर्म। (भाग 1)

  जय श्रीकृष्ण। साथियो जय श्रीकृष्ण। मित्रगण  जय श्रीकृष्ण  पाठकगण। आज फिर कृष्ण कृपा से एक विशिष्ट  व विशेष  शब्द कर्म, अकर्म  व विकर्म  को समझने व चर्चा करने की प्रयास यहा हम  करेगे। श्रीकृष्ण जी ने  आज  यही प्रेरणा दी है। तो आइए  विश्लेषणात्मक  चर्चा  करे  व देखे कि वहा तक पहुंच  पाते है यहा श्रीमदभागवत  गीता जी असल मे ले जाना चाहती  है ? तो आइए  करते है चर्चा। आइए पहले समझे कि  कर्म क्या है ? कर्म action:- What is action? कर्म  क्या है ? वैज्ञानिक  लोगो ने इसकी अपनी परिभाषा दी है।जैसे:- "Work is said to be done if a thing  or object is displaced by  putting  an efforts. " यानि "कोई  बाह्य अथवा  आंतरिक बल लगाने पर वस्तु की स्थिति  यदि बदल जाए  तो यह कार्य या काम कहलाता है।" उदाहरण। आप बताए व देखे। तब भी न समझ आए तो पूछे। यह कर्म या कार्य का सिद्धांत हमारे अध्यात्मिक स्तर पर भी क्या यही बात होना या इस परिभाषा का सार्थक होना मानता है अथवा नही। मेरे मतानुसार ,जी  हां  मै तो इसे बिल्कुल  मानता हू। पर यहा जो समझना है वो कि कैसै? क्योंकि  यहा कर्म आपके स

कर्म अकर्म व विकर्म।( भाग 2)

  जय श्रीकृष्ण  साथीगण। जय श्रीकृष्ण। पाठकगण। व जय श्रीकृष्ण  सुधिजन  । कृष्ण कृपा का विस्तार। हुआ है तो पिछले लेख कर्म अकर्म व विकर्म के  लेख पर चर्चा करते हुए  इसके अगले अंक  पर बढते है।हम चर्चा  कर रहे थे कि कर्म  की।  व कर्म  की परिभाषा के बाद हमे बताया गया था कि कर्म  यज्ञ है व यज्ञ ही कर्म है।तो इस यज्ञ  को समझना है यज्ञ  वर्षा कराएगा यज्ञ  पुष्टि का साधन  होगा यज्ञ  से विकास  होगा।तो यज्ञ  हमारे कल्याण का एकमात्र  साधन  है।और वह यज्ञ है ध्यान  कर मंत्र  उच्चारित  करना।जो सृष्टि का आरंभ से अंत व आत्माओ व जीव की पूर्व  व बाद की गतियो का साधन है वो एकाक्षर मंत्र और कोई नही बस ¤ॐ¤ है।इसी को  ॐ को बस ॐ को साधो।यदि अपने जीवन रूपी  पिंड  का उत्थान  करना है तो□ ॐ□का जप करना होगा ।यह सृष्टिकाल  का नियंता है।बस आस्थावान होते हुए  ध्यान मग्न होकर अपने इष्ट को नमस्कार  कर ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ, का निरंतर  जप करते रहे व कोई  अन्य साधन  या मंत्र को  न बोले बस यही बोले। ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ,ॐ, यही आपके अवमुक्त होने का साधन  है। यह कोई  पाठ नही है जिसे निपटाना है जल्दी जल्दी बोल कर स

मानव स्वभाव ।(भाग एक।)

  हरि कृपा हुई आज फिर जो हमारी अधूरी चर्चा पर हम पुनः एकत्र हुए  । सबको जय श्रीकृष्ण। तो चर्चा चल रही थी मानव या जीव के स्वभाव  की। पहले तो प्रश्न बनता है :- * आखिर  यह स्वभाव  है क्या  ? तो आदरणीय  जो मन की वृत्ति  का प्रतिकार है अर्थात  जो हमारे आचरण  व व्यवहार  व मनोवृत्ति  की किसी आचरण  के फलस्वरूप परितोष चाहे वो सकरात्मक हो नकारात्मक हो अथवा तटस्थ भाव से दिया गया प्रतिउत्तर ही हमारा स्वभाव है। जैसे भाषा को संबोधित  करते हुए  कहते है कि मन की बात कह कर। बोल कर ,लिख कर या संकेत  द्वारा समझा कर हम अपने मन की बात का जो अदान प्रदान करते है तो वो विधि  भाषा है वैसे ही हमारे आचार, व्यवहार,व संकेत के माध्यम  से किसी क्रिया  की प्रतिक्रिया हमारा स्वभाव है। अब यह कोमल है कठोर है ,अच्छा है व बुरा है यह सब नापने को तीन भाग कर दिए  गए। जो इससे पूर्व के लेख  मे बताया था।यह तीन भाग है *सात्विक, *राजसिक। व *तामसिक। अब हम थोडा थोडा पुनः यहा इस पर विचार-विमर्श  करते है। जैसे कि पहले है सात्विक। यह हमारा  आचरण   या स्वभाव  कब सात्विक  होता है व कब नही यह हमारे खानपान पान आदत भाष