Skip to main content

Posts

Showing posts from January, 2022

कब व कैसा दान फलदायी है।

 दैनिक जीवन की समस्या में छाया दान का उपाय 〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️ अक्सर ऐसा होता है कि व्यक्ति का बिता हुआ काल अर्थात भुत काल अगर दर्दनाक रहा हो या निम्नतर रहा हो तो वह व्यक्ति के आने वाले भविष्य को भी ख़राब करता है और भविष्य बिगाड़ देता है। यदि आपका बीता हुआ कल आपका आज भी बिगाड़ रहा हो और बीता हुआ कल यदि ठीक न हो तो निश्चित तोर पर यह आपके आनेवाले कल को भी बिगाड़ देगा। इससे बचने के लिए छाया दान करना चाहिये। जीवन में जब तरह तरह कि समस्या आपका भुतकाल बन गया हो तो छाया दान से मुक्ति मिलता है और आराम मिलता है।  नीचे हम सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन की विभिन्न समस्या अनुसार छाया दान के विषय मे बता रहे है। 1 . बीते हुए समय में पति पत्नी में भयंकर अनबन चल रही हो  〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ अगर बीते समय में पति पत्नी के सम्बन्ध मधुर न रहा हो और उसके चलते आज वर्त्तमान समय में भी वो परछाई कि तरह आप का पीछा कर रहा हो तो ऐसे समय में आप छाया दान करे और छाया दान आप बृहस्पत्ति वार के दिन कांसे कि कटोरी में घी भर कर पति पत्नी अपना मुख देख कर कटोरी समेत मंदिर में दान दे आये इससे आप कि खटास भरे भ

ब्रह्मचर्य कया है ?

 जय श्रीकृष्ण मित्रगण। जय श्रीकृष्ण। आप सबको यह जान  कर हैरत होगी कि आप जो स्वय को लेकर  भ्रमित है कि आप की जाति  फलानी या फलानी है तो यह भ्रम शायद आपका "ब्राह्मण  कौन"  पढ कर शांत हो गया होगा। चले आगे बढते है। ब्राह्मण  को जाना तो समझ आया जो जीव को शुद्र से  ब्रह्म  बनाने की ताकत  रखता हो वो ब्राह्मण। या जो ईश्वर  से मिलवाने  की राह प्रशस्त करे वो ब्राह्मण। है न सरल। तो अब एक प्रश्न  उठना लाजिम है की  ब्रह्मचर्य  क्या है ? तो दोस्तो यह अगर मै सरल शब्दो मे कहू तो  ब्राह्मण  का आचरण  ब्रह्म आचरण  अर्थात  जो आचरण  एक विद्वान  ब्राह्मण  अपनाए, जो उसकी जीवन  चर्या  होगी वही आचरण  तो ब्रह्मचर्य  होगी न ।है कि नही तो यदि मै कहू ब्राह्मण के द्वारा किया गया आचरण ब्रह्मचर्य है ,तो यह अतिशयोक्ति तो  न होगी न।  अब सवाल  यह उठता है कि कैसा आचरण। क्या शारिरिक  इन्द्रियो मै मैथुन क्रिया का अंकुश या नियत्रंण  ब्रह्मचर्य है, तो मै इसको  स्पष्ट  रूप  से कहूगा  नही।कारण ब्रह्म का आदेश  क्या है  सृष्टि का सृजन  ।तो मैथुन  क्रिया के नियत्रंण  से क्या यह संभव है, कदाचित  नही।तो फिर  क्या है यह ब्

अमावस व पूनम।

  अमावस्या और पूर्णिमा का रहस्य (पुनः प्रेषित) 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ हिन्दू धर्म में पूर्णिमा, अमावस्या और ग्रहण के रहस्य को उजागर किया गया है। इसके अलावा वर्ष में ऐसे कई महत्वपूर्ण दिन और रात हैं जिनका धरती और मानव मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। उनमें से ही माह में पड़ने वाले 2 दिन सबसे महत्वपूर्ण हैं- पूर्णिमा और अमावस्या। पूर्णिमा और अमावस्या के प्रति बहुत से लोगों में डर है। खासकर अमावस्या के प्रति ज्यादा डर है। वर्ष में 12 पूर्णिमा और 12 अमावस्या होती हैं। सभी का अलग-अलग महत्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार माह के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार पर 15-15 दिन के 2 पक्षों में बांटा गया है- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या। हिन्दू पंचांग की अवधारणा 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ यदि शुरुआत से गिनें तो 30 तिथियों के नाम निम्न हैं-पूर्णिमा (पूरनमासी), प्रतिपदा (पड़वा), द्वितीया (दूज), तृतीया (तीज), चतुर्थी (चौथ), पंचमी (पंचमी), षष्ठी (छठ), सप्तमी (सातम), अष्टमी (आठम), नवमी (नौमी), दशमी (दसम), एकादशी (ग्यारस), द्वादशी (बारस),

