Skip to main content

Posts

Showing posts from May, 2022

तुम ही हो मेरे "खिलते एहसास।"

  तेरे होने का आभास, मेरे सब "खिलते एहसास,, " तेरे ख्वाब और तेरे ख्याल, कहते मेरे दिल के सब  हाल,, इक बेतकल्लुफ  सी बहकी कशिश, चाह है मिलन की ,जिसकी इश्क, दिल का मिलना सिर्फ  रूहानी न कि आग हो,  सिर्फ जिस्मानी,, तेरा हर इक जो भी अंदाज, मेरे सब  " खिलते एहसास, " तुम्हारा आलिंगन, तुम्हारा चुंबन, आलोकित करता रूह तक गुंजन,, तुम्हारे मिलन की बस इक आस, सब मेरे है " खिलते एहसास। " तुम्हारी महक,तुम्हारी वो चहक, खिलखिलाती हॅसी की बहक,, कितनी मिटाती है मेरी प्यास, है खूबसूरत" खिलते एहसास, " तुम्हारी नाजुक  सी  कलाई, जिसमे चूड़ी खनखनाई,, तुम्हारे  माथे की वो बिंदिया, आने दे न ऑखो मे निंदिया,, तुम्हारे गोरे से  कोमल पाॅव, जैसे,सुकून  देता राहगीर को गांव,, तुम्हारे कुंचित,काले केश, जैसे आए बदरा  देश, तुम्हारी खनखनाती आवाज, मेरे मन के कोमल भाव, तुम्हारी पैरो की छमछम  पैजनिया, कैसे कहू दिल की रूनझुनियां, तुम्हारी बलखाती  सी चाल , सब है मेरे "खिलते एहसास, " तुम्हारी नजरो का शर्माना, देख...

रंगमंच की दुनिया

  इस रंगमंच की दुनिया मे, कितने अजीब  से चेहरे है, कुछ  तेरे है ,कुछ  मेरे है, रखते बात , सब बहुतेरे है, कुछ  रात लिए,गम की काली, कुछ  उगते सूरज के सवेरे है, इस रंगमंच की दुनिया मे , नित बदल रहे ,बस चेहरे है। बात अजीब  सी लगती है,न,, अभी खुश  थे कुछ देर पहले, फिर  कैसी  बदरी घिर आई, अब गम के बदरा घेरे है, जो चहक रही थी खुशियां पहले, वहा रात लिए  अब अंधेरे है नित नए बदलते मौसम  है, न टिकते सब,न ठहरे है। इस रंगमंच की दुनिया मे बस बदल रहे तो सेहरे है। किरदार  बदलते बहुतेरे  ,, हर बात के मतलब ठहरे  है, उसने वो कहा, और मैने ये कहा, पर जो अर्थ लगे वो बहरे है, इन मामूली सी बातो मे, हम खो रहे अर्थ जो गहरे है, इस रंगमंच की दुनिया के, नित बदल रहे सब चेहरे है, दम तोड रही,जज्बातो की, गठरी जो सिर पे  ले रहे है, बस "मै" और  "मेरा "ही ,हावी है, हम ,तुम, सब तो ,कहा ठहरे है,, इस रंगमंच की दुनिया मे , नकली नकली से चेहरे है। बाते करते बस  खुद ही की, औरो से क्या,अपने थोडे है, यही रंगम...

स्वाध्याय [भाग दो ]

 जय श्रीकृष्ण। सुधिजन, पाठकगण, व मित्रगण।  कृष्ण  कृपा हम सब पर बनी रहे। साथियो  हम चर्चा कर रहे थे स्वाध्याय  की, स्वाध्याय  यानि कि स्वयं का अध्ययन  , क्यू करना है ताकि स्वय को जान सके कि आखिर  हम है कौन।  व  क्यू है। आप को एक बात याद रखनी है वो यह कि सबसे पहले आप यह जान ले कि आपके होने के दो उदेश्य है जो एक उदेश्य  मे आकर मिलते है। परम उदेश्य  है स्वयं को जानना।  व दूसरा उदेश्य  है स्व का विकास। या उत्थान  को प्रयास। अन्य कोई  उदेश्य नही  है जो कहू कि   वो बाद मे बताऊंगा।  पहले परम उदेश्य  ही जाने। क्योकि दूसरा उदेश्य  उससे बाद आरंभ  होता है। अब प्रश्न है कयू जाने ? तो क्यू का अर्थ  या जवाब  है ताकि आप आरंभ  कर सके अपनी विकास  की अगली यात्रा। कौन सी यात्रा,  अपनी तत्वदर्शी  होने की यात्रा। मै सोचता हू पता नही सार्थक है या निरर्थक। ये सब वार्ता   पर कुछ  भी  कभी निरर्थक  नही होता। हर कार्य का उदेश्य विशेष होता हो।तो य...

