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Showing posts from February, 2022

भूल।

  तूझे चाहना ,क्या सच मे , कोई  बडी भूल थी, जो हो भी गई, तो, तुम्हे भी तो  वो कबूल थी, फिर  क्यू जिद्द  ने तुम्हारी, इक रिश्ते को दफन किया। इतनी क्या मजबूरी थी, जो बरकत को हज्म किया तुमने दिला कर , हर पल ,रूखे एहसास, छीने वो सारे पल जो , मेरे  थे खास। वो सब तो न  कभी,   लौट कर अब  आएगे। वो तो हो गए  धूल, अब कहा पोंछे जाएगे। यह सितम तुम्हारे मुझे , नही है बिल्कुल   भी कबूल हाँ, माना ,वो मेरा, चाहना तुमे , भूल थी ,बहुत  बडी भूल ।              ##### संदीप शर्मा। ( देहरादून से।) Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com , Jai shree Krishna g ..

पुनर्जन्म पर मेरा मत।

  जय श्रीकृष्ण। मित्रगण। आप और हम पर कृष्ण  कृपा बरसती रहे।दोस्तो पुनर्जन्म  की धारणा पर विभिन्न  लोग विभिन्न  मत रखते आए है।हमारी सनातन परंपरा  व धर्म  के अनुसार  पुनर्जन्म  की आस्था हमारे विद्वान जन व वैज्ञानिक व वैदिक  ग्रंथ  के ज्ञाता बडे सशक्त  रूप से रखते आए है व इसका   अनुमोदन   भी करते आए  है।और मै भी इसे मानता हू कि पुनर्जन्म  होता है। जैसे गीता मे श्रीकृष्ण  कहते है तेरे और मेरे कई जन्म  हो चुके है तू उन्हे नही जानता पर मै जानता हू।और भी हम शास्त्र मे भी यह कहते  सुनते आए है कि फलाने अवतार मे फलाना फला था व फलाने अवतार मे फलाना फला।तो दोस्तो यह तो निश्चित  प्रमाण सा  प्रस्तुत  नही करते ,कुछ निश्चित  आभास  सा तो कराते है पर लोग कहते है क्या पता ?तो यह प्रश्न  क्या पता ? असमंजस  का कारण  बनता है ।पर कुछ  बाते है जिन्हे देख कर  ऐसा अनुमान  लगाया जा सकता है। जैसे देखे तो प्रकृति  की समस्त  चीजे या वस्तुए  वस्तुतः  चक्रीय है।यानि रूप भले ही बदल ले पर मूलतः वो वही है कही कही तो वो स्वभाव  भी बदल लेती है।पर रहती वो वही है।जैसे खेत मे उगने वाली फसल,को ले जिसका बीज  रोपने पर फसल वही

अमरूद का पेड़।

  सहज होता है पेड़ अमरूद का, उग आता है ,बेटी के वजूद सा, फल भी तो बेटी से मधुर है, मीठे,रसीले,स्वाद बहुत है। अमरूद  का पेड़,याद है बचपन की, जब  तोडे थे फल ,बात है कल की, कई बार तो झगड़े, मौल ले लिए, पेड़ अमरूद  के ,अपने हो लिए, याद आती है ,वो सारी यादे, नमक लगा अमरूद  थे खाते, कितनी बेफिक्री कि थे वो बाते, हक समझते थे ,सब डांट  भी खाके। पेड अमरूद  का बाप सा होता, बच्चे का प्यार है  प्रेमवश ढोता, दे देता फल खाकर सोटा, बदला लेने को कभी भी न सोचा। पेड अमरूद  का  हाकीम सा भी  है, रखता ध्यान  स्वस्थ  का भी है, कई  रोग मिटा देता है, पत्ते  फल का भी गुण  होता है, रोगनाशक  कई जो गुण  है , बचा लेते ये कर शगुन है। पेड अमरूद का,बच्चे जैसा, जहा चाहे उगा लो ,लग जाता वैसा, मित्र सा बनकर इत्र हो जाता, हर  किसी को इसका फल भाता। पेड  अमरूद  का इक दर्शन है, खाने को जो इसकी तडपन है, ठेली पे वो आकर्षित  न करती, जो लगे पेड पर बढाती धड़कन है। है न ये पेड ये यार हमारा , गुण की खान,मित्र सा प्यारा, रिश्ते इससे बेजोड हो जाते , बाग बगिया की शान बढाते, धन से लेकर स्वाद  बढाते,

कया आप मुझे जानते है?