बेगैरत हू मै।

 बेशुमार  किस्म का बेशरम हू मै, टूटता हू,हर बार ,कई बार ,फिर भी मै, फिर भी  मुस्करा देता हू मै । पूछो न कितना बेगैरत हू मै, खा कर चोट  भी अपनो से ,अच्छी तरह,  उनके फिर भी  काम  संवार आता हू मै, कहते सब मूर्ख  हू मै, यह सब कैसे कर कर लेता हू मै। अब क्या बताऊ  सबको मै, किश्तो मे जीने की ख्वाहिश, से, दुख भरी खाली सी अजमाईश, से, सब की बना कर  पुडियाॅ ,मै, निगल जाता हू ज़हर की तरह ,सब मै। जोकि जानता हू कि  मुमकिन  नही , खुश कर दे कोई  मुझको यहां।  सब बैठे है अपने फायदो को, देगा कौन मुझे  फिर  नफ़ा यहां। बस जीना है पाकर के यही , जो रखना है रिश्ता  कोई  जिंदा  यहां।(2) ###################### All copyright rights reserved n Originally Scripted by , Sandeep Sharma  Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com  Jai shree Krishna g.  ,

मै वो था या यह हू मै।

  क्या दौर था उस जमाने का, था बचपन वो खजाने सा, न मांग  बनानी आती थी , न बात ही बनाई  जाती थी, कोई  कुछ  भी हमे कह जाता था, यह दिल न दिल को लगाता था, अब अजब गजब  सी बात है, वही मै हू वही जज्बात है, अब सही किसी की नही जाती, हर बात बुरी लग जाती है, मेरी दुनिया जाने क्यू फिर, मुझसे  ही उलझी जाती है, शायद मै अब मुझमे वो न रहा, जो असल मे हुआ करता था, अब भरा हू मै बस उस सब से , जो करा तुम सब ने मुझ संग से, समझ आता नही की  कौन हू,मै, जो अब हू या जो तब था वो मै। इक जीवन  के बीते बरसो ने सब सोख लिया  सच था जो मै। अब रहा नही कुछ  भी बाकि , जो पैदा हुआ था मुझमे  मै।(2) क्या वो था मै या यह हू मै नही समझ है आता कि कौन  सा हू मै।(3) ○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○ स्वरचित मौलिक रचनाकार, संदीप शर्मा, Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com , Jai shree Krishna g.

गलतफहमियां

  बात अब वो रही नही, जो होती थी पहले कभी, अब तो सिर्फ  फसाने है , सुनी इधर उधर  की बाते है। मन को कर लिया है बंद फिर  आज , सुन उनकी कोरी झूठी बात, जो कह रहे है वो उनसे वो  और किसी  के  लहजे है, क्यू करते है यकीन  उनका, उनकी बेगैरत सी बाते है। क्या  इतना ही मुझको जाना, फिर  काहे का यह अफसाना, उनसे कहना कि ठीक  हुआ, जो मुझको उन्होने अपना न माना। जब  फितरत ही मेरी , उन्हे मालुम  नही, वो बात ओरो की करते है, मैने ऐसे कहा,मैने वैसे कहा,, ये सुनी सुनाई  बाते है, उनसे कहना मै नही हू वह , जो लोगो ने बतलाया है। थोडा सा मुझे जो जान वो ले, तो उनका ही सरमाया मै, वो सारी है गलतफहमियां, जो उनका मन भरमाया है। मै था ही नही ,जो बताया गया, जाने किसने भरमाया है। कहना उनसे ठीक हुआ, जो उनको गया समझाया है। क्यू मानते है वो लोगो की जो पीठ पीछे  बुलवाया है। करते वो यकीन तो अच्छा था, जो मुझको उन्होने  जाना था, रह जाते वही फिर हम बन कर , जो किस्सा अब  अनजाना है। उनसे कहना , उनसे कहना, यह सब तुम उनसे कहना, ये दिया गया जो धोखा है, यह दुनिया  का अफसाना है। नही गम मुझे रत्ती 