आधुनिक पत्नि का प्रेम।

  इक पत्नि  पति से कहने को प्यार करती, जब देखो शिकायते हजार करती, बात हो जाती मायके मे कोई  अनबन की, लुकछिप कर बात करती, और वही होती जब घर पति के , तो हर रिश्ते मे प्रचार करती। देखा पत्नि कितना पति से प्यार करती। यह फर्क है प्यार और प्रेम  मे, एक अपनत्व व बनावटी के फ्रेम मे, तब शिकायत  शिकायत  न रहती, जब नारी परिवार पति को भी, उतनी ही समर्पित  रहती, उसकी बात का भी वैसे ही पर्दा करती, पर अब न तो यह रिवायत है, न ही रिवाज है, नारी की सशक्त बडी आवाज है। दबी है न सदियो से तो यह ,तो प्रतिकार उसके ,का  ही अवार्ड है क्या करे नारी अबला है ,कहते है सब। पर पुरूष  की भी खो रही अब आवाज है। क्या करे यही सब अब आगाज है रिवाज है। जय श्रीकृष्ण।                      ###### वो समझे जिनके लिए ये हालात  है। जिन बहनो के भाई संग है यह स्थिति।  वो तो सहमत हो सकती है ,पर जिनके साथ इसका कोई  लेना देना नही वो तटस्थ  रह कर नि...

स्वाध्याय [ भाग एक]

 जय श्रीकृष्ण  दोस्तो  हमने अपनी इस सीरीज  "श्रीमद्भागवत गीता आज  के संदर्भ  मे Sandeep Sharma part :-2" की  इस सीरीज मे  अपने पिछले लेख मे हमने मोह, मोह व आसक्ति  व फिर  स्थितप्रज्ञ  पर दो दो  अध्यायो  मे विवेचना  व चर्चा की  आज हम इसी क्रम को आगे बढाते हुए, "स्वाध्याय"  पर चर्चा को प्रस्तुत  हुए है।ईश्वर  से प्रार्थना है कि हम इसके सही अर्थ तक पहुंच  सके। व सटीक  अर्थ जान सके। तो आइए  चर्चा आरंभ  करे। सभी का मंगल  हो। तो साथियो हम करने जा रहे है चर्चा स्वाध्याय  पर आप कहोगे ज्यादा समझता है अपने को जो स्वाध्याय  जो हमे पता ही है उसे बताने जा रहा है। है न यही कहेगे न ,जी सही कह रहे है आप पर मै इसकी ऐसी हिमाकत  नही कर सकता ।आप सब जानते ही है स्वाध्याय  यानि आपके  व सब के अनुसार  वो अध्ययन  जो हम स्वतः करते है ठीक  कहा न। तो असल बात लगती भी है,कि  स्वयं का किया हुआ अध्ययन। अब आप देखे तो कितना हम स्वयं पढते है अध्यात्मिक  से ले...

स्थितप्रज्ञ [भाग:-2]

  जय श्रीकृष्ण,जी। पाठकगण सुधिजन व मित्रगण।   दोस्तो  आज श्रीकृष्ण  जी की कृपा पुनः हुई  और हम उपस्थित है अपने स्थितप्रज्ञ  के अगले भाग की विवेचन  को। हमने पिछले भाग  मे इसके कुछ  पहलुओ  पर विचार  किया था ,अब आगे विवेचन  करते है। स्थितप्रज्ञ  का। स्थितप्रज्ञ  का जो सबसे ज्यादा अर्थ मुझे समझ मे आता है वो है वर्तमान  मे रह कर उस स्थिति  अनुकूल  व्यवहार  करना जो उचित  हो व जिसकी आवश्यकता हो। न कि या तो भूत की विवेचना करते रहना व अपनी तारीफ  या निंदा  मे व्यस्त  रहना न ही भविष्य  को व्यथित  रहना कि  यह कर दूंगा वह कर दूंगा ।इसी की दौड  या चिंता मे ही  रहना। कारण एक तो न ही  भूत व न ही भविष्य  आपके  या हमारे हाथ मे है । और फिर  न ही आप और हम  भूतकाल को बदल सकते है न ही भविष्य  से परिचित है भविष्य  मे आप  की क्या  स्थितियां होगी ये  भी किसे मालुम। हाॅ वर्तमान  अमुल्य है जिसमे हमे न्यायिक  ज...