  एक सज्जन  थे शायद कही, किसी अवरोध  मे, कुंठित  थे व भरे थे मन के भीतर के, क्रोध  से, झुंझलाए वो कईयों पर , पर और तो कुछ  कह न पाते, कैसे फिर वो इस स्थिति से कहते सबको कुछ  दिखाते, बस धमका रहे थे कह कर इतना क्या आप  मुझे नही जानते ? बात बढ गई  थी स्वर सुन उस अनजान  के, हानि हो सकती थी भारी इन प्रश्न के बोध से, बचना होगा ऐसे सब को भीतर के क्रोध  से। एक और परिदृश्य  क्यू न प्रस्तुत  करू, क्या आप जानते है मुझे , इसके रूबरू करू। अब के, ये प्रश्न  था ,कही किसी अनजान  से, जो बढाना चाहता था,जान व पहचान  वह, यहा जब उनके परिचय हुए, बात कुछ  आगे बढी, बदले तब फोन नंबर ,जुडी रिश्तो की नई  ही कढी, ये  भी तो न शब्द  थे वही, फिर फर्क  था क्या इसका हुआ, यहा पहले पिटने को थे इधर संबंध, जुडने का हुआ। असल की जो गहरी सरल,छोटी सी है बात है, भाव कैसे आपके ,वो शब्द बताते,साहब है, एक जहा  मरहम बनते,वही दूसरे वो घाव है। क्या आप  मुझे जानते है? यह परिचय बता रहा है ये , जैसे होगे प्रश्न  इसके उत्तर भी वैसे ही बने। । जानते तो भाई साहब अपने ही नही सच ये है, हम भी कहा मानते है जिन सब का प्

पुनर्जन्म की आस्था

  जय श्रीकृष्ण। मित्रगण। आप और हम पर कृष्ण  कृपा बरसती रहे।दोस्तो पुनर्जन्म  की धारणा पर विभिन्न  लोग विभिन्न  मत रखते है।हमारी सनातन परंपरा  व धर्म  के अनुसार  पुनर्जन्म  की आस्था हमारे वैज्ञानिक व वैदिक  ग्रंथ बडे सशक्त  रूप से इसका अनुमोदन  करती है।और मै भी इसे मानता हू कि पुनर्जन्म  होता है।जैसे गीता मे श्रीकृष्ण  कहते है तेरे और मेरे कई जन्म  हो चुके है तू उन्हे नही जानता पर मै जानता हू।और भी हम कहते है फलाने अवतार मे फलाना फला था व फलाने अवतार मे फलाना फला।तो दोस्तो यह तो निश्चित  प्रमाण। प्रस्तुत  नही करते पर कुछ  बाते है जिन्हे देख कर  ऐसा अनुमान  लगाया जा सकता है।जैसे देखे तो प्रकृति  की समस्त  चीजे या वस्तुए  वस्तुतः  चक्रीय है।यानि रूप भले ही बदल ले पर मूलतः वो वही है कही कही तो वो स्वभाव  भी बदल लेती है।पर रहती वो वही है।जैसे खेत मे उगने वाली फसल,को ले जल को ले या वायु को ले अथवा कोई  अन्य प्राकृतिक  उदाहरण  ले।चलिए  यहा हम वायु व जल को लेते हुए  चक्रीय  व्यवस्था को समझने का प्रयास  करते है।जैसे जल अपने रूप  परिवर्तित  करता है,जल तरल रूप  मे जलीय पिंड  मे तरल अवस्था  मे स्थ

झूठी।

  वो झूठ का सामान  बांध, सच दिखाना चाहती है, जाने जिंदगी को,खाक मे खुद ही ,मिलाना क्यू चाहती है। फितरत मे बस बनावट ही , बनावटी ही रिश्ते का, जाने मंजर ये झूठ के , किसको दिखाना चाहती है, सुर्खी बिंदी  लाली,बिछुए, पहने कभी घर पर नही, बाहर जा पहन कर इनको, किसको रिझाना चाहती है। जिदगी मेरे संग उसे रास आई ही नही, वो शायद यह मुराद , किसी आस  बिताना चाहती है। अदालत,सावधान  इंडिया के डरावने मंजर, जाने कयो वो वहम, मेरी जिन्दगी मे मिलाना चाहती है, दो घडी ,बैठी नही ,कभी वो ,पास मेरे चैन से, वो जिंदगी  फेसबुक  पे ताउम्र  बिताना चाहती है। आज तक इस घर  को उसने अपनाया ही नही, शायद वो पहले छोडे घर को लौट जाना चाहती है। गठ जोड हुआ शायद कुछ  खास ही मजबूरी होगी, गठ जोड तोड वो साथ मेरा छोड  जाना चाहती है, बेटे को  करके वो परे सास को बुरा ही कहे, यह कौन सी नई  रिवायत  वो आप चलाना चाहती है, सब सह रहे है मंजर, बेरूखी ,बेखुदी,के सब , तब भी  वो खुद ही   दुखी है , यह जताना चाहती है। सब कुछ  करके खत्म , एक घर से चली थी दूसरे घर, अब मन भरकर यहा से आगे बढ जाना चाहती है। बस सभी भले ल

दिल ने कुछ यू कहा।

 तुमने कह कर वो भ्रम भी तोड दिया, प्यार मे हो किसी के, यूं फिर मैने भी  छोड दिया।                  #### नंगे पाॅव तुम्हारा चले आना, वो मुस्करा कर यूं ही  चले जाना। बता गया अदाओ के हकीम हो। सौदे कर लेते हो अच्छे, काफी  मिजाज के शौकीन हो।                ####### सब गुलाब  दे रहे थे,उनको  हमने साथ देने का वादा तक  किया , वक्त वक्त की बात है , बडा ही खुद  पर तब गुमाँ था उनको, वो गुलाब  अब मुर्झा गए है, हमे कहा भी  याद  है सब वो। जिन्हे देख अब वो शरमा  रहे है।           ####### कतरा कतरा ऑसू  मैने, जोडे तेरे,सह गम मेरे देख समंदर भर आया मै,, कितने थे जो गहरे  सेहरे। तूने उनकी कदर न जानी, उस पानी का मोल न जाना, उनको बस नमकीन ही माना, दुनियाभर को मिला यही से , भर भर झोली,भरा खजाना।                  ##### महसूस  तो हजूर  तब कीजिए,  मसरूफ  न किसी को जब कीजिए।                @@@@@ देखा जबसे मुहब्बत मे , तुमको किसी और की मैने, जाने कैसे संभाला है, अपने दिल को मैने।                    #### बे अदबी का भी गुमान  रखते थे। बडे तंगदिल है, हर बात का जवाब  ,रखते थे।             :######: संदीप  शर्मा। 