आनलाइन की बात

  आजकल  सबको सुकून बहुत है, आनलाइन है सबकुछ, फिजूल  वक्त है। क्या हुआ जो बोस सख्त है, यहा तो काम है आनलाइन  , अब वक्त ही वक्त है। पूछे स्कूल  वाले तो , तो कहते काम  कहा कराते है, इतना कुछ  करवाते बस , पढाई  ही नही कराते है, आज कल जो थोडा सा , यह बोझा शिक्षक  ने डाला है, अभिभावक हो चुके परेशान, उन्हे लगता सब गडबडझाला है, कहते है कराते कुछ  नही, पर मांगते तो देखो,फीस  बहुत है,। आनलाइन के किस्सो की, शिकायत बहुत है। इधर पापा की तो देखो मौज हो रही, अगर दफ्तर है सरकारी,तो खोज  हो रही, अरे कोई  आएगा ,या फिर  बताएगा, कि फला फला काम कौन करवाएगा। हर कोई  परेशान है, कर्मचारी  आनलाइन, अब नही कोई  लाईन, फौकट की तनख्वाह है। आनलाइन  गवाह है , समझ नही आ रहा , काम कैसे चला जा रहा, ओह समझ मे आ गया, यह राज भी आज  खुल गया, ये जो सरकारी नाम  का कर्मचारी  था , काम करता कहा था लाचारी था, वो तो आफलाइन, भी आनलाइन  , सा काम करता था। हाॅ  फर्क यह है , आफलाइन  पर थोडा उपर , से भी कमा लेता था। चलो हमे क्या। हम कौन सा सरकारी है, काम दफ्तर मे होता कब तभी तो बेकारी है। लो उधर

ॐ को जाने।

  ॐ प्रनव मंत्र है। ॐ हमारे जीवन को स्वस्थ बनाने का सबसे उत्तम मार्ग है। 1. नियमित ॐ का मनन करने से पूरे शरीर को विश्राम मिलता है और हार्मोन तंत्र नियंत्रित होता है 2. ॐ के अतिरिक्त चिंता और क्रोध पर नियंत्रण पाने का इससे सरल मार्ग दूसरा नहीं है 3. ॐ का उच्चारण प्रदूषित वातावरण में यह पूरे शरीर को विष मुक्त करता है 4. ॐ का मनन हृदय और रक्त संचार प्रणाली को सुदृढ़ करता है 5. ॐ के उच्चारण से यौवन और चेहरे पर कांति आती है 6. ॐ के जप से पाचन तंत्र सुदृढ़ होता है 7. थकान के बाद ॐ का मनन आपको नई ऊर्जा से भर देता है 8. अनिद्रा रोग से छुटकारा पाने में ॐ का बहुत महत्व है। सोते समय इसका नियमित मनन करें। 9. थोड़े से प्रयास में ॐ की शक्ति आपके फेफड़ों और श्वसन तंत्र को सुदृढ़ बनाना है। ॐ मंत्र के मनोवैज्ञानिक चिकित्सा में लाभ 1. ॐ की शक्ति आपको दुनिया का सामना करने की शक्ति देती है। 2. ॐ का नियमित मनन करने से आप क्रोध और हताशा से बचे रहते हैं। 3. ॐ की गूंज आपको स्वयं को नियंत्रित करने में सक्षम बनाती है। आप स्वयं में नया उत्साह महसूस करते हैं। 4. ॐ की ध्वनि से आपके पारस्परिक सम्बंध सुधरते हैं। आपके व्य

कौन हू मै ?

 क्या दौर था उस जमाने का,  था बचपन वो खजाने सा, न मांग  बनानी आती थी , न बात ही बनाई  जाती थी, कोई  कुछ  भी हमे कह जाता था, यह दिल न दिल को लगाता था, अब अजब गजब  सी बात है, वही मै हू वही जज्बात है, अब सही किसी की नही जाती, हर बात बुरी लग जाती है, मेरी दुनिया जाने क्यू फिर, मुझसे  ही उलझी जाती है, शायद मै अब मुझमे वो न रहा, जो असल मे हुआ करता था, अब भरा हू मै बस उस सब से , जो करा तुम सब ने मुझ संग से, समझ आता नही की  कौन हू,मै, जो अब हू या जो तब था वो मै। इक जीवन  के बीते बरसो ने  सब सोख लिया  सच था जो मै। अब रहा नही कुछ  भी बाकि , जो पैदा हुआ था मुझमे  मै।(2) क्या वो था मै या यह हू मै  नही समझ है आता कि कौन  हू मै।(3) ○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○○ स्वरचित मौलिक रचनाकार,  संदीप शर्मा,  Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com , Jai shree Krishna g.