स्थितप्रज्ञ। [भाग एक ]

 राधे राधे दोस्तो, पाठकगण, सुधिजन, व मित्रगण को जय श्रीकृष्ण के साथ-साथ  राधे राधे । दोस्तो आज अपनी "श्रीमदभागवत गीता आज के संदर्भ मे Sandeep Sharma "part -2" के तीसरे भाग  मे मोह के बाद स्थितप्रज्ञ पर लिखने को मन हुआ।दोस्तो यह terminology श्रीमदभागवत गीता मे बहुत बार कही  व प्रयोग  की गई है । जब तक हम।इनका सही सही अर्थ नही जान लेते तब तक हम उस वाक्य की गहराई  को नही नाप सकते है।  जहा ये प्रयोग  हुआ है। तो सखी यह बात है जब  मुझे श्रीकृष्ण  प्रेरित  करते  कि मै लिखू  तो आनन्द  बढ जाता है।कारण  मुझे स्वय  भी विभिन्न  दृष्टिकोण  पर सोचने को प्रेरणा मिलती है।  तो चलो विवेचन  कर प्रयास  करते है समझने का इस शब्द स्थितप्रज्ञ को जो गहरे अर्थ छिपाए है। स्थितप्रज्ञ:- का संधि  विच्छेद  करे तो  स्थिति +प्र + ज्ञ  स्थिति यानि इक दशा या स्थिति  जिसमे आप यथार्थ रूप  से है ।यह सुख व दुख  या आनंद  की अवसाद  की कोई  भी हो सकती है। प्र:- यानि प्रवीण।,या...

मां

  मां से आई ममता, मां से आया प्यार, मां से उपजा वात्सल्य, मां से आया विश्वास। मां से आई महानता, मा से आई, आस, मां से आया नेह भाव , मां से आया राग, माॅ से ही आरंभ हुआ सृजन, मां से ही उपजे भाव, माॅ से छलकी संवेदना  माॅ से आए विचार, मां से ही ईश्वर  हुआ, ईश्वर  से हुई मां दोनो पर्याय  इक दूजे के , दोनो मे  कोई  कम न। मां ही तो इक शक्ति है , जिसकी तुलना कोई  न, मां ही शब्द सम्पूर्ण है, जिसमे कम कुछ  न। मां से ही नारीत्व है, मां से ही पुरूष हाॅ , मां से ही सब सृजन है, शब्दो की कमी न। मा से ही सब का वर्चस्व है, मां बिन कही कुछ  न, मां से ही अभिनंदन है, मां बिन सब सूना, मा से ही है आस्था, मां से ही है वंदना, मे से ही प्रार्थना। मां बिन  कही कुछ न। मां से ही सब अभिव्यक्त है,। मां से ही सशक्त  जहान, मां से  ही है देवत्व भी, मां से ही आत्मा। @@###@@ संदीप शर्मा। देहरादून से। जय श्रीकृष्ण।

मोह व आसक्ति( भाग दो।)

  सभी मित्रगण को प्रणाम  व जय श्रीकृष्ण। व राधे राधे। साथीगण  यह मोहहमे बडा सताता है पर यह हमारे उत्थान  को आवश्यक है।व यह प्रेरित  करता है कि हम अपने उदेश्यको सार्थक ढंगसे निर्वहन करते हुए आगे बढे।।तो आइए  सुनते है यह कथा। जिसका हमने आपको पिछले अध्याय  मे सुनाने का मोह रख छोडा था। कहते है जब ऋषि वेदव्यास  श्रीमदभागवत  पुराण  को रचने को प्रेरित  हुए थे तो  उन्हे ऐसे सृजन शील व्यक्ति या हस्ति की आवश्यकता हुई जो इस पुराण  को उसी गति से लिख सके जिस गति से वेदव्यास  भगवान  सोच रहे  हो व सृजन  कर रहे थे।तो ऐसे मे नारद जी ही सहायक हुए।नारद जी ने इसमे उनकी सहायतार्थ  श्री गणेश  जी का नाम  सुझाया। तो वो उनने पास  गए  व उन्हे मनाया वो तो बुद्धि  कौशल के स्वामी है तो हामी भर दी।और इधर वेदव्यास  जी ने एक विचित्र  शर्त यह रखी कि जो बोलूंगा  वो तो उसी गति से लिखोगे  ही पर लिखोगे तब जब उनके अर्थ सही  सही से लगा सको।और यह तो गणेश जी   थे ही कौशल ...