तभी राम मिलेगे।

  प्रश्न उठा था फिर इक बार, ध्यान  देना ,होगा उपकार, इक नारी ने पूछा था  जैसे, क्या पुरूष  सभी है बिल्कुल वैसे, ये फिर क्या ,बात हो गई, पुरूष है तो ,इल्ज़ाम  लगा दो कोई। ऐसा नही है चलने वाला, मर्यादित  रहे सभी सब बाला, माना मन मे कुढन है बाकि, एक ही दवा  नही है  सब व्याधि की, सुनो जो सच मे तुम नारी हो, माना अब पुरूष पर भारी हो, बात उठाई  जो जैसे है , जवाब  उसी मे ही वैसे है। मै सीता हो जाऊ जो जब, क्या राम बन पाओगे तुम तब ? पर ये प्रश्न  पति से ही क्यू ? भाई पिता के लिए  चुप  मुंह क्यू  ? क्या वो सभी राम ही है सब,? जो है तो सीता के रावण ढूंढे  वे क्यो तब? वैसे भी कहा वो राम हो गए, ? पर पत्नि उनकी को रावण  हो रहे। बात इतनी पे खत्म न हुई , क्या घर पे उनकी कोई  मजबूरी  न हुई ? यदि ऐसा है तो फिर माॅ पिता  ने , सिखाई  क्यो न मजबूरी क्या हुई है? पति भी तो  इक इंसान ही है न लेकिन ,नही वो भगवान  जी है न, अपने घर का  वो राम ही है तो मिली न सीता,क्यू उसे सच तो।, यदि बात की बात न होती, राम की हालत ,राव

मेरा माहिया ओ घर क्यू नी आया।क़व्वाली।

 मेरा माहिया ओ,हो मेरा माहिया , ओए होए, मेरा माहिया ओ घर क्यू नी आया, औ रूसया, है ,(2), क्यू नही गया मनाया,। के दिल मेरा नही हो लगदा।  होए ओए।(3) के दिल..... औंधे नखरे मै (2) हा ,हा,औधे नखरे मै, सहवा, सारे सारे, पावे चंगडे या हौन पावे माढे, के मै त नइयो  कोई  संगना, होए ओए , के मै तो हौर नही कुझ  मंगना। होए ओए।  पावे सा मेरे  मुक जान सारे, पावे सा मेरे मुक जान सारे, नी  होर  न मै कुझ मंगना। होए ओए के औधे रंग च ,ही मै रंगना। होए,ओए, के औधे  रंग च ही मै रंगना, ओहदे नखरे न  बेवजह है सारे, औनू किवे मै मनावा ,दस खुदा रे, के रहदा तू क्यू चुप  सौनया, होए ओए, के रहना वे क्यू तो गुम सोनया, ओए होए। के रूठे यार नू मेरे कोई  मनावे, मैनू एंज दी देवो न कोई  सजा वे, हो मेरी पीड़ दी  देवो जी कोई  दवा वे  के दर्द मेरा नही है घटदा  होए ओए। के दर्द  मेरा नही है घटना, होए ओए। के मेरा माहिया वे घर क्यो नही आया, मेरा दिल है क्यू एंज घबराया, रहदा डरदा जिवे हलवे न सरमाया, , के औधे बिन  नही मै जीवना, होए  ओए,  के दिल मेरा लभे प्रीत हा होए ओए  के दिल मेरा लभे प्रीत हा, होए ओए। के दिल मेरा ........... मेरा माहिय

बहुत कुछ पीछे छूट गया है।

  बहुत कुछ  मुझसे  छूट  गया है, यू जीवन ही रूठ गया है, थोडी जो  कर लू मनमानी, गुस्से हो जाते है ,कई  रिश्ते नामी। सबके मुझसे सवाल  बहुत  है, सवाल मेरो के जवाब  बहुत है, अपने काम मे बोलने न देते, सब सलाह  मुझको  ही देते, क्या मै बिल्कुल  बिन वजूद हूॅ, या किसी पत्थर का खून हूॅ। क्यू है फिर फर्माइश  सबकी, ऐसे करू या वैसा ,जबकि, कहते है सुनता ही नही है, जाने इसे क्यू, सुझता ही नही है, बिल्कुल  निर्दयी हो चुका हूॅ। पता है क्या क्या खो चुका हूं ? बढो मे जब पिता को खोया, जानू मै ही ,कितना ये दिल रोया, और भी रिश्ते खत्म हो गए, जाते ही उनके, सब मौन हो गए। डर था सबको शायद ऐसा, मांग  न ले ये कही कोई  पैसा, सब के सब मजबूर हो गए, बिन  मांगे ही डर से दूर हो गए, ताया चाचा,मामा मासी, सबने बताई  हमारी   हद खासी, इन सब से हम चूर हो गए  , छोड  सभी से दूर हो गए। फिर  जब हमे लगा कुछ  ऐसा, रिश्ते ही नही अब तो डर काहे का। बस जिंदगी  के कुछ  उसूल  हो गए, बचपन मे ही बढे खूब  हो गए। इक इक कर हमने सब पाया,