बेगैरत हू मै।

 बेशुमार  किस्म का बेशरम हू मै, टूटता हू,हर कई बार सबसे मै, फिर भी  मुस्करा देता हू मै । पूछो न कितना बेगैरत हू मै, खा कर चोट  भी अपनो से ,अच्छी तरह,  उनके फिर भी  काम  संवार आता हू मै, कहते सब मूर्ख  हू मै, यह सब कैसे कर कर लेता हू मै। अब क्या बताऊ  सबको मै, किश्तो मे जीने की ख्वाहिश, से, दुख भरी खाली सी अजमाईश, से, सब की बना कर  पुडियाॅ ,मै, निगल जाता हू ज़हर की तरह ,सब मै। जोकि जानता हू कि  मुमकिन  नही , खुश कर दे कोई  मुझको यहां।  सब बैठे है अपने फायदो को, देगा कौन मुझे  फिर  नफ़ा यहां। बस जीना है पाकर के यही , जो रखना है रिश्ता  कोई  जिंदा  यहां।(2) ###################### All copyright rights reserved n Originally Scripted by , Sandeep Sharma  Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com  Jai shree Krishna g.  ,

मिलो खुद को खुद से।

 कितना आसान है , मिलना सुख का, पर देखो  हमे तो, दुख मे मजा है, मिलिए  न कभी, खुद ही खद से , क्या कही वो  मिली सजा है। सबसे दिलचस्प, सबसे दिलकश,  मेरा मुझ पर, भरोसा जानो, सबसे तो होगी  ,ढेरो  शिकायते, अपने को बिल्कुल,  पावन ही मानो , तो फिर  क्यू न तुम्हे भरोसा, है खुद पे, खुदा ने जो की है , इतनी इनायते।  मिल लो कभी तो , खुद  ही खुद  से , बन जाओगे , तुम बिल्कुल  बुद्ध  से, न बैठो यू  फिर   लगा कर आशा , कि सुख मिलेगा , मिलकर किसी , कही और खुशदिल से। मेरा है कहना , पड़ेगा पछताना, जो न मिल  पाए, कभी खुद, खुद से। एक तुम  ही तो हो , सच जानते हो , तुम्हारे ख्यालो मे , जिसे रब मानते हो , तो बहुत है जरूरी कि न रहे दूरी , मिल लो दुनिया के, सच्चे व सीधे भगsssवान  से, #######≈≈≈≈≈≈≈≈####### Scripted by , Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com , Jai shree Krishna g 

ब्राह्मण कौन है।

 हम ब्राह्मण  के बारे मे जानते क्या है , ब्राह्मण  वास्तव मे है कौन  ।यह जानना जरूरी है। हमारे बौद्धिक कौशल के चार स्तर है ,जोकि क्रमशः शुद्र, क्षत्रीय,वैश्य व ब्राह्मण है। पर आपने एक बात अदेखी वो यह कि अंतिम  लक्ष्य  या स्तर बुद्धि का ब्राह्मण  होना है ।एक बार प्रश्न उठा कि इन चारो की उत्पत्ति को समझाया कैसे जाए।तो वेदव्यास  जी के मन मे भी यह प्रश्न  कौंधा होगा।तो स्वाभाविक है उन्होने  ब्रह्मांड  छान डाला होगा तो जब उत्तर की बारी आई तो उन्होने ही इन्हे भगवान के मुखसे हुई उत्पत्ति  बताई।शायद ठीक  था।कारण आप वाणी से ही तो जीतोगे न जग को।वो प्रश्न  बाद का है कैसी वाणी। फिर  शुद्र से ब्रह्म की यात्रा ही तो ब्राह्मण है।हर कोई  ब्राह्मण  थोडे ही है ।आप क्या समझते है यह जातिगत है क्या। अरे भाई  क्यू मजाक  करते हो।गंभीर  विषय  है सो ध्यान  से समझने का प्रयास  करे पहले तो समझ ले कि ब्रह्मांड के रहस्योद्घाटन करने वाले शख्सियत को ब्राह्मण कहेगे। ब्राह्मण कोई  एक जाति विशेष  मे पैदा होने वाला जीव नही होता।बल्कि  ब्राह्मण वो जीव या प्राणी है जो ब्रह्म से साक्षात्कार करे व  करा दे अर्थात  ईश्वर से

