नदी किनारा, प्यार हमारा, चलते रहते,, साथ, सागर तक,, पर मिलते नही ,, कभी भी किसी पथ पर ,, यह है मेरा जीवन सारा,, हमसफर संग,, नदी किनारा। बेखबर नदी,की, बहती धारा, हमारा जीवन , नदी किनारा,, उसकी अपनी निज की ख्वाहिशे,, बेहतरीन ,बेतरतीब, रिवायते,, अच्छा है उस पार ही होना, हमे तो है जीवन को नाहक है ढोना,, सब मे वो एहसान करे है,, जाने क्यो वो साथ चले है,, मजबूरी बंध की कहा जरे है,, बेमन हो,किनारे खडे है,, मुडा भी कई बार उसकी तरफ मै,, वो मुड गई ,,दूसरी तरफ कह, मेरा अपना भी तो जीवन है,, जिसमे उसके अपने रंग है । यहा है जीवन बेजार बेचारा, नीरस उस संग,,नदी किनारा,, चहक तभी ,,जब मतलब होता,, निज अपने का जब काम कोई होता,, इधर के बंधन भारी लगते,, ऐसी चाहत,, जाने क्यू करते,, कैसे किसने उसको पाला,, फिर क्यू न रख पाए, यह सवाल उछाला,, सामाजिक रीत की दे दुहाई,, क्यू नदी को खारा कर डाला,, तंज,है वो ,,दोजख,सा सारा,, जीवन उस संग,,नदी किनारा, मिलन न होगा,,कभी हमारा, क्योकि हम है नदी किनारा।। मै और वो दो विलग है राही,, मजबूरी उसकी देखी सारी,, कभी बैठोगे तो बताऊंगा,, यहा कहा मै सब लिख पाऊंगा,, ब