Radio 📻

  इक  रेडियो,सा  हो गया हू मै, लगा कर  कान लोग सुनते है बडे ध्यान  से, गुनगुनाते भी है संग शान से, और फिर सो जाते है  इत्मिनान से । यह माध्यम  सा हो गया हू मै , इक रेडियो हो गया हू मै। देखो न कितना सुकून का , जरिया बन गया हू, वाह  भी हो जाती है कभी , तो बेकार  भी होजाती है आवाज  भी कभी, जब चाहते है लगा लेते है जब चाहे बंद कर देते है , सच मे आन आफ का , इक बटन सा हो गया हू मै , सच है इक रेडियो हो गया हू मै। अब काम का रहा नही उतना मै , बस टाइम  पास को सुना जाता हू मै, हाॅ पर अंतिम  शौक  हो गया हू मै ज्यादातर  खामोश  हो गया हू मै सच तो है इक रेडियो  हो गया हू मै। □□□□¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤□□□□ Originally Scripted by, Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com Jai shree Krishna g.

तप क्या है ?

 तप क्या है यह एक सामान्य  सा प्रश्न है और जब हम इसके अर्थ को जानने का प्रयास  करते है  तो मन मे धारणा बनती है कि,कोई  साधू या सन्यासी कोई  स्थान विशेष  पर बैठ  कोई  मंत्र रट रहा है।पर यह कतई  सत्य नही है यह तो उन  जन मानस को लगता होगा जो चिंतन मनन से कोसो दूर है जो ज्ञान  शुन्य है।और ऐसे सब विचित्र  विचारो को पुख्ता करने की रही सही कसर चलचित्र  के हल्के व अल्प विकसित कलाकारो की भेंट बन कर रह गई   ,जिन्हने  ऐसे महान  कृत्य को नाटकीय  ढंग से पेश  किया।। तो इसके सही अर्थ  जानने है तो आइए  एक नवीन  दृष्टिकोण को स्थापित करते हुए  इसके मतलब  को जाने। "तप" शब्द  दो वर्णो का मेल है 'त'+'प'="तप"। अब वर्ण  त तम यानि अंधकार  का परिचायक है तो प वर्ण  प्रकाश  का । तो पाठकगण  तप से तात्पर्य  तम से प्रकाश  की यात्र हो गई  न। और यह तम या अंधकार  है क्या वास्तव  मे इसे भी समझे।तम या अंधकार  से तात्पर्य है अज्ञान  की स्थिति  यानि जिसकी हमे जानकारी नही है।वही प्रकाश  की बात करे तो वो स्थिति  जिसकी जानकरी उपलब्ध भी है व हम भली प्रकार से समझते व जानते भी है।तो यही अज्ञा

मेरा साया।

 अंधेरे मे कोई साया, कभी मुझसे न टकराया, सुनी  थी बाते बहुत लोगो से, पर वो कभी मुझसे न मिल  पाया, क्या ये मेरा व्यवहार  गलत था, या मेरी फितरत का असर था, जिसको जिसको चाहा मैने, वो ही न मिल  पाया। औरो की तो बात ही क्या करता, मै खुद  से ही रहता था डरता, भाग रहा था किस कदर मै , कर रहा था कौन सा सफर मै  समझ  न मै कभी पाया, क्या  रश्मि  या अंधकार मे, कभी न कही ,किसी के प्यार मे, शामिल  मै हो पाया। क्यू रहता है मन यू आकुल, पाने को प्यार की चाह को व्याकुल  जो न, कभी मुझको , मिल पाया। अब तो देखो छोड  चला है , सारी आस फिर  तोड चला है, मुझको मेरा ही साया। क्या मेरा यह  भ्रम है केवल, या फिर मुश्किल  के  दिन का सफर, कर लेता हू चल फिर  कोशिश,  जो मिल ही जाए कोई  छाया, कही मिल  ही जाए कोई  साया। एक उम्मीद को। संदीप शर्मा।

लौट आना।

 जो चला जाऊ रूठकर,कहीं तो अपना हक जताना, मै करू जो जिद्द  न आने की  तो  भी  मुझको लौटा तुम  लाना। जो कही हो जाऊं खफा  , तो बेपरवाह न हो जाना। रिश्ता टूट जाता है , तो हो जाऊ चुप  यदि मै  तो मुझको तुम मनाना । ऐसी कितनी ही बाते है , जो अब पडती है बताना, कदर कही रही नही भावनाओ की, हो गया है खुष्क  जमाना। कहते है इंसान  बसते है यहा, कही दिखता हो तो बताना, मुझे तो अकेले ही नजर आती है, सब,भीड मे, कोई मिलकर रहता हो तो दिखाना। चला जाऊंगा ,दूर बहुत  दूर, तुम लौटा न पाओगे कभी जब , तब  कहो न कहो, क्या रह जाएगा जो कहोगे भी, " लौट आना ।" तो चलो छोडो सब, क्या करना मन के बिन, तुम ऐसे ही चले जाना। न कहना मुझे साथ रहकर भी , जो कहना पडे तुमको, अरे लौट आना। ####=#### Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com, Jai shree Krishna g