गीता आज के संदर्भ मे।

 जय श्रीकृष्ण  गीता को जानने से पूर्व चलिए  कुछ  terms या शब्द जान ले जो सामान्यतः हम इस ग्रंथ मे  पढेगे।व उनके अर्थ को सही से समझ सके  यह आवश्यक है हम उन्हे वैसे ही जाने जैसे मै समझा हू। या मेरे अनुसार होने चाहिए। आप जहा चाहे वहा सुधार करे । जय श्रीकृष्ण।  प्रश्न:-  बुध्दि  क्या है व कितने प्रकार  की है ? उत्तर:- मति अर्थार्त समझने का कौशल।या स्तर । मति को बुद्धि  भी कह सकते है।तो यह चार प्रकार की है। =मति,1=सुमति, 2महामति 3=कुमति व,4= मंद मति। चलिए  थोडी विवेचना करले चारो पर । मति :- मन की भावना या विचार,अथवा आचरण  या व्यवहार ही मति है। सुमति:- इस भावना व्यवहार  या आचरण वाले व्यक्ति  का मत जीयो  व जीने दो पर आधारित होता है ।आस पास कोई  दुख मे है तो यह यथा योग्य सहायतार्थ  तत्पर है।यह सत्यनिष्ठ  प्रवृत्ति के होते है 2=महामति:- उच्च कोटि के कल्याण कारी  जीव ,जो किसी के भी दुख  से व्यथित  हो जाए द्रवित हो, व अपने सामर्थ्य से बढकर सहायतार्थ  पेश आने वाले।ऐसे व्यक्ति, स्वयं दुख उठा कर भी दूसरो की भलाई करते है।यह सज्जन, संवेदनशील, सौम्य स्वभाव, धर्मात्मा  प्रवृति  के स्वामी होते है। यह उस

गीता आज के संदर्भ मे।

 दोस्त आज दिनांक  14/01/2022,मकर संक्रांति के पावन दिवस पर मै श्री सरस्वती देवी से अनुकम्पा पाते हुए  श्रीकृष्ण की वाणी, श्रीमदभागवत गीता जी की विवेचना का श्री गणेश  करने जा रहा हू हर बार कुछ  न कुछ नया जोडूगा। बुध्दिमान  तो ज्यादा नही हू पर क्यो ये ग्रंथ मुझे भाया नही जानता पर क्यू इस पर लिखू यह भी नही जानता बस मन किया सो लिखने जा रहा हू। अच्छा होगा  बुरा  होगा पता नही बस अपनी बुद्धि के अनुसार  ही लिखूगा। स्वीकार करिएगा। ये शब्दालंकार श्रीकृष्ण की प्रेरणा से श्रीकृष्ण के लिए  लिख रहा हू श्रीकृष्ण  इसपर अपनी अनुकम्पा करे। बस इतनी ही प्रार्थना है की लिखने वाले से लेकर पढने वाले के बीच सब पर श्रीकृष्ण कृपा बनी रहे। जय श्रीकृष्ण।  प्रश्न लड़ी:- गीता है क्या :- मेरे मतानुसार पथच्युत व्यक्ति की शंकाओ का निवारण  करने वाली सलाह गीता है। क्या गीता एक ही है :- नही ऐसा नही ,सो से ज्यादा गीता है ,उद्धव,गीता,अष्टावकर् गीता आदि कई है। जीव के शरीर की तीन भौतिक  गतिया:-जलाया जाना ,दबाया जाना या फिर ही सडने देना। चौथी गति नही है। आज का अंतिम  प्रश्न:- समान्य परिपेक्ष्य मे इसके मायने :-गीता एक ऐसा ग्रं

भीमशंकर ज्योतिर्लिंग।

 श्री शिवमहापुराण के अनुसार श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की कथा 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ भीम उपद्रव का वर्णन 〰️〰️〰️〰️〰️〰️ सूत जी बोले 👉 हे ऋषियो! पूर्वकाल में भीम नाम का एक बलशाली राक्षस हुआ था,जो कि रावण के भाई कुंभकरण और कर्कटी राक्षसी का पुत्र था। वह कर्कटी अपने पुत्र भीम के साथ सह्य पर्वत पर रहती थी। एक बार भीम ने अपनी माता से पूछा- माताजी! मेरे पिताजी) कौन हैं और कहां हैं? हम इस प्रकार यहां अकेले क्यों रह रहे हैं? अपने पुत्र के प्रश्न का उत्तर देते हुए कर्कटी बोली- पुत्र भीम! तुम्हारे पिता रावण के छोटे भाई कुंभकर्ण थे। पूर्व में मैं विराध राक्षस की पत्नी थी, जिसे श्रीराम ने मार डाला था। फिर मैं अपने माता-पिता के साथ रहने लगी। एक दिन जब मेरे माता-पिता अगस्त्य ऋषि के आश्रम में एक मुनि का भोजन खा रहे थे, तब मुनि ने शाप द्वारा उन्हें भस्म कर दिया था। मैं पुनः अकेली रह गई। तब मैं इस पर्वत पर आकर रहने लगी। यहीं पर मेरी कुंभकर्ण से भेंट हुई थी और हमने विवाह कर लिया। उसी समय श्रीराम ने लंका पर आक्रमण कर दिया और तुम्हारे पिता को वापस जाना पड़ा। तब श्रीराम ने युद्ध में उनका वध कर दिया। अ