बचपन का घर पुराना हो गया।

  उस घर को जमाना हो गया, बचपन का घर पुराना हो गया, सुनी थी ये बात, इक बच्चे से आज, उसे क्या पता, कैसे थे वहा के  जज्बात, जो आज का खजाना हो गया, "अजी सुनते हो," "की" आवाज  सुने जमाना हो गया। अब तो पत्नि भी  पति से, बराबरी की बात करती है , इसी बराबरी के अधिकार मे , उसके नाम से  पुकार करती है। मिल बांट कर होती नही , अब कोई  कही बाते, बडे विवाद ,थे पहले भी पर , कभी कचहरी नही थे जाते। और इधर  बच्चे ने भी कह दिया, बचपन का घर पुराना हो गया। सब कुछ  बदल गया अब , तो नया जमाना हो गया। बचपन के घर मे सुने नही थे, तलाक, छुटन छुटाई के किस्से, ये जरूर सुना था , तेज बडे है  कभी पति , कभी पत्नि, उनके सब  भले ही उनसे डर डर के रहते थे, पर मजाल है घर टूटे, बचा रहता था हर घर, सो घर घर ही रहते थे। छीना,झपटी,कुटन कुटाई, कितनी की  अब याद नही, वो बेफिक्र सी झपकी ,मैने कब ली  थी सच मे मुझको अब याद नही , बचपन का घर कहा गया, जब रहा नही ,मेरा स्वाद वही, कहा से ढूंढो  जो छोड दिया था, उस पल का किया  न था अह्सास कभी। बढे बढे दर्द  छिपाए, भी , खुल कर हॅसा करते

न मै मीरा ,न मै राधा

 न मै मीरा ,न मै राधा,(3) मैने श्याम को पाना है,(3) पास हमारे भी कुछ भी नही है ,(2) निर्मल  भाव चढाना है। न मै मीरा          । जब से तेरी सूरत देखी (3) तुम  मे प्रेम  की मूर्त देखी,(3) अपना ही तुम्हे  बुलाना है,(3) न मै मीरा               । न मै राधा न मै मीरा(,3) फिर भी श्याम को पाना है,(3) न मै मीरा       (3) और किसी को मै क्या जानू,(3) अपनी लगन को सबकुछ  मानू(3) अपना ही तुम्हे बुलाना है, न तुमको हमे भुलाना है, न मै मीरा               । जन्म जन्म से भटकी मोहन,(4) युग युग  से मै भटकी मोहन,(4) जोत से जोत जलाना है (3) न मै मीरा न मै राधा (4) फिर भी श्याम  को पाना है, न मै मीरा न मै राधा     । दासी तुम्हारी मिलने को आई,(3) लगन मिलने की तुमसेलगाई,(2) लगन मिलने की मन मे समाई(2) अपना ही तुम्हे बनाना है।(2) जोत से जोत जलाना है।(2) न मै मीरा न मै राधा (3) फिर भी श्याम  को पाना है, न मै मीरा न मै राधा ############### भावमय संकलनकर्ता । संदीप  शर्मा, (देहरादून से)। जय श्रीकृष्ण। जय श्रीकृष्ण। जय श्रीकृष्ण।

उर्दु के अल्फाज।

 आप कुछ  भी कहे ये दिल  आदिल ही रहेगा,अत्फ़ का सागर है ये , बुराई  का कतिल ही रहेगा ये। आदिल:--न्यायपूर्ण,,निष्कपट।  अत्फ़:-- दया,कृपा।

सच्चा प्यार।

  मिलेगा मुझे किसी से कभी तो सच्चा प्यार। यही सोच करता रहा इंतजार, पर तभी आया एक ख्याल, कब तक बैठा रहूगां,मै यूं इस हाल, कोई और भी  तो कर रहा होगा यही ख्याल, तो क्यू न पहले मै  ही कर दू यह शुरूआत, और देखो अभी सोचा ही था, कि किससे करू शुरूआत  , आया संदेश  एक मित्र का, कि कर रहा था तुझे आज ही मै याद , रूका न गया सो आया मन मे, कि  पूछू पहले तुम्हारा हाल, अभी इधर एक और बात हुई, जाने क्यू पत्नि  से भी मीठी  सी बात हुई, उधर से बहन का भी फोन  जो आया , उसने कईयो का हाल बताया, पता नही ये क्या हुआ, हर तरफ प्यार ही प्यार हुआ, माॅ के पास बैठा तो बडा ही सुकून  मिला, मुझे लगा जैसे उनसे बरसो बाद मिला, जबकि रहते तो शुरू से ही साथ थे , पर सुने उनकी ,सुनाए अपनी , करते कहा इतनी बात थे। यह सिर्फ  एक ख्याल "प्यार "के , आने के कारण हुआ,। अभी तो प्यार किया भी नही , कितनी शंकाओ का निवारण  हुआ। बात अब समझ मे आई, कि सच्चा प्यार नही है कही और मेरे भाई, ये तो भीतर है सबके, निकालो बाहर,क्यू रखा है छिपाकर  सबसे, यही तो मांग रहे हो न, फिर क्यू न बांट रहो हो ,हां। आओ पाए सच्

चार वर्ण, या स्तर।

  जय श्रीकृष्ण। साथियो ,मुझे खुशी के साथ साथ अपार हर्ष व प्यार का एहसास  हो रहा है कि आप को मेरे विवेचनात्मक विचार। कृष्ण कृपा से भा रहे है। आदरणीय गण, यह सब कृष्ण कृपा है व उनका आशीर्वाद है,वो चाहते है कि जन जन ये जाने कि कैसे वो स्वयं से अवमुक्त हो क्योकि उसके बंधन बाह्य नही बल्कि भीतरी है।।हम कहते है ईश्वर हमे मुक्ति दे ।है न, पर  विस्मयपूर्वक बात यह है साथियो कि ईश्वर  तो स्वयं यही चाहता है ,और  हम उसमे स्वयं ही बाधक है।जो हमे मुक्त  करना चाहता है ,हम उससे  ही मांग  रहे है ,वही पर फिर बाधा  कहा है।समझे बाधा उधर से नही इधर के ,हमारे प्रयास  मे है।हमारे प्रयास से ही यह फली भूत होगे ।कैसे आओ जाने। इसी प्रयास  मे हम आज मंथन  करते है चार वर्णो का जो शास्त्र मे बताए है ।क्या संकेत है आप जाने। जय श्रीकृष्ण  जी समझने मे सहायक हो। आइए जाने स्वयं को  जो  हम जीव है यानि हमारा  आत्मा के आस्तित्व मे साकार होना।ही जीवंत जीव की स्थिति है।आप को पता नही हम कौन है? इसकी विवेचना  फिर करेगे।अभी तो हमारे  सामने प्रस्तुत प्रश्न है,चार वर्ण असल मे कौन  से है ,व ,क्या है।तो माननीय  यही आज की चर्चा का

सागर मंथन। क्या है ?

  हमारी सनातन परंपरा  उत्कृष्ट  परम्परा रही है।उसमे अथाह ज्ञान  व जानकरी का समावेश  रहा है ।पर वो नीरस न लगे सो इसे संकेत  या कहानियो से समझाया गया।अब बौध्दिक  विकास  वाले तो इस पर विश्लेषण  कर आत्म चिंतन कर इसके अर्थ पा लेते है या कहे  जानने को लगे रहते है पर आमतौर  पर कुछ  लोग इसे कथा कहानिया  या किस्से  समझ इनकी उतनी कदर नही करते। अन्ततः परिणाम  यह होता है कि यह धरोहर खोती जा रही है। आप को बता दू कि ऐसा कई  बार पूर्व  मे भी हो चुका है।यह धरोहर जो ज्ञान  गंगा  है जब लुप्त  हुई तो पुनः इसको पाना या इस परंपरा या निधि की खोजना  ही सागर मंथन  है।अब यह भी सांकेतिक रूप से ही तो समझाया गया।और फिर  इसमे यह नियम  भी न था कि सुर अथवा  असुर या देव अथवा दानव म दोनो ही प्रयास करे ।अब जैसे जैसे प्रयास  होते जाएगे।वैसे वैसे हमे  इनके अर्थ पाते जाएगे।हमारे अर्थ मिलते  जैसे हमारी बुध्दि  होगी वैसे हो जाएगे।और जिसका  इस से कोई  फर्क  नही कि कौन खोजे से ही कोई  खोजे  देव या दानव ,उसके प्रभाव  वैसे होगे यानि अस्त्र बनाया था सुरक्षा के लिए  अब उसकी धौंस देने लगे है। सो कोई  देव हो या दानव कोई  भी खोजे अ

लुका छिपी।

 कर रही है वो लुका छिपी ,मुझ संग, दिखा देती है रोज  नए नए  अपने रंग  ढंग,  किसी का हो न जाऊ आदि, सो छीन  लेती है, उसी क्षण, ओ जिन्दगी  बता न , तेरे  नियम नही है  तंग। तो देखा लुका छिपी का खेल , जब कुदरत  का तो समझ आया, यहा स्थाई  क्या है, न खुद , न साया, तो फिर  ये इंसान क्यू है इतना इतराया। भ्रम  भी ज्यादा देर न टिक पाया, जब खुद  के वजूद  की खातिर,  खुद  को  फौकट मे बिकते पाया। लुका छिपी का खेल , तब कुछ रोचक लगा, जब एक दोस्त  चौखट पर मिला, जब जले थे सपने मेरे, पूछा क्या कुछ  बचा पास तेरे, मैने जब कहा, सब जल गया , बस मै बचा ,नही है  अब कुछ भी पास  मेरे, वो उठा ,हॅसा, और बोला,  कि घबराता क्यू हू  ऐ  दोस्त , मै हू न पास तेरे, तब आया समझ कि , कि यह लुका छिपी का खेल निराला है, जो छिप गया वो सपना बुरा था, पर जो दिख गया ,वही तो जीना था। और हम भी ये क्या लेकर  बैठ गए,  जीवन  मिला था जीने को, हम खेल समझ बैठ गए।  तेरी बारी,उसकी बारी,करते रहे, अपनी आई तो रास्ते नपते  रहे। यह ही नही है दोस्तो , कुछ  लुका छिपी का खेल, छोडो खेलना दिलो से , आओ मिलाए कुछ दिल से दिल के मेल।(2) ###@@###@@###@@### Origi