हनुमान चालीसा पाठ का महत्व।

 हनुमान चालीसा का पाठ कब और कितनी बार किया जाने से क्या लाभ मिलते है ? ======================================================== १. हनुमान चालीसा का 100 बार जप करने पर आपको सभी भौतिकवादी चीजों से मुक्ति मिल जाती है  २.हनुमान चालीसा का 21 बार जाप करने से धन में वृद्धि होती है। ३. हनुमान चालीसा का 19 बार जाप करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है। ४.हनुमान चालीसा का 7 बार जाप करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। ५.हनुमान चालीसा का 1 बार जप करने से भगवान हनुमान जी का आशीर्वाद मिलता है और आपको हर स्थिति में विजयी होने में मदद मिलती है। ६.अगर आप अपने जीवन में एक साथ कई परेशानियों से परेशान है और हनुमान जी की विशेष कृपा पाना चाहते है तो सुबह के 4 बजे 7 बार हनुमान चालीसा का पाठ करे  ७.मंगलवार और शनिवार को हनुमान चालीसा का 1 बार जप करने से हनुमान जी का आशीर्वाद मिलता है और मंगल दोष, साढ़े साती जैसे हर दोष का निवारण होता है। ८.भगवान हनुमान जी का नाम जप करने से आपके आसपास एक सकारात्मक आभा का निर्माण होता है। ९.राम नाम का जप या राम हनुमान का कोई भी राम भजन, हनुमान जी को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है क्यों

शोक हारी अशोक वृक्ष।

 अशोक वृक्ष के प्रभावशाली उपाय 〰️〰️🌼〰️〰️〰️〰️🌼〰️〰️ अशोक वृक्ष धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन में अन्य पावन वृक्षों, जैसे वट-पीपल आदि की भांति भारतीयों के लिए श्रद्धा का पात्र है। शुभ एवं मंगलकारी वृक्ष के रूप में इसका वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में किया गया है। यह वृक्ष पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में प्रभावी भूमिका निभाता है। धर्मावलंबी इसको किसी न किसी रूप में पावन वृक्ष के रूप में श्रद्धा के साथ मान्यता देते हैं।  प्राचीन मूर्तियों में अशोक वृक्ष की अर्चना अंकित है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इस वृक्ष को इसलिए पूजते हैं क्योंकि महात्मा बुद्ध का अशोक वृक्ष के नीचे जन्म हुआ था। वैसे तो इस वृक्ष की पूजा का प्रचलन, गन्धर्वों और यक्षों के काल से रहा है। श्री राम ने अशोक के पेड़ से ही सीता जी के दर्शन की अभिलाषा की थी। तो कालान्तर में राम भक्त हनुमान की सीता को अशोक पेड़ के नीचे बैठी देखकर ही शोक की समाप्ति हुई थी। इससे इस पेड़ के शोक रहित होने की बात चरितार्थ सिद्ध होती है। भगवान वाल्मीकि ने रामायण में वर्णित, पंचवटी में लगे प्रमुखत: पांच वृक्षों को शुभ माना है। उनमें अशोक वृ

काम देव के रहस्य

 कामदेव के रहस्य 〰️〰️🌼〰️〰️    हिन्दू धर्म में कामदेव, कामसूत्र, कामशास्त्र और चार पुरुषर्थों में से एक काम की बहुत चर्चा होती है। खजुराहो में कामसूत्र से संबंधित कई मूर्तियां हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या काम का अर्थ सेक्स ही होता है? नहीं, काम का अर्थ होता है कार्य, कामना और कामेच्छा से। वह सारे कार्य जिससे जीवन आनंददायक, सुखी, शुभ और सुंदर बनता है काम के अंतर्गत ही आते हैं। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। आपने कामदेव के बारे में सुना या पढ़ा होगा। पौराणिक काल की कई कहानियों में कामदेव का उल्लेख मिलता है। जितनी भी कहानियों में कामदेव के बारे में जहां कहीं भी उल्लेख हुआ है, उन्हें पढ़कर एक बात जो समझ में आती है वह यह कि कि कामदेव का संबंध प्रेम और कामेच्छा से है। लेकिन असल में कामदेव हैं कौन? क्या वह एक काल्पनिक भाव है जो देव और ऋषियों को सताता रहता था या कि वह भी किसी देवता की तरह एक देवता थे?आजो जानते हैं कामदेव के बारे में रहस्य... कामदेव का परिवार👉 〰️〰️〰️〰️〰️〰️पौराणिक कथाओं के अनुसार कामदेव भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के पुत्र हैं। उनका विवाह रति नाम की देवी से हुआ था, जो प्रेम और आ