तू पंख अपने पसार।

 तू अपने पंख पसार, मै खुद  के सिकोड़ता हू, तू ले  शीतलता  चाॅद की, मै सूरज को सेंकता  हू, तू बैठ दरिया किनारे, मै राह देखता हू। तू ले ले यह रोटी , मै ओर देखता हू। तू बैठ ठंडी छाँव,  मै धूप  को देखता हू, तू सो ,कर आराम, मै कल की सोचता हू, तेरे अरमानो को करने पूरा , मै जुगत सोचता हू, तू जी जीवन  अपार , मै कुछ  और सोचता हू। तेरे शिकवे है हजार, मै सब जोडता हू, कर कर के गुणा भाग,  सब को सिकोड़ता हू, यह है इतने सब यार , गिन गिन के छोडता हू। तू अपने पंख पसार , अपने मै सिकोड़ता हू। तेरी खुशियो की खातिर,  दुख मै खरीदता हू, ताकि सब उड सके आकाश,  मै पंख  खोजता हू।(2) सब ( हू )को ऐसे पढे (हूँ ) □¤¤¤¤¤¤¤¤□¤¤¤¤¤¤¤¤□ नोट :- कोई  बताएगा यह कविता किस दृष्टिकोण  को बताती है ? ¤¤¤¤¤¤¤□¤¤¤¤¤¤¤□¤¤¤¤¤¤¤ स्वरचित, मौलिक रचनाकार,  संदीप शर्मा, ( देहरादून  से।) Sandeep Sharma Sandeepddn71@gmail.com Sanatansadvichaar.blogspot.com ,Jai shree Krishna g 

पुराने दोस्त वापिस नही आते।

  एक दोस्त  ने आज क्या खूब  कहा, कि जीवन मे कुछ  दोस्त वापस  नही आते, जीते तो है लम्हे और दोस्तो के संग  भी, पर वो जो थे क्यू दोबारा  नही आते। कभी ओढ कर चादर मजबूरियों की, कभी दुहाई दे देते  बाते काम की बताकर, कुछ  वक्त ही तो मांगते है , दोस्त वही पुराने, जो जानते है गुजरे पल लौटाए नही आते। यह वो  हसीन ख्वाब  है जो सच हुए थे , जाने अब ऐसे ख्वाब  भी  क्यू नही आते, मिलते है दुनियाभर  से दोस्त की ही तरह, पर दोस्त वो पुराने क्यू नज़र नही आते, किनारे जैसे  है नदी के वो , न  मिले भले  वो आपस मे कभी तो, चलते है साथ साथ वो यादो मे तब तक, जब तक एक दोस्त को दफनाने नही आते। यह क्या कमाया और किस कीमत पर कमाया, ये बाते है बेमानी जो समझे न समय रहते, मिला करो दोस्तो, हाल ही पूछ लिया करो , क्योकि दोस्त ही है जो रिश्ते से निभाते। न रंज रखते कोई,न कोई छोटा,बडा पन, सब बांट लेते सबकुछ, न हैसियत  दिखाते, ये दोस्त ही तो है दोस्तो, जो दोस्ती निभाते, बाकि रिश्तो मे तो है बस  है न शिकायते। मिला करो एक दूजे से कैसे भी यारो, ताकि कह सके मरा वो ,दोस्त मेरा,  देखो अंत तक अपनी दोस्ती निभात

सीथा सादा सा दिल।

  है बहुत बडी उलझन, जब समझ न कुछ  आता, निकल जाते सब कोई  , बेचारा दिल  ही रह जाता , कितना कोमल  ये है, समझ इससे है आता , जो चाहे जब चाहे, इसको दुखा जाता, ये सीथा सादा दिल, समझ क्यू नही पाता, सब जाते खेल इससे, यह खिलौना  भर रह जाता। ये कितना सच्चा है , समझ तब  हमे है आता, हम मान लेते सब सच, जब कोई झूठ भी कह जाता। कितना ये सीधा है , तब और भी समझ आता। जब देखते छला ये गया, बना  अपना छोड जाता। कितना ये सादा है, पता तब  है चल पाता, जब हर कोई  खेल इससे, दुत्कार इसे जाता। ये सच्चा सीधा सा, कर कुछ भी नही पाता , खुद  ही लेकर दिल पर ये, हतप्रद ही रह जाता। हो कर के ये घायल , समझ नही  है कुछ पाता, क्या खेल की चीज  है ये, या जीवन  जो धडकाता। इतनी बेरहमी से , है धिक्कारा इसे जाता, ये तब भी सीधा सादा, बस धडकता ही जाता। खामोशी से सब सह , जब झेल न और पाता, कहते अब मर ये गया, तो जीवन  तक रूक जाता। यह सीथा सादा दिल , कितना कुछ  सह जाता। देकर के जीवन ये, बस खुद ही है मर जाता।(2) ######@@@@@###### वो कहा है न दिल के अरमान  ऑसुओ मे बह गए, हम वफा करके भी तन्हा रह