सोच पुरुष की।

 महिला और पुरूष मे अंतर 😁 महिलाएं इतनी जटिल होती है कि हमेशा उनका दिमाग बदलता रहता है जैसे---- 18 साल की उम्र मे वो सुन्दर पुरुष चाहती है 25 की उम्र मे वो परिपक्व पुरुष चाहती है 30 की उम्र में वो सफल पुरुष चाहती है 40 की उम्र में वो स्थापित पुरुष चाहती है 50 की उम्र मे वो वफादार पुरुष को चाहती है 60 की उम्र में वो सहायक पुरुष को चाहती है---और पुरुष बहुत सरल होते है---उनहोने अपने जीवन मे किसी भी बदलती हालत के लिए अपना स्वाद कभी नहीं बदला 18 साल की उम्र मे भी वो सुन्दर महिलाओं को पसंद करता है और 70 की उम्र में भी वो सुन्दर महिलाओं को ही पसंद करता है 😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂

सोच

 सोच अच्छी हो तो यहा ,सब संवर जाता है। कितना भी हो मुश्किल सवाल, हल निकल ही  आता है। सोच हो ऊंची तो आदमी आगे बढ जाता है। रास्ते हो संकरे भले ही , राह फिर भी वो निकाल  लाता है। मंजिल  हो दूर कितनी भी, पहुँच  वहा जाता है। सोच की न पूछ  सब इसी पर टिका जाता है । नीची सोच का तो हाल नीच ही रह जाता है । पाता नही सम्मान कोई, नजरो से भी गिर जाता है। सो सोच रखो  सदा ऊंची,  जिससे खुदा भी घबराता है । देता वो सारी नियामते, जो रख सबसे छुपाता है। सोच सोच की बात है संदीप ही यह बताता है। खुश रहो खुश रखो ,इस सोच मे मजा आता है। दूर की, क्यू न सोचते तुम , कठिन  ही तो बताता है , आसान है जो छोटी  चादर , पाॅव  न जिसमे समाता है। मुशिकलात  झेलो पहले , फिर खुशियों से नाता है। यह मंजर भी सोच का ही , देख तू क्या अपनाता है  देना न दोष फिर किसी को तुम यह छोटी सोच को दर्शाता है। पहुँचा जो ऊंचाई पे कभी तो , यह तेरी खरी सोच से आता है। सो सोचता बैठा है क्यू तू। चल उठ समय तो जाता है। ला मंजिलो को पास जिन्हे,   दूर तू  बताता है। ¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤। Scripted by  Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogsp

कुछ शास्त्र की बाते।खरीदारी मे।

 शनिवार को घर ना लायें ये वस्तुएँ 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ ज्योतिष शास्त्र में भी इसके कुछ नियम बताए गए हैं इन नियमो के मुताबिक आज हम आपको बताएँगे कुछ ऐसी वस्तुएं जो शनिवार को घर नहीं लानी चाहिए या इस दिन इन्हें नहीं खरीदना चाहिए। लोहे का सामान 👉 भारतीय समाज में यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है कि शनिवार को लोहे का बना सामान नहीं खरीदना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि शनिवार को लोहे का सामान खरीदने से शनि देव कुपित होते हैं। इस दिन लोहे से बनी चीजों के दान का विशेष महत्व है। लोहे का सामान दान करने से शनि देव की कोप दृष्टि निर्मल होती है और घाटे में चल रहा व्यापार मुनाफा देने लगता है। इसके अतिरिक्त शनि देव यंत्रों से होने वाली दुर्घटना से भी बचाते हैं। तेल 👉 शनिवार को तेल खरीदने से भी बचना चाहिए। हालांकि तेल का दान किया जा सकता है। ज्योतिष के अनुसार, शनिवार को सरसों या किसी भी पदार्थ का तेल खरीदने से वह रोगकारी होता है और घर में रोग बीमारी आती है  नमक 👉शनिवार को नमक बिलकुल भी नहीं खरीदना चाहिए अगर नमक खरीदना है तो बेहतर होगा शनिवार के बजाय किसी और दिन ही खरीदें। शनिवार को नमक खरीदने से यह