राम जी का भजन।

  राम नाम के साबुन  से जो, मन का मैल छुडाएगा, (2) निर्मल मन के दर्पण  मे वो, राम  का दर्शन  पाएगा। राम नाम  के साबुन 2) राम, राम जी,जै,राम राम, राम राम जै जै राम राम (6) हर प्राणी मे राम  रमे है , पल भर तुमसे दूर  नही,(3) देख सके न इन ऑखो से, उन ऑखो मे नूर नही।(2) देखेंगे मन मंदिर  मे जो,(2) प्रेम  की जोत जो जगाएगा। राम नाम के साबुन  से......।(2) नर शरीर अनमोल है प्राणी, हरि  कृपा से पाया है।(2) झूठे जग प्रपंच मे पढकर, क्यो हरि को बिसराया है।(2) समय हाथ से निकल  गया तो,(4) सिर धुन धुन  पछताएगा। राम नाम का साबुन  से  ......। झूठ कपट निंदा को छोडो,(2) हर प्राणी से प्यार करो (2) घर आए संतो की सेवा से , न कभी इन्कार करो(3) न जाने किस रूप मे तुमको,(2) नारायण  मिल जाएगा, (3) राम नाम के साबुन  ......। साधन तेरा कच्चा है, जब तक प्रभु पर विश्वास नही, हे साधन.........प्रभु पर विश्वास नही(2) मजिल  का पाना है क्या, जब दीपक मे ही प्रकाश नही,(2) निश्चय है तो भवसागर से,(2) सहज पार हो जाएगा। राम नाम के साबुन  से,..... राम राम जै जै,राम राम, राम राम जै जै राम राम,(

दुःख बिकता है ?

  वो लिख  लिख कर मै बताता गया , जख्म कैसे, किस ,किस, से थे खाए, ये सब हिसाब  बताता क्या गया, हैरानी तो तब हुई  ,जब बदले मे , वाह  वाह, बहुत  खूब  वाह ,  के , जुमले मै पाता गया। ऐसे मे जीवन  की एक गहरी बात समझ आई, दुख भी बिकता है , वाह के मौल भाई। जिसका जितना बडा दुख होगा, वो उतनी बडी वाह पाएगा, सुख की कदर यहा घट गई, देखो, अब वो दुख  से छोटा रह जाएगा। अजीब  सी विडंबना है , किस्से, किसके, कहा जा के बिकते, यह तो बडी विचित्र  बात है, जिसको पता चला , लगा दुख  सुनाने, इसमे भी हारा मै, क्योकि और ही लोग , लगे अव्वल  आने। तब इक और बात समझ आई, कि मशहूर होना भी आसान  नही है, इसके भी इम्तिहान  वही सही है, जो मशहूर  होना चाहे , वो अपना बडा दुखड़ा  सुना दे। इस तरह दुख  भी दिख जाएगा, चाहे किसी मौल सही , कही तो वह भी बिक जाएगा। यह सब सोच समझ ही रहा था कि , एक अनजान शख्स का  , सच मे फोन आया, उसने बडी गहराई  से समझाया। कि दोस्त एक बात , रखना सदा याद, जब तक माॅ,बाप है न , यह कमबख्त , दुख फटकता न है, बस उनके जाते ही, यह आ धमकता है, फिर चिरस्थाई  हो जाता, यह खिसकता न

महामृत्युंजय मंत्र ,महत्व व माहात्म्य।

 महामृत्युंजय मंत्र पौराणिक महात्म्य एवं विधि 〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰🌼〰〰 महामृत्युंजय मंत्र के जप व उपासना कई तरीके से होती है। काम्य उपासना के रूप में भी इस मंत्र का जप किया जाता है। जप के लिए अलग-अलग मंत्रों का प्रयोग होता है। मंत्र में दिए अक्षरों की संख्या से इनमें विविधता आती है। मंत्र निम्न प्रकार से है 〰〰〰〰〰〰 एकाक्षरी👉 मंत्र- ‘हौं’ । त्र्यक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ जूं सः’। चतुराक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ वं जूं सः’। नवाक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ जूं सः पालय पालय’। दशाक्षरी👉 मंत्र- ‘ॐ जूं सः मां पालय पालय’। (स्वयं के लिए इस मंत्र का जप इसी तरह होगा जबकि किसी अन्य व्यक्ति के लिए यह जप किया जा रहा हो तो ‘मां’ के स्थान पर उस व्यक्ति का नाम लेना होगा) वेदोक्त मंत्र👉  महामृत्युंजय का वेदोक्त मंत्र निम्नलिखित है- त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌ ॥ इस मंत्र में 32 शब्दों का प्रयोग हुआ है और इसी मंत्र में ॐ’ लगा देने से 33 शब्द हो जाते हैं। इसे ‘त्रयस्त्रिशाक्षरी या तैंतीस अक्षरी मंत्र कहते हैं। श्री वशिष्ठजी ने इन 33 शब्दों के 33 देवता अर्थात्‌ शक्तियाँ निश्च