कया कहती है जन्म कुण्डली।

 जन्मकुंडली में आर्थिक लाभ और हानि के कुछ योग 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰️〰️ यदि आप धनवान बनने का सपना देखते हैं, तो आप अपनी जन्म कुण्डली में इन ग्रह योगों को देखकर उसी अनुसार अपने प्रयासों को गति दें। 1👉  यदि लग्र का स्वामी दसवें भाव में आ जाता है तब जातक अपने माता-पिता से भी अधिक धनी होता है। 2👉  मेष या कर्क राशि में स्थित बुध व्यक्ति को धनवान बनाता है। 3👉  जब गुरु नवे और ग्यारहवें और सूर्य पांचवे भाव में बैठा हो तब व्यक्ति धनवान होता है। 4👉 शनि ग्रह को छोड़कर जब दूसरे और नवे भाव के स्वामी एक दूसरे के घर में बैठे होते हैं तब व्यक्ति को धनवान बना देते हैं। 5👉 जब चंद्रमा और गुरु या चंद्रमा और शुक्र पांचवे भाव में बैठ जाए तो व्यक्ति को अमीर बना देते हैं। 6👉 दूसरे भाव का स्वामी यदि 8 वें भाव में चला जाए तो व्यक्ति को स्वयं के परिश्रम और प्रयासों से धन पाता है। 7👉 यदि दसवें भाव का स्वामी लग्र में आ जाए तो जातक धनवान होता है। 8👉 सूर्य का छठे और ग्यारहवें भाव में होने पर व्यक्ति अपार धन पाता है। विशेषकर जब सूर्य और राहू के ग्रहयोग बने। 9👉 छठे, आठवे और बारहवें भाव के स्वामी यदि छठे, आठवे, बार

कथा पौराणिक।

 मृत्यु पर वश नहीं... 〰️〰️🌼〰️〰️ बात है, तेरह सौ वर्ष से भी अधिक पहले की। रत्नों का व्यापार करने वाला एक जौहरी था। व्यवसाय की दृष्टि से वह प्रख्यात रोम नगर में गया और वहाँ के मन्त्री से मिला। मन्त्री ने उसका स्वागत किया। मन्त्री के अनुरोध से जौहरी घोड़े पर सवार होकर भ्रमणार्थ नगर के बाहर गया। कुछ दूर जाने पर सघन वन मिला। वहाँ उसने देखा मणि-मुक्ताओं एवं मूल्यवान् रत्नों से सजा हुआ एक मण्डप है और मण्डप के आगे सुसज्जित सैनिक दल चारों ओर घूमकर प्रदक्षिणा कर रहा है। प्रदक्षिणा के बाद सैनिकदल ने रोमन भाषा में कुछ कहा और वह एक ओर चला गया। इसके अनन्तर उज्वल परिधान पहने वृद्धों का समूह आया। उसने भी वैसा ही किया। इसके बाद चार सौ पण्डित आये। उन्होंने भी मण्डप की प्रदक्षिणा की और कुछ बोलकर चले गये। इसके अनन्तर दो सौ रूपवती युवतियाँ मणि-मुक्ताओं से भरे थाल लिये आयीं और वे भी प्रदक्षिणा कर कुछ बोल कर चली गयीं। इसके बाद मुख्यमन्त्री के साथ सम्राट् ने प्रवेश किया और वे भी उसी प्रकार वापस चले गये। जौहरी चकित था। वह कुछ भी नहीं समझ पा रहा था कि यह क्या हो रहा है। उसने अपने मित्र मन्त्री से पूछा। मन्त्री

धात्विक बर्तन के महत्व

 👉 👇  👆👈 *आइये जानते है कौन सी धातु के बर्तन में भोजन करने से क्या क्या लाभ और हानि होती है* *सोना* ☄सोना एक गर्म धातु है। सोने से बने पात्र में भोजन बनाने और करने से शरीर के आन्तरिक और बाहरी दोनों हिस्से कठोर, बलवान, ताकतवर और मजबूत बनते है और साथ साथ सोना आँखों की रौशनी बढ़ता है। *चाँदी* ☄चाँदी एक ठंडी धातु है, जो शरीर को आंतरिक ठंडक पहुंचाती है। शरीर को शांत रखती है  इसके पात्र में भोजन बनाने और करने से दिमाग तेज होता है, आँखों स्वस्थ रहती है, आँखों की रौशनी बढती है और इसके अलावा पित्तदोष, कफ और वायुदोष को नियंत्रित रहता है। *कांसा* ☄काँसे के बर्तन में खाना खाने से बुद्धि तेज होती है, रक्त में  शुद्धता आती है, रक्तपित शांत रहता है और भूख बढ़ाती है। लेकिन काँसे के बर्तन में खट्टी चीजे नहीं परोसनी चाहिए खट्टी चीजे इस धातु से क्रिया करके विषैली हो जाती है जो नुकसान देती है। कांसे के बर्तन में खाना बनाने से केवल 3 प्रतिशत ही पोषक तत्व नष्ट होते हैं। *तांबा* ☄तांबे के बर्तन में रखा पानी पीने से व्यक्ति रोग मुक्त बनता है, रक्त शुद्ध होता है, स्मरण-शक्ति अच्छी होती है, लीवर संबंधी समस्या